सुरभि न्यूज़, कुल्लू।
हिमतरु प्रकाशन समिति द्वारा 14 मार्च को कुल्लू स्थित
प्रेस क्लब कुल्लू के सभागार में एक दिवसीय साहित्यिक गोष्ठी एवं
परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिस महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम में जहां
कोरोनाकाल के दौरान पिं्रट मीडिया पर आए संकट को लेकर सहित्यकारों एवं
पत्रकारों द्वारा विस्तृत परिचर्चा की गई, वहीं कवि-लेखकों द्वारा कविता
पाठ एवं अन्य समसामयिक विषयों पर अपनी बात रखी। कला संस्कृति भाषा
अकादमी, शिमला, जिला भाषा विभाग, कुल्लू एवं प्रेस क्लब कुल्लू के
संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार जयदेव
विद्रोही मुख्यातिथि, वरिष्ठ कवि अजेय बतौर अध्यक्ष सम्मिलित हुए तथा
सेवानिवृत्त जिला लोक-सम्पर्क अधिकारी शेर सिंह व अकादमी के सदस्य डाॅ.
सूरत ठाकुर विशेष अतिथि थे।
संस्था के अध्यक्ष गणेश गनी ने जानकारी दी कि इस महत्त्वपूर्ण आयोजन के
पहले सत्र में कोरोनाकाल के दौरान प्रिंट मीडिया पर आए संकट पर पत्रकारों
तथा साहित्यकारों के विचारों का आदान-प्रदान किया गया तथा आने वाले समय
में मीडिया तथा साहित्य के प्रचार-प्रसार के अन्य माध्यमों पर
विचार-विमर्श किया गया। इस दौरान डा.ॅ उरसेम लता ने परिचर्चा में भाग
लेते हुए कहा कि हिंदी अखबारों को व्यापक स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता
है। पत्रकार मनीष ने अपने विचार सांझा करते हुए कहा कि कारोना काल में
मीडिया के माध्यमों में बदलाव हुआ है बावजूद इसके मीडिया का हरेक
प्रतिनिधि अपने कार्य से विमुख नहीं हुआ तथा कलम के एक सच्चे सिपाही की
भांति अपने दायित्य को निभाया है। सेवानिवृत्त जिला लोक-सम्पर्क अधिकारी
शेर सिंह ने कहा कि भले ही इस दौर में अखबारों की संख्या कम हुई हो लेकिन
मीडिया के अनेक माध्यमों का उदय हुआ है जो सुखद अहसास करवाता है। रत्नेश
त्रिपाठी ने कहा कि पिं्रट मीडिया को गुणवत्ता पर अधिक ध्यान देने की
आवश्यकता है। रंगारंक सिंह मीडिया कर्मियों पर अखबारी लालाओं के दबाव पर
चिंता व्यक्त की। परिचर्चा में पत्रकार कृष ठाकुर, सुरेश शर्मा,
देवेन्द्र गौड़, डाॅ. सूरत ठाकुर, भूपिन्द्र सिंह व गणेश गनी सहित दर्जनों
कवि-लेखकों एवं पत्रकारों ने भाग लिया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कवि पाठ किया गया। कवियों में रंगारंग सिंह
ने मण्डयाली कविता ‘कोरोना ते मेला’, कैलाश गौतम ने ग़ज़ल ‘हुसन वालों का
खुदा लगता है, यार तू सबसे जुदा लगता है’ तथा पुनीत पटियाल ने ‘बचपन की
गलियां-चलो लौट चलें बचपन की गलियों में कवता सुनाकार सबके मन का रिझाया।
भूपेन्द्र गौतम ने ‘कोराना ने हवा का रूख लिया’, फिरासत खान ने ग़ज़ल ‘लाख
रंगत हो खून में खुशबू नहीं तो कुछ भी नहीं’, देवेन्द्र गौड़ ने ‘रख हौसला
वो मंजर भी आएगा, प्यासे के पास चलकर समंद्र भी आएगा’, इंदु भारद्वाज ने
‘आजकल नदी व्यस्त है, अपना चेहरा धोने में’, डीआर चैहाने ने ‘सजदा अदा न
कर सके, इसका ग़म नहीं’, दोत राम पहाड़िया ने लोक गीत ‘देश म्हारा कुल्लू
रा सैबि देशा न प्यारा, भगवान दास ने कविता मत कहो मुझे देवी-पीड़ित हूं
मैं…मुझे नारी रहने दो’, रत्नेश त्रिपाठी ने ‘दे दो मुझे वो हर चीज, जो
तुम फैंक रहे हो कूडा समझ कर’ मुकेश अरोड़ा ने ‘मैं यहां की यहीं पड़ी हूं,
मैं वोही सड़क हूं..’ कमलकांत विद्रोही ने कुल्लुवी कविता ‘आई तू आई पर
बड़ाग किवै पाई’, डाॅ. सूरत ठाकुर ने फाग गीत ‘अब के फागुन पर घर पर रे
बालग अब के फागुन घर आ जा’, जयदेव विद्रोही ने क्षणिका ‘सबसे कम उम्र
लेकर आता है पानी का बुलबुला फिर भी अपने अस्तित्व का प्रभाव छोड़ देता
है’, हिमतरु के अध्यक्ष गणेश गनी ने अपनी कविता ‘समय निकाल लेना गला
सूखाने से पहले, नदी को बता आना कुएं की गवाही मैंडक देगा के माध्यम से
पर्यावरण संरक्षण की अपील की।
कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ कवि अजेय ने इस परिचर्चा एवं साहित्यिक
गोष्ठी के सफल आयाजन को लेकर आयोजकों को बधाई देते हुए कहा कि इस प्रकार
के कार्यक्रमों में विविधता नज़र आती है। उन्होंने कहा कि इस बार हिमतरु
ने सामाजिक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए मीडियों को लेकर भी परिचर्चा
का आयोजन किया जो एक सुखद अहसास करवाता है। उन्होंने कहा साहित्य एवं
पत्रकारारिता का आपस में गहरा संबंध है इसलिए इन विषयों पर चर्चा एक
महत्त्वपूर्ण पहल है। उन्होंने अंत में अपनी कविता ‘एक बुद्ध कविता में
करुणा ढूंढ रहा है’ के माध्यम से कार्यक्रम का समापन किया।
इसके अतिरिक्त कार्यक्रम में हिमतरु के कोषाध्यक्ष सुरेश प्रेमी,
कार्यालय प्रभारी निर्मला ठाकुर सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे।