लोक संस्कृति और सहज सादगी से भरा जीवन हमें आकर्षित करता है: चंद्रकांता सीके

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कमलेश भारती की चंद्रकांता सीके से बातचीत
सुरभि न्यूज़ कुल्लू। प्रकृति से लगाव होने की वजह से हम पति पत्नी दिल्ली की गलियां पाँच साल पहले छोड़ कर हिमाचल के पालमपुर के निकटवर्ती गाँव में आकर बस गये। अक्सर लोग जीवन के अंतिम दिनों में या रिटायरमेंट के बाद यह प्लान करते हैं। हमने जीवन के सबसे ऊर्जावान दिनों में गाँव से जुड़ने का निर्णय लिया। यहाँ हम लड़कियों के लिए ‘पिंक लाइब्रेरी’ बनाना चाहते हैं। पंचायत से बात भी हुई लेकिन कोरोना के चलते इस कार्य में देरी हो रही है । यह कहना है चंद्रकांता सीके का जो हिंदी लेखिका और कहा जाये कि एक्टीविस्ट हैं। मूल रूप से दिल्ली की निवासी चंद्रकांता की शिक्षा वहीं हुई और इग्नू से एम ए समाजशास्त्र, ग्रामीण विकास में डिप्लोमा, मानवाधिकार में एम ए तक शिक्षित चंद्रकांता कविता की ओर आकर्षित हुईं अपने पिता की आदत के चलते । पिता बस की टिकिट पर या बेकार पड़े किसी कागज़ पर कविता या व्यंग्यनुमा लेख लिखकर छोड़ देते। पढ़ते पढ़ते मैं भी कविता लिखने लगी।
-शादी कब हुई ?
सन् 2012 में अंतरजातीय विवाह हुआ। हमने कोर्ट मैरिज की एकदम सादगी के साथ। जीवनसाथी दीपक इंजीनियर हैं। हम दोनों ही प्रकृति व ग्राम्य संस्कृति प्रेमी हैं। दिल्ली की सहजीवी संस्कृति से अनन्य प्रेम के बावजूद शहर की भागदौड़ और मॉल संस्कृति से कभी सामंजस्य नहीं बैठा सके। अंततः पाँच वर्ष पूर्व आजीवन गाँव में रहने का निर्णय लिया।
-क्या परिवार ने विरोध नहीं किया ?
घर परिवार का बहुत विरोध सहना पड़ा। विशेष रूप से ससुराल से। सबसे बड़ा संकट रोजगार का था। दीपक को नौकरी छोड़नी पड़ी। नए सिरे से सब कुछ शुरू करना पड़ा। जीवनयापन का संघर्ष अब तक जारी है। हमने कभी भी जीवन में भौतिक आवश्यकताओं को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया। इसलिए चल रहा है। बाकी, घरवाले आज भी वापस बुलाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते।
-क्या क्या काम किया अब तक ?
दिल्ली में थी तो जंतर मंतर पर सड़क पर घूमते बच्चों को पढ़ाने का काम किया एक साल । फिर दृष्टि बाधित लोगों की संस्था के साथ लगभग एक दशक तक काम किया।
-कौन से लेखक प्रिय हैं ?
महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और दिनकर।
-कोई पुस्तक प्रकाशित हुई ?
जी। हिंदी व अंग्रेजी का द्विभाषी काव्य संग्रह ‘आई ऑब्जेक्ट I OBJECT’ पिछले वर्ष लोकार्पित हुआ। एक उपन्यास प्रकाशन के अधीन है। कथा, कविता व व्यंग्य की कुछ पुस्तकों का संपादन भी किया है। फ़िल्म समीक्षा भी पत्रिका व अखबारों में प्रकाशित होती रही हैं।
-कोई पुरस्कार मिला ?
जी। हिंदी युग्म व यश पब्लिकेशंज की ओर से कहानियों पर। इसी प्रकार प्रतिलिपि की ओर से कहानी प्रथम घोषित की गयी और दस हजार रुपये का पुरस्कार भी मिला। हिमाचल फोकस समाचारपत्र की ओर से स्त्री शक्ति पुरस्कार व हिमाचल, कला व संस्कृति ओर से भी सम्मान।
– आपने नमस्ते भारत कब से चलाया ?
तीन साल हो गये। पहले हिमाचल अकादमी के लिए यूट्यूब प्रोग्राम बनाये। फिर अपना ही चैनल नमस्ते भारत शुरू कर लिया।
-कोई योजना ?
हम अपनी कम्पनी ‘टू ट्रेवल इज टू लर्न’ के माध्यम से सिंगल यूज प्लास्टिक को हतोत्साहित करते हैं। जैसे ही पर्यटक लौटते हैं तो हम उतने ही नये पौधे लगाने का काम करते हैं। अब तक इस तरह हम लगभग 12, 500 पौधे लगा चुके हैं । हम अपने क्षेत्र में लड़कियों के लिए पिंक लाइब्रेरी बनाना चाहते हैं। हमें पुरानी बेकार पड़ी चीजों से कलात्मक व उपयोगी चीजें बनाना व क्रॉफ्ट करना भी अच्छा लगता है।
-आगे लक्ष्य ?
प्रकृति की गोद में जीवन बिताते प्रकृति की रक्षा।

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