सुरभि न्यूज़
खुशी राम ठाकुर, बरोट
छोटाभंगाल तथा चौहार घाटी में भेड़पालकों की स्थिति काफी दयनीय हालत हो गई है। वर्तमान में भेड़पालकों को ऊन के उचित दाम नहीं मिल पाते है वहीँ उनके द्वारा तैयार किए जाने वाले ऊन के कम्बल खरीदने को कोई तैयार ही नहीं होता है, जिस कारण यहां के भेड़पालकों का पुस्तैनी भेड़ों का स्वरोजगार अब पूरी तरह लुप्त होने की कगार पर पहुँच गया है। इन भेड़ पालकों को सरकार की ओर से भी कोई भी सहायता न मिलने के कारण उनका पुस्तैनी स्वरोजगार को बढ़ावा ही नहीं मिल पा रहा है। जिससे भेड़पालकों ने अपने स्वरोजगार भेड़ पालन एवं भेड़ों के मिलाने वाली ऊन से कम्बल बनाने का काम भी छोड़ते ही जा रहे हैं।
दोनों क्षेत्र के भेड़पालकों में बंगलू राम, कृष्ण कुमार, शेर सिंह, प्रताप चंद, सुन्दर सिंह, अमृत लाल तथा भागू राम ने बताया कि अन्य भेड़ पालकों की तरह वे इस पुस्तैनी स्वरोज़गार को मज़बूरन छोड़ना पड़ रहा हैं और दिहाड़ी मजदूरी या रोज़ी रोटी कमाने के साधन ढूंढने के लिए मबुर होना पड़ रहा हैं क्योंकि सरकार की ओर से ऊन खरीद व कम्बल उद्योग के लिए कोई भी बढ़ावा ही नहीं दिया जा रहा है।
उनका कहना है कि धन के अभाव के कारण आधुनिक तकनीक की मशीने लगाना में समर्थ है। अगर सरकार उनकी सहायता करती है तो भेड़पालक आधुनिक तकनीक की मशीने लगाने के बारे में आगे आ सकते है। उनका कहना है कि दोनों क्षेत्र के हर
गाँव से दस से पच्चास भेड़पालक हुआ करते थे मगर अब कुछ एक गाँवों में ही भेड़पालकों ने इस स्वरोजगार को अपना रखा है।
भेड़ पालकों का कहना है कि उनकी भेड़ों को नहलाने के लिए सरकार द्वारा यहां पर अभी तक डिपिंग टेंकों का निर्माण भी नहीं किया गया है, जिस कारण वे अपनी भेड़ों को उहल व लम्बाडग नदियों में नहलाने को मजबूर हो जाते हैं जिस दौरान उनकी भेड़ें भारी मात्रा में नदियों के पानी के तेज बहाव से बह भी चुकी है। जिस कारण आजतक उनका लाखों रूपये का नुक्सान हो चुका है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि हर संभव सुविधा प्रदान करने के साथ भेड़ों को नहलाने के लिए दोनों क्षेत्रों चुनिन्दा स्थानों में डिपिंग टेंकों का निर्माण किया।