बंजार में धूमधाम से मनाया अंतरराष्ट्रीय मूलनिवासी दिवस, ब्लाक चेयरमैन लता देवी ने बतौर मुख्य अतिथि की शिरकत।

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सुरभि न्यूज़(परस राम भारती) गुशैनी बंजार। जिला कुल्लू उपमंडल बंजार के अंबेडकर भवन में आज हिमालय नीति अभियान संगठन और सहारा संस्था द्वारा आयोजित अंतराष्ट्रीय मूलनिवासी दिवस का धूमधाम से मनाया गया। बंजार ब्लॉक समिति की चेयरमैन लता देवी ने इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की है। इस अवसर पर जिला परिषद चेहनी वार्ड के सदस्य मान सिंह, नगर पंचायत बंजार की अध्यक्ष आशा शर्मा, हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति जिला कुल्लू के अध्यक्ष देश राज, हिमालय नीति अभियान, सहारा संस्था के पदाधिकारी एवम सदस्य, बंजार ब्लॉक की विभिन्न पंचायतों के जनप्रतिनिधि, बंजार ब्लॉक समिति के सदस्यगण, महिला और युवक मंडलों के सदस्य विशेष रूप से उपस्थित रहे। हिमालय नीति अभियान के राज्य सचिव सन्दीप मिन्हास ने बताया कि आज इनका संगठन प्रदेश के कई स्थानों अन्य सामाजिक संस्थाओं और परम्परागत वन निवासियों के साथ मिलकर ‘विश्व जनजातीय मूलनिवासी दिवस’ मना रहा है। इन्होंने बताया कि सन 1993 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आदिवासी समुदायों के जल-जंगल-जमीन पर अधिकारों को मजबूती देने के लिए पहल की गई थी। इन्होंने बताया कि हिमालय नीति अभियान वन अधिकार कानून 2006 को इसकी मूलभावना के साथ लागू करने के लिए प्रदेश के विभिन्न उपमंडलों में आवाज उठाने का कार्य कर रहा है। इसी कड़ी में आज प्रदेश के विभिन्न संगठनों के सहयोग से उपमंडल अधिकारी नागरिक जो वन अधिकार कानून के तहत बनी उप मंडल स्तरीय समिति के अध्यक्ष भी होते हैं को वन अधिकार कानून को लागू करने के लिए एक ज्ञापन भी दिया गया है। इसके साथ ही एक ज्ञापन संगठनों ने माननीय वन मंत्री, जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार और माननीय मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश को भी भेजा है। इन्होंने बताया कि आज यह कार्यक्रम प्रदेश के अन्य स्थानों जैसे जिला चम्बा, हमीरपुर और कुल्लू में आदि में परम्परागत वन निवासियों के साथ मिलकर बड़ी धूमधाम से मनाया जा जा रहा है। सहारा संस्था के निदेशक राजेन्द्र चौहान ने कहा कि वन अधिकार कानून 2006 सभी तरह के सांझे वन संसाधनों पर जनजातीय क्षेत्र के लोगों और अन्य परंपरागत वन निवासियों के व्यक्तिगत व सामुदायिक अधिकारों को कानूनी मान्यता देते हुए सुनिश्चित तो करता ही है और इसके साथ ही प्रबंधन व संरक्षण का कानूनी अधिकार भी प्रदान करता है। यह कानून सांझे वन संसाधनों पर विकास का अधिकार के तहत विकासात्मक कार्यों के लिए समुदाय की अनुशंसा लेना अनिवार्य भी बनाता है। इन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश के गैर जनजातीय क्षेत्र में रह रही प्रदेश की समस्त जनता इस कानून के अनुसार अन्य परम्परागत वन निवासियों से परिभाषित होते है इसलिए यह कानून पूरे प्रदेशभर में लागू होता है।हिमालय निति अभियान के संयोजक गुमान सिंह जी ने आगे बताया कि इस कानून की मूल भावना उस ऐतिहासिक अन्याय को दुरुस्त करने की थी जिसमें आजादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी सांझे वन संसाधनों पर समुदाय के अधिकार तक सुनिश्चित नही हुए थे। बड़ी विडंबना की बात है कि इस कानून को बने हुए 15 वर्षों से ज्यादा का समय हो गया है परन्तु स्थिति ज्यूँ की त्यूं है। देश की संसद द्वारा पारित यह कानून हमारे प्रदेश के दो तरह के क्षेत्रों में लागू होना था। एक जहां जनजाति समुदाय रहता है और दूसरा जहां अन्यपरंपरागत वन निवासी रहते हैं। जिसका मतलब यह है कि हिमाचल प्रदेश के जनजातीय व गैर-जनजातीय दोनों में इस कानून को मूलभावना के साथ लागू करना प्रदेश सरकार व प्रशासन की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी थी ताकि प्रदेश के लोगों के साथ जारी ऐतिहासिक अन्याय को न्याय में परिवर्तित किया जा सके और सांझे वन संसाधनों पर प्रदेश के लोगों के पारंपरिक व अभ्यासरत अधिकार कानून के अनुसार दर्ज किये जाए और इस जिम्मेवारी को निभाने में प्रदेश सरकार व प्रशासन नाकाम साबित हुए हैं। हिमालय निति अभियान के अध्यक्ष कुलभूषण उपमन्यु ने कहा कि इस कानून को लागू मात्र करने के नाम पर प्रशासन व सरकारी तंत्र ने आधी-अधूरी वन अधिकार समितियों का गठन पूरे प्रदेश में कर दिया है। वन अधिकार समितियां पूरे प्रदेश में बनाना एक सहरानीय कदम है परन्तु कानून के अनुसार दर्शाए गये कार्यों में ये सिर्फ एक ही कार्य हो रहा है। वन अधिकार कानून में निर्णय लेने की शक्ति कानूनन ग्राम सभा के पास है इसलिए जिस दिन इन समितियों का निर्माण होना था उसी दिन कुछ और कार्य भी होने थे। मगर जिस विभाग के कर्मचारियों को इस वन अधिकार समितियों के गठन की जिम्मेवारी दी गई थी उन कर्मचरियों का भी प्रशिक्षण नही किया गया था जिसके कारण इन वन अधिकार समितियों में न तो योग्य लोग सदस्य बने और न ही ये समितियां ठीक से बनी है। इन्होंने बताया कि यह आश्चर्य की बात है कि प्रशासन व सरकारी तंत्र अब तक प्रदेश इस कानून का प्रशिक्षण तक नही दे पाया है। हिमालय नीति अभियान के सदस्य हरी सिंह ठाकुर ने कहा कि कुछ संगठन प्रदेश में अपने स्तर पर वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन को लेकर कार्य कर रहे हैं जिनका सहयोग भी सरकारी तंत्र ने न के बराबर ही कर रहा है। कानून के अनुसार जो कार्य प्रशासन ने करने है जिसमें वन अधिकार समितियों का प्रशिक्षण और दावों के लिए दस्तावेज और मानचित्र मुफ़्त उपलब्ध करवाना मुख्य है। इसमें भी सरकारी तंत्र फिसड्डी ही साबित हो रहा है। सरकारी तंत्र पर अफसरशाही इतनी हावी है कि जहां कुछ संगठन अपने स्तर पर समुदाय के लोगों के साथ मिलकर इस कानून के क्रियान्वयन को लेकर प्रशासन से दस्तावेज और मानचित्र की मांग करते हैं तो ये तंत्र इन दस्तावेजों का शुल्क समुदाय व वन अधिकार समितियों के सदस्यों से मांगता है जिससे गांव व प्रदेश के लोगों और वन अधिकार समितियों के सदस्यों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पर तो पड ही रहा है और प्रशासनिक रवैये से निराशा भी उत्पन्न हो रही है। इन्होंने कहा कि इस निराशजनक रवैए के कारण कुछ सक्रिय वन अधिकार समितियां भी निष्क्रिय हो गई हैं और समुदाय का एक बड़ा रोष सरकार के खिलाफ पनप रहा है। हिमालय निति अभियान के राज्य सचिव सदीप मिन्हास ने आगे बताया कि वन अधिकार कानून को लेकर कार्यरत कुछ संगठनों ने सैंकड़ों वन अधिकार समितियों के जनजातीय व गैर जनजातीय क्षेत्रों में कानून के अनुरूप हजारों व्यक्तिगत व सामुदायिक दावे सम्बंधित उप मंडल स्तर की समितियों तक पहुंचाए हैं जिन पर भी अभी तक कोई सकारात्मक निर्णय नही लिया गया है जिसके कारण एक तरफ से लोग अपने अधिकारों को कानूनी मान्यता मिलने से वंचित है वहीँ दूसरी तरफ विभिन्न स्थानीय समुदायों को आर्थिक हानि का नुकसान भी झेलना पड रहा है। इस कानून का सही क्रियान्वयन न होने से विकास कार्यों को भी नुक्सान पहुंचा है। इनका कहना है कि एक तरफ से विभिन्न स्थानीय समुदाय सांझे वन संसाधनों पर संरक्षण व प्रबंधन की योजनाओं में नही जा पा रहे वहीँ दूसरी तरफ सामुदायिक अधिकार न मिलने के कारण कानून में लिखित 13 तरह के विकास कार्यों के लिए वन अधिकार कानून के अनुसार भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया चलाने में असमर्थ हैं। वन अधिकार कानून में लिखित 13 तरह के विकास का कार्यों के अलावा जिस भी कानून के तहत विकास कार्यों से सम्बंधित भूमि हस्तांतरण की जो फाइलें केन्द्र सरकार को भेजी गई थी उनमें इस कानून के तहत प्रक्रिया न होने के कारण वो अधूरी मानी गईं और वापिस आई है। जिससे विकासात्मक कार्यों में ठहराव आया है और इसकी पूरी जिम्मेवारी भी सरकारों की है। इस कार्यक्रम में शामिल सभी संगठनों ने सरकार से मांग की है कि प्रदेश, जिला व उपमंडल स्तर पर वन अधिकार कानून को लेकर ठोस चैनल का निर्माण करते हुए संसाधन केंद्र विकसित किये जाये जिसमे कानून के क्रियान्वयन को लेकर कार्य कर रहे संगठनों की भूमिका सुनिश्चित की जाए ताकि वन अधिकार कानून का क्रियान्वयन इसकी मूलभावना के अनुरूप प्रदेश में किया जा सके। बंजार ब्लॉक समिति चैयरमैन लता देवी ने कहा है कि यह वन अधिकार अधिनियम 2006 पंद्रह वर्षों से मात्र अनापत्ति प्रमाणपत्र देने वाला कानून बन कर रह गया है। इस कानून के क्रियान्वन में बहुत जटिलताएं है इसलिए सरकार को इसकी प्रक्रिया को सरल बनाए जाने की जरूरत है। इन्होंने बताया कि उपमंडल स्तर पर दायर दावों की फाइलों को जिला स्तरीय समिति के पास भेजने की प्रक्रिया में तेजी लाई जाएगी जिसके लिए अधिकारियों से सहयोग की अपेक्षा है।

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