शिमला के गेयटी थियेटर, माॅल रोड़, पदम देव काम्पलेक्स, रिज मैदान पर जूट, ऊन, रेशम सहित हिमाचल के स्थानीय उत्पादों के लगेंगे स्टाॅल

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सुरभि न्यूज़

प्रताप अरनोट, शिमला 

कपड़ा मंत्रालय और हिमाचल प्रदेश सरकार के संयुक्तत्वाधान से शिमला में 19 मई से 26 मई 2025 तक एकता प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा। एकता (एक्सबिशन कम नोलज शेयरिंग फाॅर टेक्सटाईल एडवाॅटेज) प्रदर्शनी में प्रदेश भर से स्वयं सहायता समूह अपने स्थानीय उत्पादों की प्रदर्शनी लगाएंगे।

उपायुक्त शिमला अनुपम कश्यप ने राष्ट्रीय जूट बोर्ड कोलकाॅता के पटसन आयुक्त मलय चंदन चकवर्ती के साथ बैठक की। ये प्रदर्शनी शिमला के गेयटी थियेटर, माॅल रोड़,  पदम देव काम्पलेक्स, रिज पर लगाई जाएगी। उन्होंने कहा कि शिमला में खुशाला क्लस्टर फैडरेशन जूट के क्षेत्र में पिछले लंबे समय से कार्य कर रही है। उन्हें भी इस प्रदर्शनी में मुफ्त स्टाल लगाने की अनुमति दी जाएगी ताकि अपने उत्पादों को लोगों तक पहुंचा सके ।

राष्ट्रीय जूट बोर्ड के माध्यम से खुशाला क्लस्टर फेडरेशन के सदस्यों को प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि शिमला में जूट के अत्याधुनिक उत्पादों को तैयार करके बेच सके। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए इस तरह की प्रदर्शनियां प्रेरणादायक साबित होती है। उन्होंने कहा कि प्रदर्शनी के साथ साथ स्वयं सहायता समूहों के लिए विशेष कार्यशाला का आयोजन भी 19 से 21 मई को गेयटी थियेटर में किया जाएगा। इसमें सुबह 11 बजे से लेकर साढ़े पांच बजे तक हर रोज विभिन्न विषयों पर जानकारी एंव प्रशिक्षण दिया जाएगा।

राष्ट्रीय जूट बोर्ड कोलकाॅता के पटसन आयुक्त,  मलय चंदन  चकवर्ती ने जानकारी देते हुए बताया कि  एकता मंच का उद्देश्य ऊन, जूट और रेशम शिल्प में हिमाचल की उभरती ताकत को प्रदर्शित करके, स्थायी आजीविका को बढ़ावा देना है। इसके  साथ ही  स्थानीय कारीगरों को राष्ट्रीय और वैश्विक वस्त्र मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकृत करके  इन प्रयासों को बढ़ाना है। पीएम मित्र, समर्थ, रेशम समग्र और राष्ट्रीय जूट और हस्तशिल्प विकास कार्यक्रमों जैसी प्रमुख पहलों के माध्यम से, भारत सरकार फाइबर आधारित ग्रामीण उद्यमिता के लिए ईको सिस्टम को बढ़ा रही है।

इसके अलावा जिला के अन्य उत्पादों की प्रदर्शनी  लगाई जाएगी।  भारतीय कपड़ा क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था, विरासत और आजीविका का आधार है। हिमालय में बसा हिमाचल प्रदेश में समृद्ध कपड़ा परंपराओं के भंडार है, जिसमें ऊन, जूट और रेशम प्रमुख रूप से शामिल हैं। ये प्राकृतिक रेशे न केवल सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ और आर्थिक रूप से सशक्त भी हैं।

ऊन, हिमाचली विरासत का अभिन्न अंग है, जिसे प्रतिष्ठित कुल्लू, किन्नौरी और चंबा शॉल सहित कई अन्य उत्पाद संस्कृति का अहम हिस्सा है।  इस बीच, जूट, हालांकि पारंपरिक रूप से पूर्वी भारत से जुड़ा हुआ है। लेकिन  हिमाचल में पर्यावरण के अनुकूल वस्त्र और भू-वस्त्र नवाचारों के लिए तेजी से अपनाया जा रहा है, जो विविधीकरण और ग्रामीण रोजगार की गुंजाइश प्रदान करता है। इस दौरान राष्ट्रीय जूट बोर्ड के किशन सिंह और सचिव  शशि भूषण विशेष तौर पर मौजूद रहे।

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