वेद ही सनातन धर्म एवं संस्कृति का मूल, शिक्षा एवं समाज सुधार में आर्य समाज की भूमिका आज भी प्रासंगिक – आचार्य कर्म सिंह

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सुरभि न्यूज़ ब्यूरो
शिमला, 19 सितंबर
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती की 200 जयंती इस वर्ष धूमधाम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाई जा रही है। स्वामी दयानंद के जीवन काल में ही आज से लगभग 142 वर्ष पूर्व आर्य समाज लोअर बाजार शिमला की स्थापना की गई थी। आर्य समाज ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, हिंदी सत्याग्रह और शिक्षा तथा समाज सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां अर्जित की हैं।
नारी जाति को सती प्रथा, बाल विवाह, अनमेल विवाह जैसी कुरीतियों से बाहर निकाल कर स्वामी दयानंद ने ऐतिहासिक कार्य किया है। समाज के वंचित, शोषित, साधनहीन वर्ग को समानता का अधिकार दिलवाकर जातिविहीन समाज की कल्पना स्वामी दयानंद के सपनों के भारत में सर्वोपरि रही हैं। महिलाओं और समाज के निम्न वर्ग को वेदों को पढ़ने पढ़ाने का अधिकार देना उनका एक ऐतिहासिक निर्णय रहा है।
स्वामी दयानंद के चिंतन की इस परंपरा को कायम रखते हुए आर्य समाज शिमला के 142 वर्ष पूर्ण होने पर सामवेद पारायण महा यज्ञ का शुभारंभ किया गया है, जो 22 सितंबर को संपन्न होगा। आर्य समाज द्वारा उत्तर भारत में शिमला में कन्या पाठशाला खोलना, उस समय की एक ऐतिहासिक घटना रही है। इस कार्यक्रम के दौरान आर्य कन्या वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला के वार्षिक समारोह भी संपन्न 21 22 सितंबर को संपन्न हो रहा है।
आर्य समाज द्वारा आयोजित महायज्ञ और वार्षिक उत्सव के अवसर पर आचार्य डॉ कर्म सिंह ने बताया कि स्वामी दयानंद ने जिस सामाजिक समरसता का स्वरूप सामने लाया उसमें किसी प्रकार के भेदभाव का कोई स्थान नहीं है। संस्कृत संस्कृति ,प्राचीन परंपराओं, गुरुकुल शिक्षा प्रणाली, वेदों का पढ़ना पढ़ाना, सभी की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक उन्नति करना, वेदों के आधार पर धर्म एवं नैतिक मूल्यों की स्थापना तथा महिलाओं को शिक्षा और समानता का अधिकार प्रदान करना आर्य समाज का प्रमुख लक्ष्य रहा है।
वर्तमान में भी असंख्य शिक्षण संस्थानों के माध्यम से आर्य समाज धर्म, संस्कृति, शिक्षा, समाज सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर रहा है।
आचार्य डॉ. कर्म सिंह ने कहा कि वर्तमान में विभिन्न मत मतांतरों की कट्टरपंथी सोच को छोड़ते हुए वेदों की ओर लौटने की जरूरत है ताकि विश्व समुदाय वेदों की शिक्षाओं, नैतिकता, अध्यात्म और कर्म आधारित समाज व्यवस्था के मार्ग पर फिर से लौट सकें। इसी आधार पर भारत के विश्व गुरु होने की संभावनाएं प्रबल हो सकती हैं।

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