सुरभि न्यूज़, शिमला।
हिमाचल प्रदेश को लंबे अरसे से माइनिंग की मंजूरी नहीं मिल पा रही है। खनन पट्टों की कानूनी तरीके से ऑक्शन करने के बाद भी फोरेस्ट क्लीयरेंस नहीं मिल पाई है। इतना ही नहीं, यह मंजूरी कोई छह महीने या एक साल से नहीं, बल्कि वर्ष 2016 के मामले लंबित पड़े हुए हैं, जिनकी इजाजत नहीं मिलने से मामला अटक गया है। इसकी वजह से प्रदेश के चार जिलों में अवैध खनन के मामले भी बढ़ने लगे हैं, वहीं जिन लोगों ने लीज पर खनन पट्टे लिए हैं, उनका पैसा फंस गया है। जानकारी के अनुसार अब सरकार ने केंद्रीय वन मंत्रालय से इस मामले को उठाने की सोची है, क्योंकि वर्ष 2016 से ये मामले वन मंत्रालय के पास ही फंसे हैं। राज्य के वन विभाग को इस संबंध में सरकार ने भी कहा है वह अपने स्तर पर मामले को उठाए। वन विभाग की मुखिया ने इस रिकॉर्ड को देखकर मामला उठाने की बात कही है। प्रदेश के सिरमौर, शिमला, मंडी व कुल्लू जिलों में खनन पट्टों को फोरेस्ट क्लीयरेंस के 100 मामले अटके हुए हैं।
इनमें लोगों को लाखों रुपया फंसा है। लीज लेने वालों पर सरकार ने खुद फोरेस्ट क्लीयरेंस लेने की शर्त लगा रखी है, मगर अब वे लोग खुद हाथ-पांव मारकर थक चुके हैं। ऐसे में उन्होंने अब सरकार से आग्रह किया है कि वह इसमें मदद करे। बता दें कि पहले वन मंत्रालय से मंजूरी मिलती है, जिसके बाद मामले सुप्रीम कोर्ट में जाते हैं। हिमाचल को एफसीए की मंजूरियां सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से ही मिलती हैं। हाल ही में जो मंजूरियां मिली थीं, उनमें माइनिंग मामले नहीं थे, क्योंकि ये वन मंत्रालय के पास अटके हैं। वहां से आगे जाएंगे, तभी इन पर आगामी कार्रवाई होगी। ऐेसे में अब राज्य सरकार वन मंत्रालय को इस संबंध में कहेगा ताकि सुप्रीम कोर्ट तक यह मामले जा सकें। जिन लोगों ने माइनिंग लीज ले रखी हैं, वे बिना अनुमति के काम भी नहीं कर पा रहे हैं, वहीं अवैध रूप से खनन के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस समय वन मंत्रालय के पास जो मामले लंबित हैं, उनमें सिरमौर के 42 केस, मंडी के 18 मामले, शिमला के 20 और कुल्लू के भी 20 मामले हैं, जिनको मंजूरियों का इंतजार है। जिन लोगों ने लीज ले रखी है, उनके पांच-पांच साल होने लगे हैं जिनको हर साल रिव्यू करवानी पड़ रही है। इसका जल्द समाधान नहीं निकलता है, तो लोग अपने दावों को छोड़ भी सकते हैं, जिनके पहले ही लाखों रुपए फंसे हुए हैं।