कलारंजनी परिषद के नाट्य दल ने संस्कृत नाटक मृच्छकटिकम् का किया भव्य मंचन

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सुरभि न्यूज़

कुल्लू

ऐक्टिव मोनाल कल्चरल ऐसोसिएशन कुल्लू द्वारा भाषा एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश एवं हिमाचल कला भाषा एवं संस्कृति अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में कलाकेन्द्र कुल्लू में आयोजित किए जा रहे 13 दिवसीय हिमाचल नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय वेदव्यास परिसर कांगड़ा की कलारंजनी परिषद के नाट्य दल ने शुद्रक द्वारा लिखित संस्कृत नाटक मृच्छकटिकम् का भव्य मंचन किया। कलाकारों की इस रंग टोली ने मंच पर एक से एक बेहद आकर्शक दृश्यों को संयोजित कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। लगभग प्रथम शताब्दी में लिखे इस नाटक में जहां चोर, गणिका, गरीब ब्राहम्ण, दासी व नाई जैसे लोग दुष्ट राजा की सत्ता पलट कर गणराज्य स्थापित करते हैं वहीं इसकी कथावस्तु तत्कालीन समाज का पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व करती है।

इसमें नगर की साज सजावट, वैष्याओं का व्यवहार, दास प्रथा, जुआ, विट की धूर्तता, चोरी कार्य, न्यायालय में न्याय व निर्णय व्यवस्था का चित्रण भली भान्ति किया गया है। इसमं दरिद्र जन की स्थिति गुणियों का सम्मान, सुख दुःख में समरूप मैत्री का जीवन्त चित्रण दिखा। कहानी एक गरीब ब्राहम्ण चारूदत की है जिसे सोन्दर्यमयी गणिका वसन्तसेना प्रेम करती है। इसी के साथ आर्यक की राज्यप्राप्ति की राजनीति कथा भी जुड़ी होती है और लेखक शुद्रक ने दोनों कथाओं को बड़ी कुशलता से जोड़ा है। नाटक मोटे तौर पर बंटा दिखता है। पहला वसन्त सेना और चारूदत का प्रेम प्रसंग और दूसरा राज्य विद्रोह के साथ आर्यक को राजपद की प्राप्ति होना। राजा का साला शकार वसन्तसेना को पाना चाहता है और अंधेरी रात में उसका पीछा करता है। भयभीत वसन्तसेना चारूदत के घर में शरण लेकर अपने आभूषण धरोहर के रूप में वहीं छोड़ देती है। सम्वाहक जुए की लत लगने पर बहुत सा धन हार जाता है और वसन्तसेना की शरण लेता है। वसन्तसेना अपना कंगन देकर सम्वाहक को मुक्त करती है। शर्विलक मदनिका के प्रेम में सेंध लगाकर मदनिका को मुक्त करवाता है। उधर चारूदत की पतिव्रता पत्नी लोक निन्दा से बचने के लिए अपनी रत्नावली देती है। रत्नावली लेकर मैत्रेय वसन्तसेन के घर जाता है। वसन्तसेना रत्नावली लेकर शाम को चारूदत के घर आने का निश्चय करती है सुबह चारूदत पुष्पकरण्डक उद्यान में वसन्तसेना का इन्तज़ार कर रहा होता है।

उधर वसन्तसेना रोहसेन की मिट्टी की गाड़ी में अपने आभूषण डालकर उसे सोने की गाड़ी बना देती है। नाटक में रोचक मोड़ तब आता है जब गलत रथ में बैठ जाती है जिसे आना था चारूदत के पास और वो रथ पहुंचा देता है उसे शकार के उद्यान में। वहां शकार उसके पीछे पागल भेड़िए की तरह पड़ता है। वसन्तसेना के मना करने के कारण वह उसका गला दबा देता है और वह मर जाती है। शकार वसन्तसेना की मौत का इल्ज़ाम चारूदत पर लगाता है और कहता है कि वसन्तसेना के गहनों के लालच में आकर चारूदत वसन्तसेना को मार डाला है। शकार जब वसन्तसेना को मरा समझ कर चला जाता है तो उसी समय वहां से एक बौद्व भिक्षु गुज़रता है और वसन्तसेना का इलाज़ कर उसे बचा लेता है। जब चारूदत न्यायालय द्वारा अपराधी घोषित किया जा चुका होता है तो उसी समय वसन्तसेना आकर सच बता देती है कि अपराधी चारूदत नहीं बल्कि शकार है। शकार को सज़ा होती है और आर्यक राजा बन जाता है और चारूदत को एक राज्य प्रदान करता है। नाटक में संजय कुमार, गिरीशचन्द्र भट्ट, कुशाग्र, मुस्कान, रजत शर्मा, शितल, आस्था, पियंका, आंचल, लक्ष्य कुमार, आर्यन शर्मा, आर्यन, भुपिन्द्र शर्मा, अजय कुमार, अभिमन्यू, पंकज शर्मा, अजय कुमार, विवेक कृशन आदि कलाकारों ने अपनी अपनी भूमिकाओं का खूबीसूरती से निभाया। इस नाट्य संध्या में केन्द्रीय संस्कृत विष्वविद्यालय के निदेशक प्रोफैसर मदन मोहन पाठक विशेष रूप् से उपस्थित रहे।

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