सुरभि न्यूज़ ब्यूरो
कुल्लू, 05 सितबंर
हिमाचल प्रदेश में शादी-विवाहों, सामाजिक व धार्मिक आयोजनों में गावों में परपंरा के अनुसार खाना परोसने में टोर के पत्तों से बनी पतलों, डोने तथा खावों का इस्तेमाल किया जाता था। परन्तु आजकल इन आयोजनों में बाजार में रेडीमेट डिस्पोजल थालियां, डोने व गिलास बीना भाग दौड़ किए आसानी से मिल जोते है जिससे हाथ से बनी पत्तलों का रिवाज खत्म होता चला गया। हाथ से बनी टोर की पत्तलो में धाम खाने में स्वाद से भरपपुर अलग से आंनद की अनुभूति होती हैै। जहां टोर के पत्तलों का प्रयोग हर सभी शुभ अशुभ आयोजनों में शुभ माना जाता वहीं खाना परोसने से खाने का स्वाद भी अधिक आता है तथा औषधीय गुणों से भरपुर होता है। केमिकलयुक्त डिस्पोजल में खाना परोसने से सेहत के लिए हानिकारक तो है हि साथ में इससे प्रदूषण भी बहुत फैलता है। खाना खाने के बाद टोर के पत्तलो का प्रयोग पशुओं के चारे के काम आ जाता है साथ ही आसानी से गल सड़कर खाद के काम भी आ जाता है जिससे प्रदूषण बिलकुल भी नहीं फैलता है।
जब डिस्पोजल का चलन नहीं था तब टोर के पत्तलों का ही इस्तेमाल किया जाता था। प्रदेश के निचले गर्म जिलों में टोर की बेल सभी जगह पाई जाती है। बेल से निकलने वाले हरे पत्तों से टोर के पत्ते बनाए जाते है। पहले छोटे से छोटे आयोजन में भी टोर की पत्तलों का प्रयोग किया जाता था। आवष्यकता अनुसार आर्डर मिलने पर ग्रामीण महिलांए खाली समय में 20-20 पत्तों की बीड़ी बनाकर जितनी जिसे जरूरत होती थी बेच कर घर का गुजारा चलाती थी परन्तु डिस्पोजल बाजार में आने से टोर की पत्तलों का रिवाज बहुत कम हो गया।
जिला शिमला में टोर के पत्तलों की परंपरा को पुनर्जीवित करने में जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण के अधीन राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत सुन्नी खंड में कार्य कर रहे सक्षम क्लस्टर लेवल फेडरेशन बसंतपुर प्रयास कर रही है। संगठन ने शिमला उपायुक्त अनुपम कष्यप के सहयोग से टोर के पत्तलों की परंपरा को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया और शिमला जिला के सभी मंदिरों में पत्तल पर लंगर परोसने की योजना बना कर तारादेवी मंदिर में 14 जुलाई 2024 से इसकी शुरुआत की। ऐतिहासिक तारादेवी मंदिर में हरी पत्तल में श्रद्धालुओं को लंगर परोसे जाने की सफलता के बाद अब संकट मोचन मंदिर में भी 1 सितम्बर को हरी टोर की पत्तल में श्रद्धालुओं को लंगर परोसा गया जबकि श्री हनुमान मंदिर जाखू में भी श्रद्धालुओं को टोर के पत्तलों में लंगर परोसने का बैठक में निर्णय लिया है।
सक्षम क्लस्टर लेवल फेडरेशन बसंतपुर के प्रतिनिधी का कहना है कि कि फेडरेशन द्वारा तारादेवी मंदिर को हर सप्ताह शुक्रवार को 4000 पत्तल दिए जा रहे हैं और अभी तक 18 हजार पत्तल तारादेवी मंदिर को दिए गए हैं। इसी कड़ी में अब संकट मोचन मंदिर में भी हर सप्ताह शुक्रवार को 4000 पत्तल दिए जायेंगे जो इन महिलाओं की आर्थिकी को और सुदृढ़ करने में सहायक सिद्ध होगा। उन्होंने बताया कि इस शुरुआत के बाद से पत्तल की मांग काफी बढ़ गई है। आसपास के क्षेत्र में विवाह और अन्य समारोह में लोग अब पत्तल की मांग कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, नवरात्र, श्राद्ध व अन्य शुभ सभी आयोजनों के लिए भी एडवांस ऑर्डर प्राप्त होने शुरू हो चुके हैं जिससे ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं को स्वरोजगार के अवसर मिलेंगे और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
संगठन के प्रतिनिधियों ने बताया कि बसंतपुर में एक संगठन है जिसमें ग्रामीण क्षेत्र की 2942 महिलाएं पत्तल बनाने का काम करती है जिन्हे साथ-साथ आकार, फिनिशिंग और गुणवत्ता को लेकर प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्होंने बताया कि बसंतपुर में उनका रस्टिक विलेज के नाम से किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) है जोकि बहुत से उत्पाद तैयार करता है। संगठन में 450 से अधिक महिलाएं कार्य कर रही हैं जो कोहलू से तेल निकालने, देसी घी तैयार करने, आटा चक्की चलाने, पशु चारा और अचार बनाने सहित उनकी पैकेजिंग और लेबलिंग करती हैं। उन्होंने बताया कि संगठन द्वारा तैयार उत्पाद की बिक्री प्रमुख मेलों, हिम ईरा शॉप और ऑनलाइन माध्यम से भी की जाती है।
मंडी जिला में भी टोर के पत्तलों की परंपरा को पुनर्जीवित करने की है जरुरत, महिलायों को मिलेगा स्वरोजगार
जिला मण्डी के मुख्य बाजार के गांधी चौक चौहट्टा बाजार के सामने पीपल पेड़ के छांव तले ताजा पत्तल, डोने व खावों को बेचने स्थानीय लोग बैठे होते है। पत्तल बेचने वाले जिला मण्डी के पण्डोह की घ्राण पंचायत के राजू, बलदेव, तीलक राज तथा मान सिंह इन सबका का परिवार पत्तल बेचने से चलता है। राजू का कहना है कि यह हमारा रोजगार पूरखों से पांच पिढ़ियो से चला आ रहा है। हम इसी रोजगार पर निर्भर है। आधुनिकता कि दौड़ में सब कुछ बाजार में रेडिमेट डिसपोजल मिल जाने से हमारा यह रोजगार कम होता जा रहा है जिससे अब परिवार का गुजारा मुश्किल से चलता है।
राजू बताते है कि खुशी इस बात की यह है कि हम सभी अपनी संस्कृति को सहेजने व अपनी परंपराओं को जिवित रखे हुए है, जिसका हम आज भी सम्मान करते हैं। आधुनिकता की चकाचौंध में हम भटकते जा रहे हैं और अपनी संस्कृति व पंरपराओं को भूलते जा रहे है। अगर समय रहते अपनी संस्कृति व परंपरा के सरंक्षण के बारे में नहीं सोचा तो हमें बहुत खुछ खोना पड़ सकता है, जिसके लिए हम सभी फिर से इस परंपरा को पुनर्जीवित करनेे के लिए प्रयासरत है।
जिला शिमला में टोर के पत्तलों की परंपरा को पुनर्जीवित करने में जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण के अधीन राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत सुन्नी खंड में कार्य कर रहे सक्षम क्लस्टर लेवल फेडरेशन बसंतपुर ने प्रशासन के सहयोग से इस परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास कर रही है वह बहुत सराहनीय है।
राजु व उसके साथियों ने प्रशासन व उक्त विभाग से आग्रह किया है कि समस्त मण्डी जिला में टोर के पौधे सभी जगह अधिक मात्रा में पाए जाते है। जिस तरह जिला शिमला उपायुक्त संबधित विभाग के साथ मिल कर टोर के पत्तलों में खाना परोसने की परंपरा को पुनर्जीवित करने के प्रयास में लगे हुए हैं उसी तर्ज पर मण्डी जिला में भी प्रशासन एवं संबधित विभाग से मिल कर मण्डी जिला के मंदिरों में भी टोर के पत्तलों में लंगर परासने की परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाए।
राजु और उसके साथियों ने सभी से आग्रह करते है कि प्रकृति को प्रदुषण से बचाने तथा स्वास्थ्य को तंदुरस्त रखने के लिए हाथ से निर्मित शुद्ध टोर के हरी पत्तलों का इस्तेमाल करें जिससे इस स्वरोजगार से जुडे़ लोगों को रोजगार के अवसर मिल सके। शिमला में किए जा रहे प्रयास से हमें भी एक रोशनी की नई किरण दिख रही है जिससे इस क्षेत्र में काम करने वालों का भविष्य उज्जवल हो सकता है। हमें उम्मीद है कि लोग, प्रशसन एवं संबधित विभाग नाउम्मीद नहीं होने देंगे।
राजू का कहना है कि एक दिन में हम पत्तल व खाबे 200/ तथा डोने 150/ सैंकड़ा कि दर से बेच कर अपना और परिवार का गुजारा कर रहे हैं। अगर प्रशासन एवं संबधित विभाग शिमला की तर्ज पर टोर के पत्तलों के परंपरा को पुनर्जीवित करने के प्रयास करे तो मण्डी एवं प्रदेश के अन्य जिलों की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी साथ में हजारों ग्रामीण महिलाओं, महिला मंडलों एवं स्वयं सहायता समूहों को स्वरोजगार के अवसर मिलेगें।