जोगिन्दर नगर के दिलदार सिंह प्रतिवर्ष 3 से 4 टन ट्राउट मछली का कर रहे उत्पादन

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सुरभि न्यूज़

जोगिन्दर नगर, 21 अगस्त

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल की ग्राम पंचायत मसौली के गांव पहलून निवासी 57 वर्षीय दिलदार सिंह के लिये ट्राउट मछली पालन पारिवारिक आजीविका का मुख्य आधार बना है। वर्ष 2008 में महज दो टैंक निर्माण से ट्राउट मछली पालन का शुरू किया। उनका यह कार्य आज भी जारी है। वर्तमान में वे प्रतिवर्ष लगभग 3 से 4 टन रेनबो ट्राउट मछली का उत्पादन कर औसतन 3 से 4 लाख रूपये की शुद्ध आय सृजित कर रहे हैं। दिलदार सिंह के ट्राउट मछली फार्म में तैयार रेनबो मछली का स्वाद हिमाचल प्रदेश के प्रमुख शहरों शिमला, धर्मशाला, पर्यटन नगरी मनाली के अतिरिक्त दिल्ली, चंडीगढ़ जैसे बड़े शहर भी चख रहे हैं।
बड़े ही हंसमुख व खुशमिजाज व्यक्तित्व के धनी दिलदार सिंह का कहना है कि अस्सी के दशक से ही वे खेती-बाड़ी व पशुपालन से जुड़े रहे हैं। उन्होंने जीवन के शुरूआती दिनों में सब्जी एवं दुग्ध उत्पादन के माध्यम से परिवार की आर्थिकी को सुदृढ़ बनाने का कार्य शुरू किया। वर्ष 2008 में जब उन्हें मत्स्य पालन विभाग की योजना की जानकारी मिली तो उन्होंने ट्राउट मछली पालन की दिशा में कदम बढ़ाए। सरकार की ओर से दो टैंक निर्माण एवं फीड इत्यादि के लिए उन्हें लगभग 55 हजार रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ।
इसके बाद वर्ष 2012-13 में दो तथा वर्ष 2016-17 में भी दो अतिरिक्त टैंक निर्माण के लिये सरकार से आर्थिक मदद प्राप्त हुई। शुरूआती दौर में वे प्रतिवर्ष लगभग 1 टन ट्राउट मछली का उत्पादन करने लगे। इसके बाद यह आंकड़ा बढक़र डेढ़ से दो टन तथा वर्तमान में लगभग 3 से 4 टन तक पहुंच चुका है। उनका कहना है कि रेनबो ट्राउट मछली पालन से वे प्रति वर्ष औसतन 3 से 4 लाख रूपये की शुद्ध आय सृजित कर पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 में ट्राउट मछली की हैचरी भी तैयार करने में कामयाबी पाई है। अब वे ट्राउट मछली का बीज स्वयं तैयार करते हैं तथा आसपास के अन्य किसानों एवं मछली उत्पादकों को भी उपलब्ध करवाते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग का ट्राउट मछली उत्पादन पर भी पड़ रहा प्रभाव, बीमारियों का बना रहता है खतरा
दिलदार सिंह का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग का असर ट्राउट मछली उत्पादन पर भी देखा जा रहा है। जल्दी पिघलते ग्लेशियरों के कारण गत वर्षों के मुकाबले पानी की ठंडक लगातार कम हो रही है। पानी का तापमान बढ़ने से ट्राउट मछलियों के विकास में असर पड़ता है। इसके अलावा फंगस सहित अन्य बीमारियों का भी खतरा बना रहता है। मानसून मौसम में भारी बरसात के कारण दूसरे अन्य खतरे भी ट्राउट मछली उत्पादन में बाधक बनते हैं।
वर्ष 2014 में सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से हो चुके हैं सम्मानित, ट्राउट मछली पालन में हासिल किया है प्रशिक्षण
दिलदार सिंह को वर्ष 2014 में प्रगतिशील किसान के नाते जिला स्तर पर सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इस दौरान उन्हें 10 हजार रुपये का नकद इनाम तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया है। उन्होंने वर्ष 2012 में शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, भीमताल, उत्तराखंड से ट्राउट मछली पालन में तीन दिन का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है। इसके अतिरिक्त पतलीकूहल ट्राउट मछली फार्म में वर्ष 2018, वर्ष 2014 व 2017 में महाशीर मछली प्रजनन फार्म, जोगिन्दर नगर में भी तीन-तीन दिन का प्रशिक्षण भी शामिल है।
बेहतर विपणन व प्रशिक्षण की मिले सुविधा तो ट्राउट मछली उत्पादन में आ सकता है क्रांतिकारी बदलाव
दिलदार सिंह कहते हैं कि उन्हें ट्राउट मछली को बड़े बाजारों तक पहुंचाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वे कहते हैं कि बस के माध्यम से ही दिल्ली, चंडीगढ़ सहित प्रदेश के अन्य क्षेत्रों को सप्लाई दी जाती है। यदि ट्राउट मछली विपणन की दिशा में कुछ मदद मिले तो इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। उन्होंने ट्राउट मछली पालन को लेकर समय-समय पर गहन प्रशिक्षण की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
दिलदार सिंह का कहना है कि ट्राउट मछली पालन के क्षेत्र में रोजगार की बेहतरीन संभावनाएं मौजूद हैं। उन्होंने सरकार की योजना का लाभ उठाते हुए शिक्षित युवाओं से ट्राउट मछली उत्पादन के क्षेत्र में जुडऩे का भी आह्वान किया है।
सहायक निदेशक मात्स्यिकी विभाग मंडी नीतू सिंह का कहना है कि प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत सरकार ट्राउट मछली पालन इकाई स्थापित करने को आर्थिक मदद प्रदान कर रही है। उनका कहना है कि एक ट्राउट मछली उत्पादन इकाई को क्रियाशील बनाने के लिए जलाशय सहित अन्य जरूरतों के लिये अनुमानित साढ़े पांच लाख रुपये का खर्च आता है। जिसके लिये सरकार कुल लागत का सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को 40 प्रतिशत जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं के लिये 60 प्रतिशत का अनुदान मुहैया करवा रही है।
उन्होंने बताया कि जिला मंडी में 80 किसानों व मत्स्य पालकों के माध्यम से 178 ट्राउट मछली उत्पादन इकाईयां कार्य कर रही हैं। जिनके माध्यम से प्रतिवर्ष लगभग 50 मीट्रिक टन ट्राउट मछली का उत्पादन हो रहा है।

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