प्रताप अरनोट सुरभि न्यूज़ ब्यूरो
बैजनाथ विधनसभा क्षेत्रा में आज तक राजनीति के क्षेत्रा में निर्वाचित विधयकों में पहला चुनाव सन् 1967 में हुआ जिसमें बी राम सीपीआई से विधायक चुने गए। सन् 1972 से 1990 तक संत राम, सन् 1990 से 1993 तक दुलो राम, सन् 1993 से 1998 तक संत राम, सन् 1998 से कुछ महिने तक दुलो राम, सन् 1998 से 2003 तक संत राम, सन् 2003 से 2012 तक सुघीर शर्मा, सन् 2012 से 2017 तक किशोरी लाल तथा वर्तमान में सन् 2017 से मुलख राज विधायक के पद आसिन है
छोटाभंगाल के बड़ाग्रां को जोड़ने वाला बीड़-बड़ाग्रां सड़क मार्ग 6 दशकों से राजनीति के शिकार के चलते अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार छोटा भंगाल क्षेत्र पहले अंग्रेजों के अधीन था। सन् 1947 के बाद कांगड़ा क्षेत्र पंजाब राज्य में आ गया जो कुल्लू तक फैला हुआ था। सन् 1962-1964 में प्रताप सिंह कैरों पंजाब के मुख्यमन्त्री बने। प्रताप सिंह कैरों कुल्लू जाना चाहते थे परन्तु वह अपने राज्य से ही होकर कुल्लू जाना चाहते थे। परन्तु कुल्लू जाने के लिए पंजाब राज्य में पड़ने वाले क्षेत्र से कोई भी सड़क मार्ग कुल्लू के लिए नहीं बना था। अतः कैरों ने बीड़-बिलिंग होते हुए छोटा भगांल से कुल्लू के लिए सड़क बनाने की योजना बनाई। वर्ष 1962 में इस सड़क मार्ग का कार्य शुरू कर बीड़ से राजगुन्धा तक जीप योग्य तथा राजगुन्धा से कुल्लू के लिय तीन फुट चैड़ा रज्जू मार्ग पंजाब राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने बनाया जिसकी ट्रेस लाइन आज भी बरोट तक दिखाई देती है। मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों छोटा भगांल के दियोट गांव तक इसी सड़क मार्ग से होते हुए आये थे। सन 1964 में प्रताप सिंह कैरों का निधन होने से इस सड़क मार्ग कि आज तक किसी भी सरकार ने सुध नहीं ली। सन 1967 में काँगड़ा को हिमाचल प्रदेश से मिला दिया तब से आज तक कितनी सरकारें आई और गई परन्तु इस सड़क मार्ग को सभी ने अनदेखा कर सड़क निर्माण अधर में लटका हुआ है। उलेखनीय है कि बड़ा भंगाल के लिए मुख्य मार्ग बीड़-बिलिंग-राज्गुन्धा से बड़ा भंगल के लिए पलाचक हो कर आगे जाता है। आज भी बड़ा भगांल के निवासियों के लिए सारा जरूरत का सामान घोडों के माध्यम से ले जाया जाता है।
उल्लेखनीय है कि चैहार घाटी बरोट जब यातायात सुविध से नहीं जुड़ा था तो छोटा भगांल के लोगों के लिए पैदल एक रास्ता वाया राजगुंध से होकर बीलिंग-बीड़ निकलता है तथा दूसरा रास्ता बरोट-जोगिन्द्र नगर वाया डीगली तथा तीसरा रास्ता झटींगरी-घटासनी होकर जोगिन्द्र नगर से जुडता था। वाया बीलिंग-बीड़ रास्ता बहुत दुर्गम व जोखिम भरा था। सबसे पुराना पैदल रास्ता मात्र बरोट-जोगिन्द्र नगर वाया डीगली वाला था जो कम दूरी व सुरक्षित था। सन् 1932 में शानन बीजली घर बन जाने के बाद चौहार घाटी तथा छोटा भगांल की जनता को ट्राली लाईन में सफर करने की सुविधा मिलने लगी परन्तु उसके लिए शानन बीजली बोर्ड से अनुमति लेना जरूरी था। इस ट्राली लाईन चलने से चैहार घाटी की बरोट से साथ लगती कुछ पंचायत व छोटा भगांल के लोगों को आने-जाने में बहुत बडी राहत मिली। सन् 1971 में बरोट सड़क सुविधा से जुड़ने के बाद छोटा भगांल की सात पंचायतों के लोग को भी राहत मिली। बरोट-लोहारडी छः किलामीटर सन् 1979 में, बरोट-दियोट तीन किलोमीटर 1981में, बरोट-कोठी कोहड़ 12 किलोमीटर 1984 में तथा बरोट-बड़ाग्रां 16 किलोमीटर 1989 में बस सुविध से जुड़े। बड़ाग्रां-राजगुंध से बिलिंग-बीड़ 32 किलोमीटर सड़क मार्ग का निर्माण छः दशकों से अध्र में लटका हुआ है।
कैरों द्वारा खोला स्कूल बंद
दियोट गाँव में उन्होंने प्राईमरी स्कूल भी खोला था जिसमे 150 बच्चों को शिक्षा, खाने व रहने की ब्यवस्था बिलकुल निशुल्क दी जाती थी परन्तु यह स्कूल भी राजनीति के चलते सन 2000 के आसपास बंद हो गया।
पलाचक विश्रामगृह बना खंडहर
तत्कालीन पंजाब के चीफ इंजीनियर कर्नल बी सी बैटी बरोट-राजगुन्धा-पलाचक होकर 1922 के बाद शानन पन बिजली घर निर्माण के दौरान बड़ा भंगाल गए थे। उनकी योजना थी कि बड़ा भंगाल में बहती नदी का पानी सुरंग द्वारा उहल नदी में डाला जाये ताकि शानन पन बिजली घर को शर्दियों में पानी कि कमी न हो। पलाचक में उन्होंने एक विश्रामगृह बनाया था जो आज भी खंडहर के रूप में देखा जा सकता है।
धन और समय कि बचत
उलेखनीय है कि धरमान, कोठी कोहड़ तथा बड़ा ग्रां पंचायत के लोंगों को अपने सरकारी व गैर सरकारी कार्य करवाने तहसील बैजनाथ 76 किलोमीटर या फिर जिला मुख्यालय धर्मशाला 126 किलोमीटर जाना पड़ता है जिससे लोगों का धन और समय बर्वाद हो रहा है। अगर बड़ाग्रां-बीड सड़क मार्ग बस योग्य बन जाता तो तीन पंचायत के लोगों को मात्र बैजनाथ 45 तथा धर्मशाला 96 किलोमीटर का सपफ़र तय करना पड़ता जिससे अन्य सभी सुविधा मिलने के साथ धन और समय कि बचत लोंगो की हो सकती है।