जिला मंडी की चौहार घाटी तथा जिला कांगड़ा की छोटाभंगाल घाटी में गत लगभग चार दशकों से भयंकर अग्निकांड हुए हैं। इसे देखते हुए सरकार व प्रशासन को घाटियों के गांवों में आग से बचाव के लिए पूरे प्रबंध करने चाहिए। घाटियों के गाँवों से इससे पूर्व भी कई भयंकर अग्निकांड हो चुके हैं। जानकारी के अनुसार वर्ष 1971 के बाद से इन घाटियों में बड़े- बड़े अग्निकांडों से अबतक करोड़ों रूपए का नुकसान हो गया है। तथा साथ में कई लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है। इसलिए दोनों घाटियों के लोगों ने घाटियों के केन्द्र स्थल बरोट या फिर मुल्थान में अग्निशमन केन्द्र खोलने की मांग भी कई वर्षों से करते आ रहे हैं मगर आजतक इस पर कोई भी कार्यवाही नहीं हो पाई है। लोगों ने घाटियों में अग्निशमन खोलने के लिए एक बार फिर से सरकार से जोरदार मांग की है। चौहार घाटी की 13 पंचायतों में लगभग 120 तथा छोटा भंगाल घाटी की 7 पंचायतों में 33 गाँव शामिल है। इनमें कुछ गाँव अभी भी सड़क सुविधा से कोसों दूर है। ऐसे में यदि यहाँ पर कोई अग्निकांड होता है तो उस समय आग पर काबू पाना नामुमकिन हो जाता है और जब तक आग पर काबू पाने के प्रयास शुरू होते हैं तब तक उस मकान के आसपास के कई मकान आग की भेंट चढ़ चुके होते हैं। यहाँ पर एक और तथ्य गौर करने लायक है कि घाटियों के गाँवों में अधिकतर अग्निकांड के हादसे सर्दियों के दौरान ही घटित हुए हैं। इस दौरान होने वाले हादसों का मुख्य कारण यही माना जाता है कि एक तो यहाँ लोगों के घर एक दूसरे के साथ–साथ सटे हुए होते हैं और दूसरा सर्दियों के दौरान होने वाली बर्फवारी से बचने के लिए घरों में भारी मात्रा में लकड़ी व पशुओं के लिए सुखा चारा रखा होता है। एक बात यह भी है कि यहाँ जो घर बने हैं वह काठ कुणी के देवदार की लकड़ी से बने होते हैं इनमें जयादातर शुद्ध देवदार की लकड़ी लगी होती जो आग लगाने पर पेट्रोल का काम करती है ऐसे में एक छोटी सी आग की चिंगारी भी सब कुछ राख करने के लिए काफी होती है। इसलिए सरकार को जहां छोटा भंगाल घाटी व चौहार घाटी के सड़क से जुड़े गाँवों में अग्निकांड से बचाव के लिए अग्निशमन केन्द्र को स्थापित किया जाए वहीँ सड़क सुविधा से वंचित दूरवर्ती गाँवों में अग्नि कांड से बचाव के लिए जला भण्डारण टेंक को स्थापित किया जाए। ऐसे में सरकार को चौहार घाटी तथा छोटाभंगाल घाटी में अग्निशमन केन्द्र को स्थापित कर लेना चाहिए। प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 1971 में छोटा भंगालघाटी की बड़ा ग्रां में 90 घर , 1974 में स्वाड़ गाँव में 30 घर, 1980 में तरमेहर गाँव में 52 घर, 1984 में अन्दरली मलाह गाँव में 18 घर, वर्ष 1995 में नपहौता गाँव में 30 घर, वर्ष 1999 में खड़ी मलाह गाँव में 14 घर, वर्ष 2005 में बखलोग में 14 घर तथा गाँव वोचिंग में 1 एक घर तथा चार गौशाला, वर्ष 2006 में अन्दरली मलाह गाँव में 40 घर तथा कढ़ीयाण गाँव में छः घर, वर्ष 2007 में खबाण गाँव में तीन घर व एक युवती, वर्ष 2009 में कोठी कोहड़ गाँव में 2 घर, 2010 में धरमाण गाँव में 2 घर, वर्ष 2011 में गांव लचकंडी में तीन घर, वर्ष 2012 में गाँव लोआई गाँव में 20 घर, वर्ष 2013 में लोहारडी बाज़ार में एक खोखे सहित एक वृद्ध तथा वर्ष 2014 में धमरेहड़ गाँव में दो मंजिला घर जबकि बरोट बाज़ार में पहली बार टेलीफोन एक्स्चेज तथा दूसरी बार आधा बाज़ार जल कर राख हो गया था। इन दोनों घाटियों में पांच लोग तथा दर्जनों पशु जिन्दा जल कर राख हो गए। बरोट पचांयत प्रधान रमेश कुमार का कहना है बरोट में अग्निशमन केन्द्र का होना बहुत जरूरी है जिसके लिए स्थानीय विधायक तथा सरकार के सामने कई बार मांग रखी गई परन्तु परिणाम हमेशा निराशाजनक ही रहा। वहीं कांगड़ा जिला के मुल्थान तहसील के तहसीलदार ने बताया कि जिस तहर यहां के बनाए गए मकानों की शैली है उसे देखते हुए गांव के लोगों को आग से बहुत सावधानी रखने जरूरत है। सरकार मुल्थान में अग्निशमन केन्द्र खोलने के लिए प्रयासरत है और जल्दी ही अग्निशमन केन्द्र खोलेगी।
2021-08-21