सुरभि न्यूज़ ब्यूरो
जोगिन्दर नगर
जोगिन्दर नगर से कोटली को जोड़ने वाले एक मात्र कून का तर पुल के बरसात में बह जाने के 6 महीने बाद भी पुल निर्माण के प्रति प्रदेश सरकार के उदासीन रवैये का कड़ा संज्ञान लेते हुए हिमाचल किसान सभा के राज्य उपाध्यक्ष एवं जिला परिषद सदस्य कुशाल भारद्वाज ने आंदोलन शुरू करने की चेतावनी दी है।
उन्होंने कहा कि यह पुल दो तहसीलों को जोड़ने की जीवन-रेखा के समान था। जब यह पुल बना था तो उस वक्त कुन-का-तर में आज़ादी के पहले से मौजूद एक पैदल चलने वाला पुल भी था। मच्छ्याल से आगे की पंचायतों के लोग इसी पुल से कोटली व मंडी को पैदल आते जाते थे। नया ट्राफिक ब्रिज बनने के बाद प्रदेश की विभिन्न सरकारों और विधायकों ने इस ऐतिहासिक पुल की कोई सुध नहीं ली तथा कई वर्षों से यह पुल पूरी तरह से गलसड़ गया तथा पैदल आवाजाही लायक नहीं बचा।
इस वर्ष बरसात में आई प्रलयकारी बाढ़ में नया ट्राफिक ब्रिज भी बह गया तथा पिछले 6 महीने से कोटली व तुंगल घाटी की जनता तथा जोगिन्दर नगर की कई पंचायतों की जनता भारी परेशानी झेल रही है। सैंकड़ों लोग इस सड़क मार्ग से ब्यास नदी के आर-पार आते जाते थे, लेकिन अब किसी भी तरह के वाहन का आवागमन ब्यास नदी के आर-पार को नहीं हो रहा है।
कुशाल भारद्वाज ने कहा कि पुल के ढहने के बाद उन्होंने स्वयं इस मुद्दे को सरकार के समक्ष उठाया था तथा यह मांग रखी थी कि नए पुल के निर्माण के लिए आवश्यक प्रक्रिया शुरू की जाये तथा फिलहाल जनता की सुविधा को ध्यान में रखते हुए यहाँ पर एक वैली ब्रिज बनाकर वाहनों की आवाजाही शुरू की जाये। इस मुद्दे को अगस्त महीने में हुई जिला परिषद की बैठक में प्रमुखता से उठाकर उन्होंने इस बारे प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया था।
उन्होंने कहा कि यह अति खेदजनक है कि प्रदेश सरकार को जनता की इस पीड़ा की कोई चिंता ही नहीं है। सतारूढ़ पार्टी के बड़ी-बड़ी डींगें मारने वाले नेता लोग भी इस मसले पर चुपी साधे हुए हैं। मंडी सदर व जोगिन्दर नगर से भाजपा के विधायक जीतकर विधान सभा में गए हैं और वे दोनों भी इस मसले पर मौनव्रत धारण किए हुए हैं। यह भी अफसोसजनक है कि दोनों ही विधायकों ने जनता की इस समस्या से मुंह फेर लिया है।
कुशाल भारद्वाज ने मांग की कि मंडी से जोगिन्दर नगर वाया कोटली चलने वाली बसों को फिलहाल नदी के दोनों छोरों से पूर्व निर्धारित समयानुसार चलाया जाये तथा 31 जनवरी से पहले वैली ब्रिज तैयार कर ट्रैफिक का आवागमन शुरू करवाया जाये। उन्होंने कहा कि जिला परिषद की आगामी बैठक में वे इस मसले को फिर से उठाएंगे। हिमाचल किसान सभा ने भी इस मुद्दे पर आंदोलन की तैयारी कर ली है तथा एक बार फिर से गाँव-गाँव बैठकें आयोजित कर बड़े आंदोलन की शुरुआत करेंगे। उम्मीद है कि सरकार जनता को सुविधा देने के लिए शीघ्र ही पहल करेगी। छः महीने का समय बहुत होता है, अब सब्र का बांध भी टूट गया है और अब आंदोलन ही एकमात्र रास्ता है।