सुरभि न्यूज़
नरेन्द्र भारती, भंगरोटू
देश भर में प्रतिवर्ष की तरह 11 से 17 जनवरी 2024 तक सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा है। ऐसे आयोजनों पऱ करोड़ों रुपये खर्च किये जाते है लेकिन सड़क हादसे कम नहीं हो रहे हैं। मानव जीवन अनमोल है। देश के नागरिको को यातायात के नियमों का पालन करना चाहिए ताकि सड़क हादसों पर रोक लग सके। सड़क सुरक्षा के ऐसे आयोजन औपचारिकता भर रह गए हैं।
प्रतिवर्ष सड़क सुरक्षा हेतू करोडों रुपया बहाया जाता है मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात। अगर सही तरीके से पैसा खर्च किया जाए तो इन हादसो पर विराम लग सकता है मगर ऐसा नहीं हो रहा है। प्रतिवर्ष डेढ लाख लोग सड़क हादसों में मारे जाते है। हर रोज इतने भीषण हादसे हो रहे है कि पूरे के पूरे परिवार मौत की नीद सो रहे हैं।
कोहरे के कारण से हजारों सड़क हादसे हो रहे है जिससे प्रतिदिन लोग मारे जा रहे है। यातायात के नियमों का पालन न करने पर ही इन हादसों में निरंतर वृद्वि हो रही है। सड़क सुरक्षा सप्ताह में प्रशासन द्वारा लोगों को इन सात दिनों में यातायात नियमों के बारे में बताया जाता है फिर पूरा वर्ष लोग अपनी मनमानी करते है और यातयात नियमों का उल्लंघन करते है।
लापरवाही से सड़कें रक्तरंजित हो कई घरों के चिराग बूझ रहें हैं। बच्चे अनाथ हो रहे हैं। युवाओं को जागरुक करना होगा क्योकि युवा ही विकराल हो रहे सड़क हादसों की समस्या को रोक सकते है। लाॅकडाउन में सड़क हादसों पर लगाम लग गई थी। देश में जब 22 मार्च 2020 को जब लाॅकडाउन लगा था तब हादसे पूरी तरह रुक गए थे। लाॅकडाउन के खुलते ही सड़क हादसों में अप्रत्याशित बृद्धि हुई है।
देश में हर चार मिनट में एक व्यक्ति सड़क हादसे में मारा जाता है। आंकडें बताते है कि सड़क दुर्घटनाओं में भारत अन्य देशों से शीर्ष पर हैं। शराब पीकर बाहन चलाना तथा चलते वाहनों में मोबाइल का प्रयोग ही हादसों का मुख्य कारण माना जा रहा है। इसके कारण ही लाखो लोग सड़क हादसों में मौत का शिकार होते है।
धुंध के कारण आपसी टक्कर में दुर्घटनाएं होती हैं। पंजाब, दिल्ली व उतरप्रदेश व हिमाचल प्रदेश में धूंध के कारण दर्जनों हादसों में सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं। सड़क हादसों को रोकने के लिए एक नीति बनानी होगी। जागरुकता अभियान चलाने होगें। सरकारों को लोगों को यातयात नियमों से संबधित शिविरों का आयोजन करना चाहिए।
आज करोडोें के हिसाब से वाहन पंजीकृत है मगर सही ढंग से नियमों अनुसार वाहन चलाने वालो की संख्या कम है क्योकि आधे से ज्यादा लोगों को यातयात के नियमों का ज्ञान तक नहीं होता। पुलिस प्रशासन चालान काटकर अपना कर्तव्य निभा रहे है मगर चालान इसका हल नहीं है। इसका स्थायी समाधान ढूंढना होगा।
बिना हैलमैट के नाबालिग से लेकर अधेड़ उम्र के लोग वाहनो को हवा में चलाते है और दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं। जानबूझकर व नशे की हालत में दुर्घटना करने वाले चालकों के लाईसैस रदद करने चाहिए। ज्यादातर हादसे में नाबालिग चालक ही मारे जाते हैं। प्रशासन की लापरवाही के कारण भी इसमें साफ झलकती है आज ज्यादातर युवा व लोग शराब पीकर व अन्य प्रकार का नशा करकेेे वाहन चलाते है नतीजन खुद ही मौत को दावत देते हैं।
भले ही पुलिस यन्त्रों के माध्यम से शराब पीकर वाहन चलाने वालों पर शिकंजा कस रही है मगर फिर भी लोग नियमों का उल्लघन करने से बाज नहीं आ रहे हैं। बढती सड़क दुर्घटनाओें के अनेक कारण है। सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि 80 प्रतिशत हादसे मानवीय लापरवाही के कारण होते हैं। लापरवाह लोग सीट बैल्ट तक नहीं लगाते और तेज रफतार में वाहन चलाते हैं।
देश में सड़क हादसों में स्कूली बच्चों के मारे जाने के हादसे भी समय-समय पर होते रहते हैं मगर कुछ दिन चैक रखा जाता है फिर वही परिपाटी चलती रहती है। जबकि होना तो यह चाहिए कि इन लापरवाह चालको को सजा देनी चाहिए ताकि मासूम बेमोत न मारे जा सके।
अक्सर देखा गया है कि वाहन चालकों के पास प्राथमिक चिकित्सा बाकस तक नहीं होतें ताकि आपातकालिन स्थिती में प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करवाई जा सके। हर साल नवरात्रों में श्रध्दालू मंदिरों में ट्रको में जाते है और गाड़ियां दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है तथा मारे जाते हैं।ओबरलोडिग से भी ज्यादातर हादसे होते हैं। सरकार को इन हादसों से सबक लेना चाहिए और व्यवस्था की खामियों को दूर करना चाहिए। सरकारों को अपना दायित्व निभाना चाहिए ताकि सड़क दादसों पर पूरी तरह रोक लग सके।