नए नए शब्दों की बरसात : मदन गुप्ता सपाटू

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सुरभि न्यूज चंडीगढ़ । कल पप्पू अपने पापा से पूछ रहा था डैडी डैडी आजकल कोरोना अंकल आपके पास नहीं आ रहे , बाप ने बेटे को डांटा। कोरोना अंकल के बच्चे, वो खुराना अंकल हैं। पप्पू ने सफाई दी डैैडी मैं ये वर्ड बार बार रेडियो एटी वीए क्लास, इधर उधर आपके फोन, आंटियों की बातचीत में सुन सुन कर अंकल के नाम में कन्फयूज हो गया था। अच्छा पापा , ये दो गज की दूरी क्या होती है। आप और मम्मी की दूरी तो पता है पर ये दो गज अंकल क्या हैं। डैडी जी ने समझाने की कोशिश की ष्मेरी गलती के इंटेलिजेंट नतीजेे! हमारे जमाने में ये मैथ के सवाल में होता था जब हमें रुपये, आने, पाई, सेर, छंटाक, गज,फुट, इंच के सवाल न आने पर मास्टर अपना गजनुमा डंडा हमारी हाथ सिकाई के लिए हमेशा ऐसे लिए चलते थे जैसे सिपाही अपनी बंदूक लेकर हर वक्त तैयार रहता है । हमारे प्रधान मंत्री भी उसी जमाने के हैं, तभी तो दो गज की दूरी ही याद रहा,मीटर नहीं वरना आज तुम इतने कन्फयूज न दिखते। उन दिनों कपड़े की दुकानों पर जब कोई लड़ाई झगड़ा हो जाता था तो बजाज वगैरा इसी गज को अस्त्र शस्त्र बनाकर धुनाई करते या करवाते थे। जमाना बदल गया है। 2020. 21 में नए नए शब्द सामने आ गए हैं। उन्हें बोलने के लिए जीभ को कई एंगल से मोडऩा पड़ता है तब कहीं वो शब्द बाहर निकल पाता है। जैसे किसी ट््र्रैवल एजेंट को कोई बोले कि जरा चेकोस्लोवाकिया को अंग्रेजी में लिख कर दिखा तो वह नक्ल मार कर ही लिख पाएगा। ऐसे ही जब एक दौर में कई फिल्मी सितारों ओैर शायरों को भारत में डर लगने लगा था तब एक अभिनेता की टी वी डिबेट में बार बार जुबान की सुई असहिष्णुता शब्द बोलने पर अटक जाती थी और अंतत: उन्होंने इनटौल्रेंस बोल के पीछा छुड़ाया । कुछ ऐसे ही,अब कई दवाइयों के नाम बोलने मुश्किल हो गए हैं । हालांकि कोई डॉक्टर यदि अपने पेन के रिफिल की स्याही चेक करने के लिए उसे किसी पर्ची पर घिसा घिसा कर लकीरें खींच दे या गोले बना देए तो भी उस पर्ची को देख कर एकोई न कोई केमिस्ट उसे दो चार सौ की दवाई तो चिपका ही डालता है। बाकी अभी जनता न ठीक से क्वारेंटाइन या क्वारंटीन बोल पाई थी एन लिख ही पाई थी कि एक और नई मुसीबत आ गई रेमिडिसिवर जिसे न मांगने वाला ठीक से बोल पा रहा है न केमिस्ट । कई बेचारे जो योगा के शौकीन हैं, वे इसे ष्राम देव सर ही बोले जा रहे हैं। पुराने जाने पहचाने रोजमर्रा के शब्द तो मानों कोरोना ही उड़ा ले गया। पहले तो 2019 में कारों के मॉडल की तरह बीमारी का नया मॉडल कोविड 19 आ गया। जरा इसकी खोज की तो पता चला कि कोरोना वायरस का तकनीकी नाम सार्स कोव.2 है। इस वायरस से होने वाली बीमारी को कोविड कहते हैं। बस यों समझ लीजिए कि रिश्ता करने से पहले खानदान का पता करना जरुरी है। कोविड19 इसलिए कहने लगे ताकि इसकी मैन्युफैक्चरिंग डेट याद रहे। कहीं कोई 2022 माडल आ जाए तो सीनियर जूनियर का पता रहे। दिनचर्या तो बदली ही, लोगों के टाईटल ही बदल गए। मीडिया का इसमें अमूल्य योगदान रहा है।जो लोग बिना मास्क पहने मटरगश्ती करते हैं, या कोविड नियमों का पालन नहीं करते हैं, ऐसी बिरादरी का नाम कोविडियट्स ही रख दिया गया ताकि उनके खानदान का पता चलता रहे। ऐसे लोगों की पिछले साल से अब तक छित्तर परेड जारी है। एक आईएएस का मेन्ज क्लीयर करने का दावा करने वाली मोतरमा ने तिहाड़ जेल, अपने सजना के साथ जाना पसंद किया लेकिन मास्क लगाना नहीं। ऐसे ही जीन्स वालों को ये उपाधि प्रदान की गई है। कई ऐसे पुलिसवाले भी हैं जो खुद बिना मास्क के दूसरों को मास्क पहना रहे हैं। नामकरण में हमारे चौथे स्तंभ का बहुत बड़ा योगदान रहा है। आजादी से लेकर 2019 से पहले तक मीडिया ने एक प्रधानमंत्री को देश का चाचा कहलवाया दिया। एक को ताउ। तू कौन मैं खाम खा। किसी को पूरे भारत की अम्मां कहलवा दिया तो किसी को बैठे बिठाए देश की दीदी बना दिया । एक राज्य के मुख्यमंत्री मामा कहलाने लगे । परंतु पूरे हिन्दुस्तान के जीजाए फूफा या मौसा नजर नहीं आए ।एक को मीडिया जीजा जी लिखता तो रहता है परंतु लोग उन्हें डुप्लीकेट मानते हैैं। और अगर मजाक में कहें तो राष्ट्रपिता हैं। राष्ट्रमाता नहीं है। राष्ट्र्पति हैं लेकिन राष्ट्रपत्नी नहीं। अम्मां थी तो पापा नहीं दिखे । बहन जी हैं तो जीजा जी नदारद हैं । हैं तो वो डुप्लीकेट हैं। दीदी हैं तो दादा नहीं। अब कुछ ऐसे ही एक नामकरण हुआ है कोरानियल्ज। बोले तो जिन का शिलान्यास लॉकडाउन के फुर्सत के क्षणों में नई नई रेसिपियां बनाते खाते ओैरों को चखाते हो गया है और वे 2019 या 2020.21 मॉडल हैं, उनका गोत्र कोरानियल्स कहलाएगा। हाल हीे में आए कुछ दवाईयों के नाम बोलकर जीभ टेढ़ी हाने लग जाती है। हाइर्डेक्लेारोक्वीन, ड्रमसक्रालिंग, रेमेडिसिवर एमोनोक्लानल,एंटी बॉडी थेरेपी जेैसे शब्दों को बोल कर खुद डाक्टर होने का एहसास होने लगता है। एक दिन हमने एक मित्र को यह बताने के लिए फोन किया कि उनकी सास रास्ता भूल कर हमारी गली में घूम रही है। हमारी बिना सुने अगला हमसे यही पूछने लग बैठा. आक्सीजन लेवल क्या चल रहा है, बुखार तो नहीं, हल्दी वाला दूध और काढ़ा ले रहे हो, गिलोय का जूस पी रहे हो न, अपना ख्याल रखना। बड़ा फैेल रहा है, हैं जी। टेक केयर फोन बंद। अगला दूसरे के हालचाल पूछने में व्यस्त । उनकी सास हमारे पल्ले वो भी हियरिंग एड के बिना। इस उम्र में. जाने क्या मैनें सुनी जाने क्या तूने कही वाली हालत बनी रही। सास उनकी ए शाम तक टेक केयर का ठेका हमें मिल गया । भाई साहब का तो फोन मिला नहीं । आखिर में हमें ही उन्हें लोड करके उनके घर अनलोड करना पड़ा। लगभग हर अनपढ़ और पढे ़लिखों के भेजे की डिक्शनरी में . कोरोना वेव, कोरोना कर्व, वेरियेंट,वैक्सीन, को वैक्सीन, कोवीशील्ड, इम्युनिटी, टैैस्ट, डबल म्युटेंट, ट्र्पिल म्युटेंट, बंगाल वेरियेंट, सेनेटाइजर, मास्क, कोरोना वारियर्ज, हैल्थ वर्कर्ज, डीप क्लीन, क्म्युनिटी स्प्रेड, कम्युनिटी र्टंस्मिशन,इन्क्युवेशन, कोरोना कर्व, पैनिक बाइंग, पेंशेंट जीरो,सेल्फ आइसोलेशन, ऑनलाइन क्लासिज, ऑनलाइन शापिंग,वर्क फ्राम होम, जैसे शब्द ऐसे फिट हो गए हैं जैसे क से कबूतर ख से खरगोश। इनके हिन्दी में शब्द बोलने संस्कृत जैसे लगते हैं, इसीलिए सब को इंग्लिश से ही काम चलाना पड़ रहा है। हाथ मिलाने की जगह हाथ जोडऩे की प्रथा आ गई । जिन से रहा नहीं जाता वो एल्बो बम्प यानी कोहनी टकरा कर अपनी ख्वाहिश या खुंदक पूरी कर लेते हैं। बच्चों को वेबीनार, नेट कनेक्शन जेैसे शब्द उनके सिलेबस में लग गए । कवियत्रियों की भरमार हो गई है। हर कोई वेबीनार पर उछल उछल कर अपनी कविताएं सुना रही हैं । उनके पति अपनी बला दूसरों पर डाल रहे हैं कि भई हमें ही अकेले सजा क्यों मिले ए आप भी सुनो फिर सोचो कि हम पर क्या क्या कहर बरसता है। देखते जाएं आगे आगे होता है क्या ! हो सकता है नए पैदा होने वाले बच्चे मास्क सहित ही इस दुनिया में कदम रखें । होनहार बिरवान के होत चिकने पात की जगह सब कहें होनहार बिरवान के होत लाल लाल मास्क।