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सुरभि न्यूज़

खुशी राम ठाकुर, बरोट

छोटाभंगाल व चौहार घाटी जिला मंडी व कांगड़ा के अंतिम छोर एक ही घाटी में बसा यह क्षेत्र राजनीती के चलते दो जिलों में बंट कर आठ दशकों से विकास के लिए तरस रहा है। दोनों जिलों के इन क्षेत्रों का रहन-सहन, खान-पान, रीती-रिवाज, मेले, त्यौहार, उत्सव तथा भौगोलिक स्थिति एक जैसी होने के साथ ब्यापारिक, शिक्षा, स्वास्थ्य व् अन्य सभी सुविधाएँ केंद्र स्थान बरोट व मुल्थान में ही उपलब्ध है। दो जिलों में बंटे इस क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित करने तथा एक तहसील बनाने की मांग स्थानीय लोग कई सालों से करते आ रहे है परन्तु किसी भी सरकार ने इनकी इस मांग को गंभीरता से नहीं सोचा। दोनों क्षेत्र के लोगों का कहना है कि जनजातीय क्षेत्र घोषित करने तथा आपस में सम्लित कर एक तहसील बनाए बिना यहां का समुचित विकास की कल्पना करना भी मुशिकल है। आज़ादी के लगभग आठ दशक बाद भी औद्यौगिक, सड़क, शिक्षा तथा स्वास्थ्य की मुलभूत सुविधा के लिए क्षेत्र के लोग आज भी  तरस रहे है।

उल्लेखनीय है कि छोटाभंगाल कि सात पंचायत  व चौहार घाटी

 

घाटियों की जिला परिषद सदस्य पवना देवी तथा शारदा देवी ने ने
बताया कि घाटियों के अधिकाँश गाँव अब भी सड़क व परिवहन सुविधा से वंचित ही है और यहां पर औधोगिक
प्रशिक्षण संस्थान भी नहीं है | उनका कहना है कि दोनों घाटियों में प्राथमिक पाठशालाओं से लेकर जमा दो तक
की पाठशालाएं है और छोटा भंगाल घाटी में एक महाविद्यालय भी स्थित है मगर उसके आगे की पढ़ाई के लिए
बच्चों को घाटियों से कई – कई किलोमीटर दूर में स्थित औधोगिक प्रशिक्षण केन्द्रों में जाना पड़ता है जिसके
चलते अमीर परिवार से संबंध रखने वाले बच्चे तो वहां जाकर प्रशिक्षण तो ले लेते हैं मगर गरीब परिवार से संबंध
रखने वाले बच्चे बिल्कुल वंचित रह जाते हैं | उनका कहना है कि नवंबर 2014 सर्वेक्षण के लिए आए तत्कालीन
उपाध्यक्ष एवं लाहुल स्पीति के विधायक रवि ठाकुर ने इस मांग जयाज ठहराया तथा केन्द्र सरकार को इसके लिए
सकारात्मक रिपोर्ट भी सौंप दी थी मगर उसके बावजूद आजतक कोई भी निर्णय नहीं हो पाया है | उन्होंने कांगड़ा
– चम्बा के नवनिर्वाचित सांसद राजीव भारद्वाज और मंडी की सांसद कंगना रनौत से मांग की है कि इन दुर्गम
घाटियों को जनजातीय दर्ज़ा दिलवाने के लिए यहाँ का दौरा कर विकास कार्य में योगदान दें |

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