राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड जोगिन्दर नगर वितरित करेगा अश्वगंधा, कालमेघ, श्योनाक तथा शिग्रु के बीज

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सुरभि न्यूज़ ब्यूरो 

जोगिन्दर नगर, 28 जुलाई

प्रदेश में औषधीय पौधों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड का उत्तर भारत राज्यों का क्षेत्रीय कार्यालय जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश के आयुष हेल्थ व वेलनेस केंद्रों को औषधीय पौधों की बीज किट वितरित करेगा। इस बीच किट में अश्वगंधा व कालमेघ के 5-7 ग्राम बीज, श्योनाक व शिग्रु के 20-20 बीज शामिल रहेंगे।

राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अरुण चंदन ने जानकारी देते हुए बताया कि हिमाचल प्रदेश के ऐसे चिन्हित आयुष हेल्थ एवं वेलनेस केंद्रों को यह बीज उपलब्ध करवाए जाएंगे, जिनके पास भूमि उपलब्ध हो या फिर चिकित्सक इन्हें लगाने के इच्छुक हों।

उन्होने बताया कि ऐसे आयुष हेल्थ व वेलनेस केंद्र एक हजार मीटर की ऊंचाई से निचले क्षेत्रों में स्थित होने चाहिए। उन्होंने कहा कि इन औषधीय बीजों को वितरित करने का प्रमुख उद्देश्य जहां इन औषधीय पौधों को बढ़ावा देना है तो वहीं इनके प्रति लोगों को आकर्षित कर इन औषधीय पौधों के महत्व बारे जागरूक करना भी है।

कैसे होती है अश्वगंधा, कालमेघ, श्योनाक व शिग्रु (सहजन) की खेती

अश्वगंधा का पौधा गर्म जलवायु में पाया जाता है। इसकी खेती जून से अक्टूबर माह के बीच में की जा सकती है। यह पौधा 25 से 30 डिग्री तापमान पर अच्छी वृद्धि करता है तथा 500 से 750 मिलीमीटर वर्षा की जरूरत होती है। जैविक तत्वों से भरपूर तथा अच्छी निकासी युक्त भूमि खेती के लिए उपयुक्त होती है।

साथ ही रेतीली दोमट भूमि जिसका पीएच मान साढे सात से आठ हो उपयुक्त रहती है। यह पौधा बंजर भूमि में भी आसानी से उग जाता है। हल्की सिंचाई करके नवम्बर माह में जब पौधा पीला होने लगे, जड़ सहित पौधे को उखाड़ लें तथा जड़ों को अलग कर धुलाई करने के बाद छाया में सुखाकर पाउडर बनाकर प्रयोग में लाएं।

कालमेघ का पौधा भी गर्म जलवायु में पाया जाता है। इसकी खेती भी जून से अक्टूबर माह के बीच में की जा सकती है। यह पौधा भी 25 से 30 डिग्री तापमान पर अच्छी वृद्धि करता है। इस पौधे के लिए अच्छी धूप उपयुक्त होती है तथा पाला हानिकारक होता है। जैविक तत्वों से भरपूर तथा अच्छी निकासी युक्त भूमि कालमेघ की खेती के लिए उपयुक्त होती है।

साथ ही रेतीली दोमट भूमि जिसका पीएच मान साढ़े छह से साढ़े सात हो उपयुक्त रहती है। यह पौधा भी बंजर भूमि में आसानी से उग जाता है। 130 से 135 दिनों में इसकी फसल तैयार हो जाती है। फूल आने से पहले इस पौधे में दवाई का तत्व होता है। हल्की सिंचाई करके अक्टूबर माह में जब पौधा पीला होने लगे, जड़ सहित पौधे को उखाड़ लें तथा जड़ों को अलग कर धुलाई करने के बाद छाया में सुखाकर पाउडर बनाकर प्रयोग में लाएं।

श्योनाक का पौधा भी गर्म जलवायु में पाया जाता है तथा गर्म व नमी वाले स्थान पर अच्छी वृद्धि करता है। इस पौधे के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान व 4 से 6 घंटे की धूप उपयुक्त होती है। जैविक तत्वों से भरपूर तथा अच्छी निकासी युक्त भूमि कालमेघ की खेती के लिए उपयुक्त होती है। साथ ही रेतीली दोमट भूमि जिसका पीएच मान साढ़े पांच से साढ़े सात हो उपयुक्त रहती है। यह पौधा भी बंजर भूमि में आसानी से उग जाता है। 3 से 4 सालों के बाद यह पौधा फूल व फल देने लग जाता है।

शिग्रु (सहजन) का पौधा भी गर्म जलवायु में पाया जाता है तथा गर्म स्थान पर अच्छी वृद्धि करता है। इस पौधे के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान व अच्छी धूप उपयुक्त होती है। यह पौधा ठंडक को आसानी से सहन कर लेता है और पाला हानिकारक होता है। जैविक तत्वों से भरपूर तथा अच्छी निकासी युक्त भूमि शिगरू की खेती के लिए उपयुक्त होती है। साथ ही रेतीली दोमट भूमि जिसका पीएच मान साढ़े छह से साढ़े सात हो उपयुक्त रहती है।

यह पौधा भी बंजर भूमि में आसानी से उग जाता है। यह पीकेएम-दो किस्म है तथा पतियों के लिए इसे उगाया जाता है। 60-70 दिन के बाद पत्तियां तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। पतियों को अच्छी तरह धो कर छाया में सुखा लें तथा पाउडर बनाकर इसका प्रयोग करें। वर्ष में चार बार इसकी तुड़ाई कर सकते हैं तथा 160 से 170 दिनों के बाद फली प्राप्त की जा सकती है। इन पौधों को बीमारी से बचाने के लिए जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है।

 

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