सुरभि न्यूज़
ख़ुशी राम ठाकुर, बरोट
हिमाचल प्रदेश को बचाना है तो किसी को तो आगे आना ही होगा, हिमाचल को अगर आज नहीं बचाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब इसका अस्तित्व मिटकर इतिहास में नाम मात्र बनकर रह जाएगा। हिमाचल ब्लड टाईगर बैजनाथ महाकाल समाजसेवी संस्था के अध्यक्ष राजकुमार शर्मा का कहना है कि धीरे – धीरे लोग अपनी जान को गँवा रहे होंगे। अभी भी कुछ भी देर नहीं हुई है हिमाचल को बचाने के लिए हम सभी को मिलकर आगे आकार इसकी तन – मन और धन से रक्षा करने में अभी से एक जुट हो जाने की सख्त आवश्यकता है।
राजकुमार शर्मा ने बताया कि सदियों पूर्व प्रदेश में जिस पुरानी शैली के घर बनाए जाते थे सरकार उसी शैली के घरों का निर्माण करने के आदेश दें। पुरानी शैली के घर जैसे पहले बनाए जाते थे घर निर्माण के दौरान छोटे – छोटे पत्थर और मिटटी तथा लकड़ी के शानदार ढ़ाई मंजिले शहरों और गाँवों में मात्र डेढ़ मंजिल से ज्यादा ऊँचे न हो। सदियों पूर्व भी तो बुजुर्गों ने घर बनाए थे और उन घरों में परिवार के सभी सदस्य शान्ति पूर्वक रहने से आपस में अच्छा मेल मिलाप भी रहता था। मगर उस्सी तरह के घर शायद गाँवों में भी देखने को नहीं मिल पा पाते हैं।
आजकल गाँवों में भी बन रहे सीमेंट के घर सुरक्षित ही नहीं है एक तो वे घर ढलानदार ही नहीं होते हैं वहीँ दूसरी ओर सरिया , कंक्रीट डालने से बजन में बढ़ौतरी होने से भूकम्प आदि के छोटे से झटके से ही पल भर में ही धरयाशी हो जाते हैं। इसलिए हिमाचल को बचाओ एक नई पहल के साथ आपस मे एकता बनाओ और सही कार्य को अंजाम देने की सख्त आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इसके साथ – साथ जयादा से ज्यादा पेड़ खुद भी लगाएं और वन विभाग से भी आग्रह किया जाए कि पेड़ लगाए जहां भी वन विभाग की खाली जमीन है और जिन लोगों ने वन विभाग की जमीन पर फलदार पौधे लगाएं हैं उनको मत काटिए उन्हें लीज पर दें इससे सरकार को सही राजस्व होगा। पहाड़ों को काटकर नुक्सान ही होगा।
हाल ही में जो पेड़ काटे गए हैं उनको अपने अस्तित्व में आने के लिए कई वर्ष लग जाएंगे। इसलिए हम सभी को आगे आकर जितना हो सके वनों को बचाना पड़ेगा। इसके साथ नदियों को बीच से खाली कर काफी गहरा करना पड़ेगा क्योंकि इनमें जो मालवा बह कर आया है उससे नदियाँ नीचे के वजाय ऊपर आ गई है। जिस कारण नदियों का पानी किनारों को काटता हुआ व मिटटी को कमजोर करता हुआ अपने साथ बहा कर ले जा रहा है और नदियों का तटीयकरण करना भी अति आवश्यक है। उनका कहना है कि सदियों पूर्व भी बाढ़ें आती थी और क्रेटवायर के डंगे लगते थे नदियों के साथ जब से डंगे सरिये और कंक्रीट के साथ देने शुरू किए गए हैं तब से ही भारी मात्रा तबाही ज्यादा ही हो रही है।
क्योंकि जब एक सरिया हिलेगा तो दूसरा सरिया उससे जुड़ा होने के चलते वह भी अपने – आप ही हिल जाएगा और पुरे का पूरा डंगा जहां तक जुड़ा है वहां तक क्षतिग्रस्त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि पतली कूहल में स्थित फ्रूट की दुकानों से आगे का हाल सभी के सामने हैं और रायसन में भी यही हाल हुआ है। नदियों का बहाव सीधा कैसे किया जाए उसके उपाय मात्र खोजना ही नहीं बल्कि उस पर कार्य करने की भी अति आवश्यकता है।