चौहार घाटी के किसान आलू की बिजाई में जुटे, बरोट के आलू के नाम से बनाई है पडोसी राज्य की मंडियों में पहचान

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सुरभि न्यूज़ 

खुशी राम ठाकुर, बरोट 

चौहारघाटी गाँवों के किसान लोहड़ी पर्व के बाद देवी देवताओं के आदेशानुसार खेती बाड़ी संबंधी कार्य बंद होने के डेढ़ माह बाद हल जोताई का कार्य समाप्त किया।

अब किसान आलू की बिजाई में जुट गए हैं साथ कई गांव में हल जोताई का कार्य चला हुआ है। हल जोताई करने के बाद किसान नगदी फसल आलू की बिजाई में जुट जाएंगे। इस बार मार्च के दूसरे पखवाड़े में हुई बारिश आलू की खेती के लिए बहुत किफायती रही है।

किसान परिवार सहित सुबह से खेतों में दस्तक देकर अपने – अपने कामकाज में मशगूल हैं। खेतों में हल चलाकर सुहागा करने बाद आलू बिजाई के लिए डाली जाने वाली (खातरी) लाइनों से खेतों की सजावट का नजारा बेहद मनमोहक होता है। चौहारघाटी के संकरे और ढलान वाले खेतों में खेतीबाड़ी बैलों द्वारा ही की जाती है।

जुलाई में चौहारघाटी का आलू तैयार होने के बाद बाहर की मंडियों में दस्तक दे देता है। अमृतसर और अंबाला की मंडियों में बरोट का आलू नाम से प्रसिद्ध आलू की सबसे ज्यादा मांग रहती है। आलू चौहारघाटी के किसानों की मुख्य नगदी फसल है। आलू सीजन में करोड़ों रुपये की बिक्री होती है, जबकि मटर, मूली, गोभी और राजमाह की खेती से भी घाटी के किसान आर्थिक तौर पर संपन्न हुए हैं।

किसान रामदयाल, शेर सिंह, रमेश चंद, पूर्ण चंद, रंगीला राम, तिलक राज, नरेश कुमार, तुला राम, देसराज, भादर सिंह, घनश्याम, गोबिंद राम, भागमल, अनिल कुमार, शुकरू राम, इंद्र सिंह, ओम प्रकाश, काहन सिंह, हरी देव, रागी राम, राजकुमार, ईश्वर दास और तुलसी दास ने बताया कि चौहारघाटी का मध्यम वर्गीय किसान चार से पांच क्विंटल आलू बीज की खेती करता है जबकि बड़े किसान भारी मात्रा में आलू की खेती करते हैं।

इसके साथ छोटाभंगाल में भी हल जोताई का कार्य शुरू हो गया है। हल जोताई का कार्य पूर्ण करने के बाद आलू कम मात्रा में तथा अधिक मात्रा में राजमाह के साथ विभिन्न प्रकार की सब्जियों की बिजाई के लिए खेतों को तैयार करेंगे।

चौहार घाटी के किसान आलू की बिजाई में जुटे, बरोट के आलू के नाम से बनाई है पडोसी राज्य की मंडीयों में पहचान

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