निर्जला एकादशी, योग दिवस और सबसे लंबा दिन होगा 21 जून 2021 को एक साथ

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मदन गुप्ता सपाटू चंडीगढ़। तारीख 21 का योग 3 है तो 21 जून का दिन भी इस बार कई कारणों से अत्यंत विशेष रहेगा। सूर्य जल्दी उदय होगा, देर से ढलेगा। सबसे लंबा दिन और सबसे छोटी रात होगी। आम दिनों की तुलना में सूर्य की किरणें अधिकतम समय पृथ्वी पर रहेंगी। इसके बाद सूर्य दक्षिण की ओर चलना शुरु हो जाएगा और 23 सितंबर को रात दिन बराबर हो जाएंगे। पहली बार भारत ने 21 जून 2015 को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस आरंभ किया। इस लिए भी यह दिन खास है। प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां पड़ती हैं। अधिक मास अर्थात मलमास की अवधि में इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता हैै। इस साल यह एकादशी 21जून सोमवार को पड़ रही है। इस दिन दो शुभ योग शिव तथा सिद्धि इस एकादशी और महत्वपूर्ण एवं सार्थक बना रहे हैं। शिव योग 21 जून की सायं 05ः34 बजे तक रहेगा। इसके पशचात सिद्धि योग आरंभ हो जाएगा। ज्योतिशीय दृष्टि से सूर्य मिथुन, चंद्र तुला व स्वाति नक्षत्र, मंगल नीच राशि कर्क, वक्री शनि मकर तथा वक्री गुरु कुंभ राशि में रहेंगे। वस्तुतः यह व्रत एकादशी के सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक 24 घ्ंटे की अवधि का माना जाता है। सिद्धि योग सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला माना जाता है और इस अवधि में किया या प्रत्येक कार्य सफल होता है। शिव योग बहुत शुभ कहा जाता है ओैर मान्यतानुसार इस दौारन भी किए गए धार्मिक अनुष्ठान, पूजापाठ या दान आदि का भी शुभ परिणाम मिलता है।
एकादशी तिथि प्रारंभ 20 जून रविवार को शाम 4 बजकर 21 मिनट से शुरू होकर 21 जून सोमवार को दोपहर 1 बजकर 31 मिनट में समापन होगी। इसका व्रत बिना जल पिए रखा जाता है। इस लिए इसे निर्जला एकादशी कहा गया है। इस एकादशी का प्रारंभ महाभारत काल के एक संदर्भ से माना गया है जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष देने वाले व्रत का संकल्प कराया तो भीम ने कहा कि आप तो 24 एकादशियों का व्रत रखने का संकलप करवा रहे हैं मैं तो एक दिन भी भूखा नहीं रह सकता। पितामह ने समस्या का निदान करते हुए कहा कि आप निर्जला नामक एकादशी का व्रत रखो। इससे समस्त एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होगा। तभी से हिंदू धर्म में यह व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी तभी से कहा जाने लगा। इस दिन मान्यता है कि जो व्यक्ति स्वयं प्यासा रहकर दूसरों को जल पिलाएगा वह धन्य कहलाएगा। यह व्रत पति-पत्नी, नर नारी कोई भी किसी भी आयु का प्राणी रख सकता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व है। भारतीय परंपराएं सदा समयानुसार बदलती रही हैं। आज के कोरोना काल में यदि परंपरानुसार छबील लगाते हैं तो मीठे शर्बत की बजाय, अच्छे फलों के ताजा या पैक्ड जूस वितरित करें। आज के समय में आप जनहित में गिलोय, आंवला, लौकी, एलोवेरा, गन्ने, व्हीटग्रास का जूस बांटें। इससे भी अधिक सार्थक होगा वैक्सीन के कैम्प या स्टाल लगाएं या कोविड के दौरान प्रयोग आने वाले मेडीकल इन्स्ट्रूमेंट बाँटें। बैनर लगाएं दूध पेय बाँटें जिसकी इच्छा हो पिये या घर ले जाए परंतु साफ सफाई और हाईजीन का विशेष ध्यान रखें। प्रातः  सूर्याेदय से पूर्व उठें और भगवान विष्णु की मूर्ति या शालिग्राम को पंचामृत अर्थात दूध, दही, घी, शहद व शक्कर से स्नान कराएं या चित्र के आगे ज्योति प्रज्जवलित करके तुलसी एवं फल अर्पित करते हुए आराधना करें। मूर्ति को नए वस्त्र अर्पित करें। किसी मंदिर में भगवान विश्णु के दर्शन करें। निर्जल व्रत रखें। ओम् नमो भगवते वासुदेवाय: का जाप करें और जल, वस्त्र, छतरी, घड़ा, खरबूजा, फल व शरबत आदि का दान करना लाभकारी रहता है। गर्मी से बचने की सामग्री दान करें। अगले दिन जल ग्रहण करके व्रत का समापन करें ।
आधुनिक युग में गर्मी से स्वयं बचने और दूसरों को भी बचाने के लिए आप पर्यावरण को और सुदृढ़ बनाने के लिए निर्जला एकादशी पर सार्वजनिक स्थानों पर प्याउ लगवाएं, वाटर कूलर की वयवस्था करें, निर्धनों को खरबूजे, तरबूज जैसे अधिक जल वाले फल दें। दूध, लस्सी, आईसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक, जूस आदि की सार्वजनिक व्यवस्था पूरी गर्मी के महीनों तक करें। फल व छायादार वक्ष लगाएं। जहां जनसाधारण को आवश्यकता हो अपनी क्षमतानुसार या चंदा एकत्रित करके एयर कंडीशनर, पंखे, कूलर आदि का दान करें ।
यह व्रत हमारे देश की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है जहां कहा गया है- सर्वे संतु सुखिना…तथा  सरबत दा भला। विश्व का कल्याण हो प्राणियों में सद्भावना हो । समाज का कमजोर वर्ग असहाय न रह जाए, सभी सुखी रहें, निरोगी रहें। एक दूसरे के प्रति समाज में समर्पण की भावना रहे, एक दूसरे की  सहायता को तत्पर रहें। सिख समुदाय ऐसी जल की छबीलें कई अवसर पर लगा कर भारतीय दर्शन को आगे बढ़ाता है और भारत में ही नहीं अपितु विश्व में सरबत दा भला की फिलासफी का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे पर्वों को सामूहिक रुप से मनाना आज के संदर्भ में और भी महत्वपूर्ण एवं समय की मांग हो गया है। आइये सभी भारतवासी इस व्रत को मनाएं और जल बचाने का प्रयास करें। जल है तो कल है का नारा ही निर्जला एकादशी का संदेश है।

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