सुरभि न्यूज़
महाकुम्भ – 2025, प्रयागराज
भक्ति और आस्था के नाम पर देश में कुछ भी हो रहा है, दो नदियों के भव्य संगम को आस्था से जोड़कर गंदगी का ढेर बना दिया है। देखा जाए तो संगम एक प्राकृतिक ढांचे का हिस्सा है। एक समय होगा जब इस संगम की सुंदरता और विशालता दिल को सुकून व शांति देती होगी, लेकिन जब इसे आस्था से जोड़ दिया तो इस संगम पर हर रोज लाखों लोग आ रहे है। लोगों के मल मूत्र त्यागने और पीक थूकने से हर तरफ बदबू है। मेला प्रबंधन समिति हर शाम फॉगिंग करवा रही है, लेकिन मच्छर खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं।
कमाल की बात है कि मच्छर तो तब हैं जब अभी सर्दी अपने पीक पर है। जब थोड़े से गर्म दिन आएंगे तब क्या हाल होगा? कुम्भ प्रबन्धन ने counting के नाम पर खूब सारे टेम्परेरी toilet जरूर बना रखे हैं लेकिन प्लास्टिक व फाइबर से बने कमजोर ढांचे के शौचालय अव्यवस्थित हो रखे हैं। महाकुंभ अभी अपने शुरुआती चरण में है और उनके दरवाजे ठीक से बंद नहीं हो रहे हैं। चिटकनी तो किसी में काम ही नहीं कर रही है। निवृत होने के लिये हर बंदे को बाहर से जो 5 लीटर की बाल्टी भरकर ले जानी पड़ती है वो बहुत ही रद्दी प्लास्टिक की है। ज्यादातर बाल्टी टूट चुकी हैं और लगभग बाल्टियों के हैंडल निकल चुके हैं। लोग शौचालय का इस्तेमाल केवल निवृत्त होने के लिये मजबूरी में कर रहे हैं और पेशाब तो दांए बांए कहीं भी कर रहे हैं।
20-30 पचास हजार से लेकर एक लाख₹ प्रति रात्रि के किराए वाले कॉटेज की रील देखने वाले यात्रियों को मेरी बात अटपटी लगती होंगी, हो सकता है कि विश्वास भी ना हो जबकि ये हकीकत है।
संगम घाट पर अलसुबह स्नान करने का मन बनाकर आई भीड़ को खुले आसमान के नीचे सोना पड़ता है। ये तो भला हो लोकल मजदूरों का जो 2₹ कमाने के लिये चटाई के साइज की पॉलीथिन (नीचे बिछाने और आसमान से गिर रही ओस से बचाव के लिये) बेच रहे होते हैं। टूथ ब्रश के झंझट से बचने के लिये 10₹ की एक नीम दातुन बेच रहे होते हैं।
आम पब्लिक के लिये बड़े हैंगर लगाकर रात को सोने के रैन बसेरे जरूर बना रखे हैं लेकिन वहां ना केवल हाऊस फुल्ल रहता है बल्कि जो उसमें एक बार अंदर स्टक हो जाए तो फिर जब वो बाहर आना चाहे तो उसे नीचे सो रहे लोगों को लांघकर बाहर आना पड़ता है।
संगम परिसर में जितने भी पेड़ हैं उनके नीचे चटाई बिछाकर सोने वाले लोगों ने स्पेस फुल्ल कर रखा होता है। ओस से बचने के लिये लोग रात में भी पेड़ों का आश्रय लेते हैं। टैंट तंबू के नीचे जहां खाली तख्त कुर्सी बैंच मिल जाए वहां बैठकर लोग समय बिताते हैं।
अलग अलग अखाड़ों और प्रसिद्ध कथावाचकों से लेकर धार्मिक संस्थाओं ने जो अपने पर्सनल कैम्प बना रखे हैं।उनकी भव्यता और सुविधा केवल उनके सैलेक्टड लोगों के लिये है, जबकि हर आदमी उस रौनक को ही असली महाकुंभ मान कर बैठा है। संगम परिसर में या तो आपका कोई अपना मजबूत आदमी हो, बाबा हो, संस्था हो या फिर आपके पास खर्च करने को खूब सारा पैसा हो तब आप इस महाकुंभ से प्रभावित हो सकते हैं अन्यथा यहां आया हर आदमी मैंने बड़बड़ाता देखा है।
दरअसल आस्था के नाम पर ये ट्रिप मारने के लिये उनको जिस हिसाब से प्रिपेयर किया गया यहां सब उसका उल्टा है। एक लंबी चौड़ी भीड़ को पैदल तक जाने की अनुमति नहीं है जबकि किसी vip की फैमिली 7-8 गाड़ियों के काफिले के साथ हूटर बजाती हुई सीधा संगम पहुंचती है।
एक तरफ उनकी गाड़ियों का काफिला धूल उड़ाकर जा रहा होता है वहीं पैदल चल रही आम पब्लिक उस धूल से बचने के लिये मुंह को कपड़े से ढकने के एफर्ट्स कर रही होती है।
आस्था के नाम पर लोगों की भक्ति मान्यता कहो या श्रद्धा कहो कि कोई बाबा इन्हें दिखा नहीं और हर कोई आशीर्वाद लेने के लिये भाग पड़ता है।
एक साधारण सा आदमी जो बाबा भी नहीं है। बस दाढ़ी बढ़ा रखी है और पीला कपड़ा गले में डालकर रखता है। वो 4 हजार ₹ के चिल्लर लेकर हर रोज काऊंटर पर आता है जो उसे पूरे दिन में मिले होते हैं।
बाबा भी ऐसे ऐसे बने पड़े हैं जो अनाड़ी हैं। कई कई दिन नहाते नहीं हैं। बोलने तक की तमीज नहीं। जिसका जो मन आया वो योग के नाम पर उटपटांग विधि अपनाकर बैठा है। कोई धूली रमा कर बैठा है। कोई नंगा हो गया, किसी ने बाल बढ़ा लिये तो कोई गंजा होकर रहता है। किसी के सर पर हजारों रुद्राक्षों से बना मुकुट है तो किसी ने अपने सर पर गेहूं का ज्वारा उगा रखा है। कोई चिमटा लेकर चलता है कोई मोरपंख। किसी ने हाथ खड़ा कर रखा है तो कोई खड़ा ही रहता है। पढ़े लिखे हैं नहीं, ज्ञान के नाम पर गाली देते हैं, अपशब्द बोलते हैं, डंडा थप्पड़ चिमटा जो मन में आए मारते हैं। अकड़ में बोलते हैं और बदतमीजी से बात करते हैं।
इसी से जुड़ा एक आंखों देखा वाकया बताता हूँ
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कुंभ में हम सैक्टर 4 में हैं। परसों रात 11 बजे की बात है, 3 बाबा घूमते घूमते हमारे पास आए। उनमें से एक हठयोगी ने अपना हाथ ऊपर उठा रखा था (जो हमेशा ऊपर ही रहता है) एक बार तो मुझे लगा कि ये तो वही चिमटे वाला बाबा है जो मीडिया वाले को चिमटा मारने पर वायरल हुआ था। मैंने उससे इस बारे में पूछा तो उसने मना कर दिया कि नहीं मैं दूसरा हूँ वो वाला नहीं हूँ।
दूसरे के सर पर रूद्राक्ष से भरा मुकुट था और तीसरे बाबा को खांसी हो रखी थी तो मैंने बढ़िया अदरक डालकर चाय पिलवाई और जैसा उनका मन था कुछ खाना खिलवाया।
उन्हें बैठा देखकर आते जाते लोग रुक रुक कर उनके चरण छूने लगे। लगातार एक घण्टे तक आशीर्वाद लेते रहे। फ़ोटो खिंचवाते रहे और दक्षिणा देते रहे।
तभी 6-7 लोगों की फैमिली वहां आई जिसमें 2 लड़कियां और एक महिला थी। उन्होंने भी आते ही रुद्राक्ष वाले बाबा को दंडवत किया और दक्षिणा भी दी। उस फैमिली में से एक लड़की की तरफ देखकर बाबा बोला “सिर पर पल्ला रखा करो चुड़ैल दिखती हो”। लड़की एकतरफ बेचारा सा मुंह बनाकर खड़ी हो गई।
मुझे बड़ा अजीब और बुरा लगा जिसके बाद वे मेरे भाव को समझ गए। एक घण्टे में ही उनके सामने टेबल पर 6 हजार₹ के करीब दक्षिणा इक्कठी हो चुकी थी। अगले 5 मिनट में उठकर चले गए।
किसी को सैल्फी नहीं लेने दे रहे थे। अपनी कुर्सी के पीछे खड़ा होकर फोटो नहीं खिंचवाने दे रहे थे। सभी को कह रहे थे हमारे सामने चरणों में बैठकर फोटो खिंचवाओ। मुझे समझ नहीं आ रहा कि लोग इनसे क्या पा लेना चाहते हैं।
साभार – Ex सरपंच सुमित मकडोली रोहतक हरियाणा – हेल्पिंग हेंडस फॉर मेंकिंड