सुरभि न्यूज़ डेस्क
खुशी राम ठाकुर, बरोट
उत्तरी भारत में मनाया जाने वाले लोहड़ी के पावन पर्व को मनाने के लिए चौहार घाटी तथा छोटाभंगाल में तैयारियां चल पड़ी है। घाटी की महिलाएं 13 जनवरी से आरम्भ होने वाले लोहड़ी के पावन पर्व के चलते अपने-अपने घरों की लिपाई-पोताई के कार्य में जुट गई है। घाटी के दुर्गम गाँवों में सर्दी के मौसम में आने वाला यह पर्व 13 जनवरी से धूमधाम से मनाना आरम्भ हो जाएगा और यह पर्व 10 से 15 दिन तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा। लोहड़ी पर्व की शाम को लोग अपने–अपने घरों में जहां कई प्रकार के स्वादिष्ट पकवान बनाकर अपने सगे सम्बन्धियों के साथ मिल बैठकर खाने का आनंद उठाएंगे वहीं 14 जनवरी को मकर संक्रांति की सुबह लोग अपने ईष्ट देवी–देवताओं की पूजा अर्चना कर राजमाह तथा माह की बनाई गई खिचड़ी का भरपूर आनंद भी उठाएंगे। घाटी के बुजूर्ग लोगों में मखौली राम, धौगरी राम, अमर नाथ, रामदेव, शेवरू राम, मोहन सिंह तथा सुख राम का कहना है कि लोहड़ी के तीसरे दिन चौहार घाटी के दुर्गम गाँवों में कोलू-कोलू नामक का लोकल पर्व का भी आयोजन किया जाएगा। कोलू पर्व के लोग सगे सम्बन्धियों को अपने–अपने घर बुलाते हैं और घर आए मेहमानों की खूब मेहनावाजी की जाएगी मगर बदलते समय में इस पर्व को मनाने का सिलसिला दिन प्रतिदन कम ही होता जा रहा है। मगर फिर भी बच्चों महिलाओं तथा बुजुर्गों में लोहडी पर्व को लेकर खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। इसके साथ–साथ छोटाभंगाल में लोहड़ी पर्व को हट कर मनाया जाता है। इस घाटी में चौहार घाटी के तर्ज़ पर लोहडी पर्व को मनाना तो सदियों से चला आ रहा है मगर इस घाटी में कोलू–कोलू नामक लोकल पर्व तो नही मनाते है मगर घाटी के अधिकाँश दुर्गम गाँवों में लोहडी मकर संक्रांति के दूसरे दिन गाँववासियों द्वारा सराला नामक लोकल पर्व जरूर मनाया जाता है। गाँवों में यह सराला नामक लोकल पर्व लगभग एक सप्ताह तक मनाया जाता है। इस दौरान प्रतिदिन गाँव के लोग बारी–बारी 10 से 15 परिवार मिलकर खानपान की सामग्री को एक चुनिन्दा परिवार के आंगन में एकत्रित कर उस गाँव के अन्य सभी लोग बैठकर भरपूर आनंद उठाते हैं। यह सिलसिला लगभग आठ से दस दिन तक लगातार चलता है और उसके बाद ही यह लोहड़ी का पर्व समाप्त होता है।