प्रदेश में आयोजित किये जाने वाले नाट्योत्सवों के लिए नाट्य दलों व नाटकों की चयन प्रक्रिया से नाखुश प्रदेश के रंगकर्मी

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 सुरभि न्यूज़ ब्यूरो 
शिमला/कुल्लू

कुल्लू जिला मुख्यालय पर अटल सदन के सभागार में 13 से 18 मार्च तक आयोजित होने वाले राज्य स्तरीय नाट्य उत्सव में नाट्य दलों व नाटकों के चयन की पारदर्शिता को लेकर प्रदेश के अनेक रंगकर्मी एवं रंग संस्थाएं नाखुश हैं।

प्रदेश की जानी मानी नाट्य संस्था आकार थिएटर सोसाइटी के सचिव एवं वरिष्ठ रंगकर्मी दीप कुमार, एक्टिंग स्पेस थिएटर ग्रुप के सचिव तथा जाने माने अभिनेता राज इंद्र शर्मा (हैप्पी), रंगप्रिया थिएटर सोसाइटी के उपाध्यक्ष मोहन कौशिक एवं रंगकर्मी ललित शर्मा तथा प्रदेश के अनेक रंगकर्मियों ने इस उत्सव में नाट्य दलों व नाटकों की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं।

रंगकर्मियों के अनुसार भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश, समय-समय पर प्रदेश के विभिन्न भागों में राज्यस्तरीय नाट्योत्सवों का आयोजन करता है जो एक बहुत अच्छी बात है।

रंगकर्मियों कहना है कि हिमाचल में वर्षों से अनेक नाट्य संस्थाएं नाटकों के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं लेकिन सरकार द्वारा आयोजित इन नाट्य उत्सवों में बार-बार केवल कुछ गिनी चुनी नाट्य संस्थाओं को ही आमंत्रित किया जाता है।

जिनमें से कुछ नाट्य संस्थाएं तो ऐसी हैं जो मात्र इन उत्सवों के लिये ही नाटक तैयार करती हैं और ऐसी नाट्य संस्थाओं के नाटक भी स्तरहीन होते हैं।

रंगकर्मियों का कहना है कि भारत के किसी भी प्रदेश में जब कोई राज्यस्तरीय या राष्ट्रस्तरीय नाट्योत्सवों का आयोजन किया जाता है तो
सर्वप्रथम नाट्योदलों से आवेदन मांगे जाते हैं। उसके बाद चयन प्रक्रिया शुरू होती है।

चयन समिति में विशेषज्ञ नाटकों को देखने के बाद उत्सव में होने वाले नाटकों का चयन करते हैं। लेकिन हैरत इस बात की है कि हिमाचल प्रदेश में होने वाले इन नाट्योत्सवों में इस तरह की चयन प्रक्रिया से नाटकों का चयन नहीं हो रहा है, जोकि दुर्भाग्यपूर्ण है।

इन उत्सवों में नाटकों के चयन को लेकर कई रंगकर्मियों ने कुछ सवाल उठाए हैं और जानना चाहा है कि नाटकों का चयन किस आधार पर किया जाता है और इन उत्सवों में होने वाले नाटकों के लिये आवेदन कब माँगा जाता है? क्या नाटकों के चयन के लिये कोई चयन समिति गठित होती है और चयनकर्ता कौन होता हैं?

नाट्य दलों व नाटकों के चयन में पारदर्शिता क्यों नहीं है? हर नाट्योत्सव में हर बार कुछ गिने-चुने दलों को ही क्यों मौका दिया जाता है? प्रदेश के सभी रंगकर्मियों को जानकारियों के अभाव में क्यों रखा जाता है?

प्रदेश के अनेक रंगकर्मियों के अनुसार भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग में भी व्यवस्था परिवर्तन की बहुत आवश्यकता है। ताकि कतार में खड़े आखि़री कलाकार को भी अपनी प्रतिभा दिखाने के भरपूर मौके मिल सके। कहा कि प्रदेश में कुल मिलाकर 4-5 ही जिले ऐसे हैं जहाँ नाट्य संस्थाएं नाटक करती हैं।

इन जिलों में कई नाट्य संस्थाएं अच्छा काम करती हैं। लेकिन अक्सर देखने में आता है कि हर बार किसी न किसी प्रभाव से गिनी-चुनी संस्थाएं ही इन उत्सवों के लिये चयनित होती हैं।

जो अन्य संस्थाएं विषम परिस्थितियों में भी अपने स्त्रोतों के बल पर उत्कृष्ट कार्य कर रही हैं, उन्हें प्रोत्साहित नहीं किया जाता है।

वरिष्ठ रंगकर्मी दीप कुमार का कहना है कि प्रदेश में भविष्य में होने वाले हर राज्यस्तरीय एवं राष्ट्रीय नाट्य उत्सवों की जानकारी प्रत्येक
रंगकर्मी एवं नाट्य संस्था को होनी चाहिए। ताकि इच्छुक संस्थाएं इसके लिए आवेदन कर सकें और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें।

वहीं इस मसले पर कुल्लू की जिला भाषा अधिकारी सुनीला ठाकुर का कहना है कि हालांकि यह प्रदेश स्तर का मामला है। लेकिन इस तरह के नाट्योत्सव के लिए हम उन्हीं संस्थाओं को आमंत्रित करते हैं, जिनके कार्यक्रम हमने देखे होते हैं।

उनका कहना है कि यह कोई प्रतियोगिता नहीं है। ऐसे में जिन संस्थाओं को हम बेहतरी से जानते हैं और उनका प्रदर्शन भी अच्छा होता है,
उनको ही हमने इस नाट्योत्सव के लिए अलग अलग जिलों से आमंत्रित किया है।

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