अनुशासनहीनता : कांवड़ यात्रा या हुड़दंग, आस्था की राह में अनुशासन की दरकार

Listen to this article

सुरभि न्यूज़

✍️ प्रियंका सौरभ,  हिसार : हरियाणा

कांवड़ यात्रा का स्वरूप अब आस्था से हटकर प्रदर्शन और उन्माद की ओर बढ़ गया है। तेज़ डीजे, बाइक स्टंट, ट्रैफिक जाम और हिंसा ने इसे बदनाम कर दिया है। इसके विपरीत रामदेवरा जैसी यात्राएं आज भी शांत, अनुशासित और समर्पित होती हैं। इसका कारण है भक्ति में विनम्रता, प्रशासनिक अनुशासन और राजनीतिक हस्तक्षेप की कमी। अब ज़रूरत है कि भक्ति को भक्ति ही रहने दिया जाए, अनुशासन, समर्पण और समाज के प्रति ज़िम्मेदारी के साथ।

भारत जैसे धर्मप्रधान देश में तीर्थयात्राओं और धार्मिक यात्राओं का एक गहरा सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रहा है। इन यात्राओं का उद्देश्य आत्मशुद्धि, समर्पण और शांति की प्राप्ति होता है। परंतु हाल के वर्षों में कुछ तीर्थ यात्राएँ, विशेषकर कांवड़ यात्रा, अपने मूल स्वरूप से भटक कर हंगामा, शोर-शराबा और अनुशासनहीनता का पर्याय बनती जा रही हैं।

जहाँ एक ओर लाखों श्रद्धालु राजस्थान के रामदेवरा जैसे स्थानों पर सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर शांति और श्रद्धा से पूजा-अर्चना करते हैं, वहीं दूसरी ओर कांवड़ यात्रा के दौरान अक्सर सड़कों पर कब्ज़ा, डीजे की धुनों पर नाचना, ट्रैफिक जाम, तोड़फोड़ और मारपीट की खबरें आती रहती हैं। सवाल उठता है कि आस्था का मतलब अराजकता तो नहीं है कांवड़िये ही हुड़दंग कर रहे है जबकि अन्य तीर्थयात्राएँ शांति से होती हैं।

श्रद्धा का स्वरूप विनम्रता है प्रदर्शन नहीं है। भारत में धार्मिक यात्राओं का इतिहास पुराना है। पदयात्रा, व्रत, नियम और तपस्या इनका मूल हिस्सा रहे हैं। लेकिन कांवड़ यात्रा, खासकर उत्तर भारत के कुछ इलाकों में, अब एक शक्ति प्रदर्शन में बदलती जा रही है।

श्रद्धालु अब भक्त कम और रौबदार शिवभक्त ज़्यादा नज़र आते हैं। बाइक पर 10-15 लोग, डीजे बजाते ट्रक और शोर-शराबे में हर-हर महादेव का नारा, यह सब आस्था से अधिक दिखावे और गुटबाज़ी का प्रतीक लगता है।

इसके विपरीत रामदेवरा की यात्रा में न कोई सुरक्षा का खतरा, न सरकारी तामझाम फिर भी वहां अनुशासन और सेवा का वातावरण होता है, यह सोचनीय विषय है।

कावड़ यात्रा में हर-हर महादेव के जयकार नारे को ऊँची आवाज में प्रदर्शित करने को भक्त अपनी मर्दानगी समझने लगे है। यात्रा में आज जो हुड़दंग दिखाई देता है, वह भक्ति का नहीं, मात्र उग्र प्रदर्शन है। हर-हर महादेव जैसे पवित्र नारे को कई बार उग्रता और हिंसा के साथ जोड़ दिया गया है।

यह मर्दानगी का ऐसा संस्करण है जिसमें भक्त बाइक पर स्टंट करता है, तेज़ म्यूज़िक पर झूमता है और किसी ने कुछ कहा तो झगड़े पर उतर आता है।

रामदेवरा में लोग अपने परिवार के साथ, बड़ों के आशीर्वाद के साथ जाते हैं। वहाँ शांति, सेवा और दर्शन ही उद्देश्य होता है, न कि सोशल मीडिया रील्स और तड़क-भड़क।

प्रशासनिक ढिलाई और राजनीतिक मजबूरी

प्रशासन के लिए कांवड़ यात्रा अब आस्था का नहीं, सिरदर्द का विषय बन गई है। रास्तों को बंद करना पड़ता है, ज़बरदस्ती स्कूल-कॉलेज की छुट्टियाँ करनी पड़ती हैं और पुलिस को कांवड़ियों को मना करने की हिम्मत नहीं होती।इसके पीछे एक बड़ा कारण है वह है राजनीतिक संरक्षण। कोई भी सरकार कांवड़ियों को नाराज़ नहीं करना चाहती, विशेषकर जब धार्मिक भावनाएं उबाल पर हों। नतीजा यह होता है कि कुछ असामाजिक तत्व इस ढील का फायदा उठाकर पूरे आयोजन को बदनाम कर देते हैं।

सोशल मीडिया : भक्ति या ब्रांडिंग

आजकल कांवड़ यात्रा का एक और सोशल मीडिया प्रमोशन  बड़ा आयाम बनता जा रहा है। भक्त कम, इन्फ्लुएंसर ज़्यादा हैं। कोई रील बना रहा है, कोई फेसबुक लाइव कर रहा है तो कोई अपने ट्रक की सजावट दिखा रहा है। भक्ति अब कैमरे के सामने पोज़ करने की प्रक्रिया बन गई है। रामदेवरा जैसे स्थलों पर ऐसी कोई प्रवृत्ति दिखाई नहीं देती। वहाँ लोग अपने मन और आत्मा से जुड़ते हुए प्रार्थना करते है न कि अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से।

समूह की ताकत और मनोवैज्ञानिक भ्रम

कांवड़ यात्रा का एक बड़ा पहलू है, वह है भीड़ की ताकत और समूह मनोविज्ञान। जब सैकड़ों-हज़ारों लोग एक साथ चलते हैं तो व्यक्ति की जिम्मेदारी गायब हो जाती है। कोई एक गलती करता है और पूरी भीड़ प्रतिक्रिया में उग्र हो जाती है। रामदेवरा जैसी यात्राओं में लोग छोटे-छोटे समूहों में या व्यक्तिगत रूप से जाते हैं। वहाँ अनुशासन भी व्यक्तिगत होता है और उत्तरदायित्व भी।

आस्था और उन्माद में अंतर

कांवड़ यात्रा में जो देखा जा रहा है, वह भक्ति नहीं, उन्माद है। यह वह धर्म नहीं है जिसकी शिक्षा भगवान शिव देते हैं। वे तो योगी हैं, शांति और तपस्या के प्रतीक हैं। उन्हीं शिव के नाम पर सड़कों में कब्ज़ा करना, गाड़ियों की तोड़फोड़ करना तथा दुकानें बंद करवाना यह तो भक्ति नहीं हो सकती।

समाधान: भक्ति में अनुशासन और प्रशासन में दृढ़ता

समस्या की पहचान जरूरी है, लेकिन समाधान भी उतना ही ज़रूरी है। इस दिशा में निम्नलिखित सुझाव कारगर हो सकते हैं:

धार्मिक संगठनों को आगे आना चाहिए जो कांवड़ यात्रा का संयोजन करते हैं, उन्हें स्वयं अनुशासन और संयम का संदेश देना होगा।

प्रशासन को राजनीतिक दबाव से ऊपर उठकर कानून का पालन करवाना चाहिए, चाहे वह कोई भी समुदाय हो।

भक्तों को आत्मचिंतन करना चाहिए कि उनकी यात्रा भगवान शिव को प्रसन्न कर रही है या बदनाम कर रही है।

सोशल मीडिया पर फालतू दिखावे की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करना चाहिए और असामाजिक तत्वों की पहचान कर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

लेखिका हिसार, हरियाणा से कवयित्री एवं स्वतंत्र पत्रकार है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *