ऐक्टिव मोनाल कल्चरल ऐसोसिएशन कुल्लू की कलाकार एवं संस्थापक सदस्या मीनाक्षी को रंगमंच के क्षेत्र में शोध कार्यके लिए जुनियर फैलोशिप से नवाजा 

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सुरभि न्यूज़ कुल्लू। रंगमंच में 1998 से लेकर सक्रिय संस्था ऐक्टिव मोनाल कल्चरल ऐसोसिएशन कुल्लू की कलाकार एवं संस्था की संस्थापक सदस्या मीनाक्षी को रंगमंच के क्षेत्र में शोध कार्य के लिए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से दो वर्ष की अवधि के लिए जुनियर फैलोशिप से नवाज़ा गया है। इस शोध कार्य में मीनाक्षी हिमाचल के देवी देवताओं के तथा हिमाचल के लोकनाट्यों व देव अनुश्ठानों में प्रयुक्त मुखौटों का प्राचीन युनान के देवी देवताओं तथा नाटकों में प्रयुक्त मुखौटों का तुलनात्मक अध्ययन करेंगी। मीनाक्षी इस वर्ष भारत भर में रंगमंच के क्षेत्र में चुने गए 20 षोधार्थियों में से एक हैं और हिमाचल से अकेली हैं। संस्था के अध्यक्ष प्रसिद्व रंगकर्मी केहर सिंह ठाकुर ने कहा कि यह मीनाक्षी के लिए पिछले 20 वर्षों से लगातार रंगकर्म करने का ईनाम है और हमारी संस्था और हिमाचल के लिए यह गौरव की बात है। मीनाक्षी का रंगमंच का प्रारम्भिक प्रशिक्षण भारत के जाने माने रंग निर्देशक स्वर्गीय अमिताव दास गुप्ता तथा जानी मानी रंग व्यक्तित्व, नृत्यांगना व लेखिका नूर ज़हीर के सानिध्य में हुआ। उसके बाद ऐक्टिव मोनाल ग्रुप के साथ केहर सिंह ठाकुर के निर्देशन में लगभग 40 नाटकों में बतौर अभिनेत्री, प्रकाश व वस्त्र परिकल्पक के रूप में कार्य कर चुकी है जिनके मंचन हिमाचल के साथ साथ भारत के विभिन्न शहरों में आयोजित राष्ट्रिय एवं अन्तरराष्ट्रिय नाट्योत्सवों कर चुकी हैं। जिनमें रबिन्द्रनाथ टैगोर का ‘राजा’, भीश्म साहनी का ‘मुआब्ज़े’ शरद जोशी का ‘एक था गधा’ व ‘अंधों का हाथी’, मनोज मित्रा का ‘काक चरित्र’ व ‘कंजूस राजा की गुप्त गुफा’, धर्मवीर भारती का ‘श्रृष्टि का आखिरी आदमी’, राजा चट्र्जी का ‘भगवान का पूत’, नूर ज़हीर का ‘नयन भरी तलैइया’, ‘घटोत्कच’ और ‘पत्थर के सेनिक’, केहर सिंह ठाकुर के ‘दुग्ध धेनू’, ‘राणा झींणा’, ‘चिड़िया के बहाने’, ‘सुन्नी भुन्कू’, तथा ‘लोकमान्य तिलक’ आदि नाटक प्रमुख हैं। मीनाक्षी ऐक्टिव मोनाल के साथ काम करने के साथ साथ वर्तमान में ‘दृष्टि’ नामक रंगमंच संस्था का कुल्लू व पालमपुर मे संचालन करती हैं जिसमें वे स्लम के तथा गरीब बच्चों के साथ काम करती हैं और नाटकों के माध्यम से उनकी पढ़ाई में मदद करती हैं। मीनाक्षी का कहना है कि मैं बहुत अरसे से हिमाचल के लोकनाटयों तथा देवी देवताओं के मुखौटों का प्राचीन युनान के नाटकों तथा देवी देवताओं के मुखौटों का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहती थी, क्योंकि गहरे में इनमें एक गहरी समानता दिखती है। मैं खुश हूँ कि भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने मुझे मेरे मनोबांछित विषय पर फैलोशिप दी और अब में आसानी से और गहनता से शोध कार्य कर सकती हूँ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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