सुरभि न्यूज़ ब्यूरो
कुल्लू
हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में चल रहे अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव अपनी अनूठी परम्परा के लिए विख्यात है। कुल्लू दशहरा के दुसरे दिन सदियों से चली आ रही भगवान नरसिंह की जलेब की अनूठी परंपरा आज भी उसी तरह निभाई जा रही है जिस तरह सदियों पहले निभाई जाती थी। जलेब के सबसे आगे नरसिंह की घोड़ी सज धज चलती है उसके पीछे देवी देवता के हारियाने ढोल नगाड़ों की थाप में नाचते हुए आगे-आगे चले और उसके पीछे कुल्लू के राजा महेश्वर सिंह को काहर पालकी में उठाकर चलते रहे। इस जलेब में पालकी में सवार होकर भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ी वरदार महेश्वर सिंह नरसिंह की ढाल को गोद रखते हैं।
राजा की पालकी पीछे महाराजा कोठी क्षेत्र के देवी देवता नरसिंह की जलेब में भाग लिया। भगवान रघुनाथ के अस्थाई शिविर के साथ लगी राजा की चानणी से लेकर अस्पताल, कॉलेज गेट होते हुए वापस उसी स्थान तक ढोल नगाड़ों की थाप पर नरसिंह की जलेब समाप्त हुई। इस दिन महाराजा कोठी क्षेत्र के देवी देवताओं में हुरंग नारायण जौंगा, वीर कैला, लौट, वीर कैला कमांद, पांच वीर खलियाणी, महावीर जौंगा तथा जम्गग्नि ऋषि चकनाणी देवी देवता अपने हारियानों के साथ ढोल नगाड़ों की थाप पर हिस्सा लिया। जलेब में सभी देवी-देवतायों ने वाद्य यंत्रों की थाप पर नृत्य किया जिसका हजारों दर्शकों ने देखने का भरपूर आनंद लिया जबकि देव नृत्य को देखने उमड़े लोगों ने इस दौरान देवी देवताओं से शुभ आशीर्वाद प्राप्त किया।