सुरभि न्यूज़
मोहिंद्र प्रताप सिंह राणा/ग्राम परिवेश
सर्वे से सर्वनाश तक डीपीआर की मिटती-उकेरती लकीरें जो स्थानीय लोगों की तक़दीर मिटा रही हैं
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI), निर्माण कंपनियां, सत्ता के गलियारों में बैठे नेता और लापरवाह प्रशासन — सब मिलकर पहाड़ के हाड़ मांस को नोच कर खोखला कर रहे हैं। पहाड़ की गूंज अब आर्तनाद में बदल चुकी है: “मत छेड़ मेरी नींव, मत छेड़ मेरी संस्कृति, मेरे भोले पहाड़ी, उनके घर-खलिहान, कल-कल बहते झरने और मेरी आत्मा को...
यह कोई भावुक अपील नहीं, बल्कि वो चेतावनी है जो हर बार अनसुनी कर दी जाती है। हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण के नाम पर जो कुछ हो रहा है, वह नियोजित विनाश है — लालच की कोख से निकली एक क्रूर विकास योजना, जिसमें न इंजीनियरिंग का विवेक है, न पर्यावरणीय मर्यादा और न मानवीय गरिमा की कोई जगह।
बरसात आते ही उठती हैं चीखें…
बारिश के इन दिनों में जब भूमि स्वयं नम्र हो जाती है, निर्माण कंपनियां अधिक लाभ के लिए और अधिक तेजी से काम करती हैं। तकनीकी शर्तें ताक पर रख दी जाती हैं — पानी की निकासी, रिटेनिंग वॉल, ब्रेस्ट वॉल, नालियों, शोल्डर व कलवर्ट की अनदेखी होती है। परिणामस्वरूप लोगों के खेत-खलिहान, गौशालाएं, घर और रास्ते – सब कुछ धराशायी होते जा रहें है। और जब पीड़ित जनता आवाज उठाती है, तब उन्हें न केवल अपमानित किया जाता है बल्कि उनके साथ अभद्रता तक की जाती है।
भट्ठा कुफर — एक और हादसा, एक और खामोश चीख
शिमला के उप-नगर भट्ठा कुफर क्षेत्र में चार मंजिला मकान के ढहने की घटना इसी ढीली व्यवस्था का जिंदा उदाहरण है। मकान मालकिन ने बार-बार चेताया, गुहार लगाई, लेकिन NHAI के अधिकारी कानों में रूई ठूंसे बैठे रहे। परिणामस्वरूप घर मलबा बन गया — सपनों, जड़ों ,एक मात्र आय के स्त्रोत और अस्तित्व का मलबा।
स्थानीय विधायक और प्रशासन तक मामला पहुंचा, स्थानीय लोगों, जनप्रतिनिधि व भारतीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों में बहस तीखी झड़पों और कथित मारपीट में तब्दील हो गया।तीखी झड़पों व कथित मारपीट की गूंज दिल्ली पहुंची केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने मुख्यमंत्री को फोन कर सख्त संदेश भेजा,होना भी चाहिए था।
अपने विभाग के अधिकारियों के साथ स्थानीय लोगों व मंत्री द्वारा कथित मारपीट व अभद्रता करने पर गुस्सा आना स्वाभाविक है। परन्तु नितिन गडकरी जैसे न्यायशील व्यक्तित्व व निष्पक्ष मंत्री द्वारा स्थानीय लोगों के गुस्से की वैधता को अस्वीकार करना सभी को अचंभित कर रहा है। निर्माण कंपनियों व राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की कथित लापरवाही व भ्रष्ट आचरण से लोगों के घर सपने और भविष्य मलवे का ढेर हो रहे हैं ।जब वे शिकायत करते हैं तो प्रताड़ना, अपमान व अभद्रता मिलती है और आपका आफिस भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं करता उल्टा उन्हें संरक्षण मिलता है। परिणामस्वरूप चहुंओर आवेश व आक्रोश ,यह सवाल अब और भी गहरा हो चला है: तीखे प्रश्न खड़े हो गए हैं।
बलवती प्रश्न यह है कि क्यों बार-बार हर बार समूचे हिमाचल प्रदेश में प्राधिकरण, निर्माण कम्पनी व स्थानीय लोगों, भू-मालिकों के बीच विवाद खड़े हो रहे हैं? ग्राम परिवेश ने कीरतपुर-मनाली फोरलेन से हुए विस्थापित भू-स्वामियों, मकान मालिकों , व्यावसायियों, वकीलों व एक्टिविस्ट से बात की।
विस्थापित भू-स्वामी व मकान मालिक मदन शर्मा ने विस्तार से विवादों के कारणों की जानकारी दी। शर्मा बताते हैं कि हर विवाद का बीज सर्वेक्षण के समय बो दिया जाता है। राजमार्ग के वैकल्पिक तीन सर्वे होते हैं। सर्वे के समय क्षेत्र की पारिस्थितिकी, पर्यावरणीय स्थिति, बजटीय स्थिति और स्थानीय लोगों के साथ अधिकारी बैठ कर कम से कम नुकसान के बीच में सामंजस्य बैठाने के लिए बाध्य होते हैं।
यहां तक तो बात विवेकपूर्ण व विकास की लगती है परन्तु इस की हकीकत विस्थापित लोगों से पता लगती है। सर्वे के समय तकनीकी अधिकारी, राजस्व अधिकारी, प्रभावशाली लोग व पैसे के प्रभाव का बोलबाला हो जाता है।
“सर्वे से सर्वनाश तक डीपीआर की मिटती-उकेरती लकीरें जो स्थानीय लोगों की तक़दीर मिटा रही हैं और फ़साद खड़ा कर रही हैं”।
हिमाचल के राजमार्गों पर विकास की जो इबारत लिखी जा रही है, वह धरातल पर नहीं, दलदल में लिखी जा रही है। इस ‘विकास’ की पटकथा की शुरुआत वहीं से होती है जहां वयंता और आईसीटी जैसी सर्वे कंपनियों को करोड़ों के बजट के साथ सर्वे का ठेका सौंपा गया। परंतु यह सर्वे कभी नीतिगत विवेक का आधार नहीं बना, बल्कि प्रशासनिक स्वार्थ, ठेकेदारों की सुविधा और राजनीतिक दबावों का एक बेशर्म गठजोड़ बनकर रह गया।
इन कंपनियों ने जिस भू-अवलोकन व तकनीकी मानकों के आधार पर रिपोर्ट बनाई थी, उसे राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI), निर्माण कंपनियों, वन विभाग और राजस्वकर्मियों ने मिलकर चंद स्वार्थों के आगे रौंद डाला।
भूमि अधिग्रहण की अवैध प्रक्रिया: नियमों की अनदेखी और जनता के अधिकारों की अनदेखी
राजमार्ग निर्माण और भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों में अनेक गंभीर अवैधताएं (Illegalities) उजागर हुई हैं, जो न केवल प्रक्रियात्मक चूक हैं, बल्कि कानूनी रूप से भी स्पष्ट उल्लंघन हैं। प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:
1. मूल भूमि अधिग्रहण योजना (Original Land Acquisition Plan) ही स्पष्ट नहीं थी —
अधिग्रहण का कोई पारदर्शी और प्रमाणिक मूल नक्शा प्रस्तुत नहीं किया गया, जिससे लोगों को अपनी भूमि के अधिग्रहण की वास्तविक स्थिति का पता ही नहीं चल सका।
2. राइट ऑफ वे (Right of Way) निर्धारित नहीं किया गया—यह स्पष्ट नहीं किया गया कि कितनी चौड़ाई और किस दिशा में भूमि ली जा रही है, जिससे भूमि सीमा को लेकर भ्रम और विवाद पैदा हुए।
3. बुर्जी नंबर (R.D. Numbers) अंकित नहीं किए गए —ज़मीन पर माप और चिन्हांकन के लिए आवश्यक बुर्जियों पर R.D. नंबर तक दर्ज नहीं थे।
4. बुर्जियों पर पिलर टू पिलर दूरी नहीं दर्शाई गई —
इससे यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि किस बुर्जी से अगली बुर्जी तक की सटीक दूरी क्या है, जिससे निशानदेही असंभव हो गई।
5. बुर्जियों पर बैक बियरिंग व फ्रंट बियरिंग दर्ज नहीं की गई—दिशा निर्धारण के लिए आवश्यक कोणीय माप (Back Bearing और Front Bearing) का अंकन न होना एक गंभीर तकनीकी चूक है।
6.इंतकाल दर्ज करते समय हितधारकों (Interested Parties) को सूचित नहीं किया गया —जब केंद्र सरकार के नाम पर भूमि का इंतकाल (Transfer of Title) दर्ज किया गया, तब वास्तविक भू-स्वामी, किरायेदार या अन्य हितधारकों को न सूचित किया गया और न ही उन्हें सुनवाई का अवसर दिया गया।
यह सीधे-सीधे 1954 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 35 का उल्लंघन है, जिसके अनुसार किसी भी हस्तांतरण या अधिग्रहण से पहले संबंधित पक्षों को सूचित करना और उनकी आपत्ति सुनना अनिवार्य है।
यदि उक्त प्रक्रियाएं नियमों के अनुसार पारदर्शिता से पूरी की जातीं, तो लोगों को कोर्ट-कचहरी के चक्कर नहीं काटने पड़ते।
इन सब झुंझलाहट व आक्रोश पैदा करने वाले विवादित बिंदुओं के अतिरिक्त भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण व निर्माण कंपनी के गठजोड़ से कई बार यह देखा गया की स्वीकृत डीपीआर में बदलाव, सड़क, पुल, नाली इत्यादि की लंबाई चौड़ाई को घटा दिया, रिटेनिंग वॉल, ब्रेस्ट वॉल में स्थानीय पत्थर जो मजबूती के आधार पर प्रयोग में लाना उचित नहीं है धड़ल्ले से प्रयोग किया। मलबे को आसपास के नालों घाटियों ,में डंप करना घर गांव, व्यवसायिक परिसरों के रास्तों को नक्शे के अनुरूप नहीं बनाना, फुट ब्रिज, फुटपाथ पेव्ड शोल्डर नहीं बनाना जिससे पानी की निकासी बेतरतीब होने के कारण बड़े पैमाने पर रिटेनिंग वॉल ब्रेस्ट वॉल, भूस्खलन होने का मुख्य कारण बना है। पेव्ड शोल्डर सड़क की सुरक्षा, स्थिरता और जल निकासी में सुधार करने के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है ।
स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि टोल टैक्स बैरियर हर 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थापित होने चाहिए जबकि निर्माण कंपनियों ने कई जगहों पर यह 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थापित कर दिए हैं ।इन सब प्रमाणसिद्ध संदेहों की पुष्टि करने के लिए विस्थापित व स्थानीय लोग एक उच्च स्तरीय कमेटी द्वारा जांच करने की भी बात कर रहे हैं।
वे चाहते हैं कि किरतपुर-मनाली हाईवे पर कितने पुल, पुलिया कलवर्ट नक्शे में दर्शाए गए हैं और कितने जमीन पर बनाए गए हैं उनकी लंबाई चौड़ाई इत्यादि सब पहलुओं की गहन जांच होनी चाहिए ।