कोरोना काल में क्वारेंटीन सूतक-पातक जैसी पौराणिक मान्यताओं का आधुनिक रुप है – मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़

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सुरभि न्यूज़, चंडीगढ़। कोरोना वायरस ने पूरे विश्व का हुलिया बदल डाला है। जीवन शैली बदलनी पड़ी है। अमरीका भी दूर से हाथ जोड़ने की भारतीय परंपरा को सही मानने लगा है। बार बार हाथ धोने  की सलाह दी जा रही है। डबल मास्क लगाने और घर के अंदर भी मास्क पहने रखने का सुझाव आ गया है। दो गज की दूरी – बहुत है जरुरी, नारा बन गया है। एकान्तवास में रहो। आयुर्वेद अपनाओ । शव को हाथ न लगाओ। लगाओ तो नहाओ। सेनेटाइजर का लगातार प्रयोग करो। प्राचीनकाल में छुआछूत एक सत्य था जिसे स्वच्छता की दृष्टि से देखा जाता था। निम्न वर्ग के लोग कई सीमित संसाधनों तथा अन्य कई कारणों से स्वच्छ नहीं रह पाते थे अतः उन्हें अक्सर घरों से दूर ही रखा जाता था। एक ही स्थान से जल भरना या नहाना धोना वर्जित था। उनके लिए विशेष स्थान निर्धारित किए गए थे। उन दिनों चिकित्सा सुविधाएं आज की तरह नहीं थी, इसीलिए विद्वानों ने धर्म के साथ जोड़ कर कुछ नियम बनाए ताकि संक्रमण न फैले। इस सब के पार्श्व में केवल संक्रमण को दूर रखने और संक्रमित लोगों के संपर्क में न आने के लिए कुछ सामाजिक व धार्मिक नियम बनाए गए थे जिनका पालन कई सदियों तक किया गया। छुआछूत का अर्थ गलत निकाल दिया गया और इसे जातियों से जोड़ दिया गया। समय बदला, स्वतंत्रता आई। आज सरकार को डंडे से वही करना पड़ रहा है जो हमारे धार्मिक संस्कार कहते हैं। आज चिकित्सा सुविधाएं तो बढ़ी हैं परंतु संक्रमण दूर रखने के लिए प्राचीन पद्धतियों को ही अपनाना पड़ रहा है। ऐसी बहुत सी बातें  हमारी जीवन पद्धति का महत्वपूर्ण हिस्सा थी जिन्हें पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के कारण अंध विश्वास कहा जाने लगा। कोरोना जी ने पूरे विश्व को भारतीय संस्कारों की ओर मोड़ दिया है जिसे वे आधुनिक मेडीकल  विज्ञान कह रहे हैं। भारतीय धर्म ,संस्कृति, धार्मिक मान्यताएं, वेदों, पुराणों का ज्ञान सदैव आदिकाल से सनातन एवं शाश्वत रहा है।

भारतीय धर्म ,संस्कृति, धार्मिक मान्यताएं

शौचालय और स्नानाघर निवास स्थान के बाहर होते थे। बाल कटवाने के बाद या किसी के दाह संस्कार से वापस घर आने पर बाहर ही स्नान करना होता था बिना किसी व्यक्ति या समान को हाथ लगाए हुए। पैरो की चप्पल या जूते घर के बाहर उतारा जाता था, घर के अंदर लेजाना निषेध था। घर के बाहर पानी रखा जाता था और कही से भी घर वापस आने पर हाथ पैर धोने के बाद अंदर प्रवेश किया जाता था। जन्म या मृत्यु के बाद घरवालों को10 या 13 दिनों तक सामाजिक कार्यों से दूर रहना होता था। किसी घर में मृत्यु होने पर भोजन नहीं बनता था। मृत व्यक्ति और दाह संस्कार करने वाले व्यक्ति के वस्त्र शमशान में त्याग देना पड़ता था। भोजन बनाने से पहले स्नान करना जरूरी था और कोसे के गीले कपड़े पहने जाते थे। स्नान के पश्चात किसी अशुद्ध वस्तु या व्यक्ति के संपर्क से बचा जाता था। प्रातःकाल स्नान कर घर में अगरबत्ती, कपूर, धूप एवम घंटी और शंख बजा कर पूजा की जाती थी।

भारतीय धर्म एवं संस्कृति में सूतक

भारतीय धर्म एवं संस्कृति में सूतक का अर्थ  यह है कि जब किसी परिवार में बच्चे का जन्म होता है तो उस परिवार में सूतक लग जाता है। सूतक की अवधि दस दिनों की होती है। शिशु को जन्म देने वाली माता के लिए पुरे बच्चा पैदा होने के बाद महिला के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। साथ ही, अन्य रोगों के संक्रमण के दायरे में आने के मौके बढ़ जाते हैं। इसलिए 10-45 दिनों के लिए महिला को बाहरी लोगों से दूरी बना कर रखा जाता है। जैसे ही बच्चा संसार के वातावरण में आता है तो कुछ बच्चों को बीमारियां जकड़ लेती हैं। शारीरिक कमजोरियां बढ़ने लगती है और कभी-कभी बच्चों को डॉक्टर इंक्यूबेटर पर रखते हैं जिससे वो बाहरी प्रदूषित वातावरण से बचाया जा सके। 45 दिनों तक सूतक होता है, साथ ही जिस स्थान पर जन्म दिया है वो स्थान 1 माह के लिए अशुद्ध माना जाता है।  इन दस दिनों में घर के परिवार के सदस्य धार्मिक गतिविधियां में भाग नहीं ले सकते हैं। साथ ही बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री के लिए रसोईघर में जाना और दूसरे काम करने का भी निषेध रहता है जब तक की घर में हवन न हो जाए जब परिवार में बच्चे का जन्म होता है उस अवस्था में संक्रमण फैलने की संभावना काफी ज्यादा होती है। दस दिनों के बाद घर की शुद्धी की जाती है। घर में हवन कर वातावरण को शुद्ध किया जाता है। उसके बाद परम पिता परमेश्वर से नई शुरूआत के लिए प्रार्थना की जाती है। ग्रहण और सूतक के पहले खाना तैयार कर लिया जाता है और खाने-पीने की सामग्री में तुलसी के पत्ते डालकर खाद्य सामग्री को शुद्ध किया जाता है।

भारतीय धर्म एवं संस्कृति में पातक 

भारतीय धर्म एवं संस्कृति में पातक का संबंध मरण और उससे होने वाली अशुद्धियों से है। जिस दिन मृत व्यक्ति का दाह संस्कार होता है उसी दिन से पातक के दिनों को गिनना आरंभ किया जाता है जो तेरआ १३ दिनों तक रहता है। पातक में चाहे व्यक्ति एक्सीडेंट से गुजरा हो, बिमारी से मरा हो या सामान्य रूप से उसने शरीर त्यागा हो, इससे संक्रमण फैलने के आसार बहुत हद तक बढ़ जाते है इसलिए दाह संस्कार के बाद घर आने पर स्नान अवश्य किया जाता है। शवयात्रा में जाने को एक दिन, शव छूने को तीन दिन और शव  को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि मानी जाती है। जिस व्यक्ति या परिवार के घर में पातक रहता है, उस व्यक्ति और परिवार के सभी सदस्यों को कोई छूता भी नहीं है। वहां का अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करता है। पातक के नियमों का पालन करते हुए उतने दिनों तक अपने घर में ही रहता है। परिवार के सदस्यों को सार्वजनिक स्थलों से दूर रहने को बोला जाता है। सूतक-पातक का आधुनिक रुप क्वारेंटाइन है। कोरोना  को हराने के लिए दो गज की दुरी मास्क हे जरुरी तथा वैक्सीन के बावजूद आयुर्वेद के इम्यूनिटी बूस्टर लेते रहे। अपना, परिवार व परिवेश का पूरा  ख्याल खुद रखें ।