जो दिखता है…..वो बिकता है-हास्य व्यंग्य

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मदन गुप्ता सपाटू चंडीगढ़। बड़ी कॉमन कहावत है। किसी मैनेजमेंट के धांसू महारथी के पेट की उपज है। यह डायलाग कई हीरो एक आध टी वी प्रोग्राम में कई बार निपटा चुके हैं।
पहले पोलियो दिखता था। जहां नहीं भी दिखता था, वहां भी बिकता था। साल में दो बार, दो बूंद पिलाई जाती थी। पिलाने वाले ने तो कमाए ही लेकिन कई कंपनियों ने पूरे देश को ही पोलियोग्रस्त डिक्लेयर कर के अपने वारे न्यारे किए।
उसके बाद एड्स का नंबर लगा। जिसे यह शाही बीमारी नहीं भी थी, दिन में हर 15 मिनट बाद, बार बार रेडियो और टी.वी. पर डरावने विज्ञापन सुन सुन कर बंदा खुद पर ही शक करने लगता था। किसी ने सरकार से तब ये आंकड़े नहीं मांगे कि कितने लोगों को एड्स हुई, कितने ठीक हुए और सरकारी विभागों ने इस पर कितना लुटाया? सुप्रीमकोर्ट तक को ख्याल नहीं आया जैसे आज लाखों मुकदमें दरकिनार रख सरकार से रोज पूछा जा रहा है-कोरोना देश में घुसा कैसे? आज भी एड्स डिपार्टमेंट उसी शानोशौकत से चल रहे हैं भले ही कोरोना आकर चला भी जाए।
आप हंसते हैं तो दांत दिखते हैं। दिखते हैं तो बिकते हैं। हमें आजतक यह समझ नहीं आया कि टुथपेस्ट में नमक होना चाहिए या नहीं। फलोराइड वाला अच्छा होता है या देसी जड़ी बूटियों वाला? दातुन वातुन …काला या लाल दंतमंजन तो अब गुजरे जमाने की बात रह गई। कोई दांतों की झनझनाहट सुना कर खनखनाहट पैदा कर रहा है तो कोई असली जड़ी बूटियों की फोटो दिखा कर लूट रहा है। उधर डेंटिस्ट को एक दांत दिखाओ तो वो पूरा जबाड़ा रिपेयर करने का पूरा प्लान डिस्काउंट और फीस आसान किस्तों में भरने की सलाह दे देता है।
आज की डेट में कोरोना कहीं दिख रहा है, कहीं वेरियेंट बदल रहा है। जहां लहरें मारेगा वहीं बिकेगा। पर जनाब! इसने किया गजब है। किसी का रोजगार छीना तो किसी को दिया। 2020 में कोरोना की लहर के साथ लंगरों की बहार थी। यह बात भी दीगर थी कि अपनी जेब से कितनों ने लंगर लगाया। लंगर चलते रहे मजदूर भूखे प्यासे भागते रहे। फोटो खिंचते रहे, कोरोना श्री अवार्ड मिलते रहे। एक जनाब को तो लंगर लगाने पर पदम श्री तक मिल गई दूसरे जनाब बौखला के उठ खड़े हुए-मैंने इससे ज्यादा लंगर लगाए…..मुझे पदम भूषण क्यों नहीं?
क्या क्या न बिका कोरोना तेरे लिए? जमीर से लेकर अंतिम कफन किट तक। बेड से लेकर ऑक्सीजन तक। टी वी चैनल तक बिक गए। जिन्हें कोविड-19 का ठीक से मतलब भी नहीं पता था वो भी डिबेट में लड़ लड़ा कर चल लिए। डाक्टर भी चैनल के पैनल पर बाबू राम लाल जैसे अनपढ़ नेता भी। सब कोरोना की टैक्नीकल डिटेल्स बताने में जुटे रहे। ग्लुकोज और नमक के इंजैक्शन भी बिक लिए।
अब आइये देख लें अब और क्या क्या बिकनेवाला है?
चाय की दुकानों पर काढ़े बिकने शुरु हो गए हैं। काफी मशीनों की तरह काढ़ा डिस्पेंसर आने लगेंगे। विवाहों में एक मशीन काढ़े की भी होगी। हलवाई अभी से हल्दी वाला मलाईदार दूध बेच रहे हैं। जूस की दुकानों में अब गिलोय, तुलसी या नीम या एलोवेरा का जूस मिलेगा। छबीलों में शर्बत की जगह अब ऐसे ही जूस मिलेंगे। बस स्टैंडों, रेलवे स्टेशनों, एयर पोर्ट और सार्वजनिक स्थानों पर एटीएम जैसे बूथों में भाप लेने की मशीनें रखी नजर आएंगी। हो सकता है धार्मिक स्थानों पर ऐसी मशीनों के नीचे लिखा हो स्व. फलां की स्मृति में यह मशीन उनके पुत्र ने इस तारीख को इन्सटाल करवाई।

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