कोरोना काल में सीखा खेती-बाड़ी का हूनर, बना मजबूत आर्थिकी का आधार

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सुरभि न्यूज़ कुल्लू। नीना पिछले लगभग 14 सालों से अपने परिवार के साथ कुल्लू शहर में रह रही थी। नीना की दोनों बेटियां शहर के कान्वेंट स्कूल में पढ़ती हैं। नीना और उसके परिवार को कभी अपने गांव जाने की जरूरत महसूस ही नहीं हुई, क्योंकि गांव में सास-ससुर और परिवार के दूसरे सदस्य जहां सामाजिक दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रहे थे, वहीं पैतृक जमीन की भी अच्छे से देखभाल कर रहे थे। कुछ साल पहले पारिवारिक परिस्थितियों के चलते जमीन का बंटवारा हुआ। नीना के परिवार के हिस्से में लगभग सात बीघा जमीन आई। अब जमीन की देखभाल करने वाला गांव मे काई नहीं था। बच्चों की शहर के कान्वेंट में पढ़ाई के चलते गांव में शिफ्ट होना स्वाभाविक नहीं था। धीरे-धीरे जमीन जिसमें अनेक खेत थे, अब बंजर में तबदील हो चुकी थी। समाज और गांव के लोग भी अच्छी भली जमीन को बंजर होता देख तरस खाकर हमें कोसते। सचमुच यह बहुत बुरा अनुभव था। पिछले साल जब कोरोना महामारी ने दस्तक दी, तो शहर में किराए के छोटे-छोटे दो कमरों में समय व्यतीत करना बड़ा असहज सा हो गया। नीना बताती है कि शहर में कोरोना महामारी के खौफ ने हमें गांव की ओर रूख करने पर मजबूर किया। सभी लोगों को गांव सुरक्षित लगने लगे। हमें भी महामारी के कारण बच्चों की चिंता थी और झट से गांव की ओर रवाना हो गए। नीना बंजार उपमण्डल की ग्राम पंचायत चकुरठा के दल्याड़ा गांव से संबंध रखती है। नीना बताती है कि हम गांव पहुंचे और दूसरों की लहलाती फसलों के एक छोर पर बंजर बन चुकी अपनी जमीन को देखकर मन दुखी हुआ। मैंने अपना पूरा परिवार पहले ही दिन से खेतों को संवारने में लगा दिया। आस-पास की फसलों को देखकर हमने भी वही फसलें लगाई। सेब, प्लम, खुर्मानी के पौधे भी खेतों के किनारों पर तथा घासनी में लगाए। प्लम के पहले से लगे पेड़ों की अच्छे से देखभाल की और अब ये पेड़ फल दे रहे हैं। इस साल नीना ने कृषि विभाग से तथा स्थनीय तौर पर मटर का बीज प्राप्त किया और जमीन के बडे़ भू-भाग में इसकी बीजाई की। पूरे परिवार ने तीन-चार महीने खूब मेहनत की। मटर के साथ-साथ राजमाह, खीरा व करेला की भी बहुतायत में पैदावार हुई है। मटर के काफी अच्छे दाम मिल रहे हैं। नीना और उसका परिवार अब काफी खुश है। सालभर का गुजारा नकदी फसलों से आसानी से हो रहा है। नित्य प्रति प्रयोग के लिए साग-सब्जियां भी उगाई हैं। बाजार से अब काफी कम चीजें ही खरीदनी पड़ती हैं। अच्छी आमद के साथ परिवार को भी रसायनों व कीटनाशकों रहित फल-सब्जियां खाने को मिल रही हैं। नीना का कहना है कि कोरोना महामारी का दौर उसके परिवार के लिए वरदान साबित हुआ है। परिवार ने इस मुश्किल दौर को अवसरों में बदला है। वह दूसरे लोगों से भी अपील करना चाहती है कि मन से यदि खेती का काम किया जाए तो अच्छी आय अर्जित की जा सकती है। अनेकों नकदी फसलें हैं जिनकी मांग बाजार में हर समय रहती है। आर्थिकी तो मजबूत होती ही है, साथ ही शारीरिक परिश्रम से अनेक बीमारियों से मुक्ति मिलती है और हमारी इम्यूनिटी भी बढ़ती है। उधर, उपायुक्त ऋचा वर्मा ने जानकारी दी कि जिला में मटर की खेती लगभग 1900 हेक्टेयर भूमि पर की जा रही है। जिला में इसका औसतन उत्पादन सालाना 11400 मीट्रिक टन है। उन्होंने कहा कि किसानों को हर साल कृषि विभाग द्वारा 1000 क्विंटल से अधिक बीज उपलब्ध करवाया जा रहा है जिसमें रवी की फसल के लिए 700 क्विंटल जबकि खरीफ की फसल के लिए 300 क्विंटल बीज की आपूर्ति करके किसानों की मांग को पूरा किया जाता है। उन्होंने कहा कि जिला में मटर नकदी फसलों की श्रेणी में फलों के बाद किसानों की आर्थिकी को मजबूत करने में कारगर साबित हो रहा है। लगभग सभी किसान मटर की फसल लगाना पसंद करते हैं और उनकी अच्छी आमदनी भी हो जाती है। उन्होंने कृषि विभाग के विशेषज्ञों से जिला में मटर तथा अन्य फसलों की किसानों को समय समय पर तकनीकी जानकारी प्रदान करने को कहा है।

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