सुरभि न्यूज (खुशी राम ठाकुर) बरोट। जिला कुल्लू की लगघाटी व जिला कांगडा की छोटाभंगाल घाटी की चोटी पर लगभग 16 हज़ार फुट की ऊँचाई पर स्थित डैहनासर नामक पवित्र झील है। यहाँ तक पहुँचने के लिए बरोट, थरटूखोड तथा कुल्लू लगघाटी से होकर जाता जो की ज्यादातर पैदल और सीधी चढ़ाई वाला है। इन जगहों से यातायात मार्ग से आकर पैदल रास्ते से चलें तो शाम को झील तक पहुँच जाते हैं। खाना, पानी व रात को ठहरने का सामान साथ ले जाएँ। जैसे-जैसे चढ़ाई चढ़ते जायेंगे बहुत ही खुबसूरत प्राकृतिक नज़ारे देखने को मिलेंगे तथा अनेक प्रकार की उगने वाली जड़ी बूटियों की सुगंध से एक नशा सा लगने लगता है जिसके लिए पानी, तरल पेय या फिर चूसने वाली टाफियां लेते रहें। प्रति वर्ष भादों बीस प्रविष्टे को कांगड़ा, मंडी तथा कुल्लू जिले के हज़ारो कि संख्या में लोग इस पवित्र झील में पवित्र स्नान के लिए आते हैं। इन जिलो के हज़ारों श्र्द्धालुओं सहित दूरदराज के पर्यटक भी इस दिन पवित्र स्नान के लिए आते हैं। दन्त कथायों में बुजूर्ग बताते हैं कि भगवान शिव व पार्वती मणिमहेश स्नान करने जा रहे थे तो झील को देख कर रात को प्रवास के लिए रुक गए। कहतें है कि झील में किसी डायन का निवास था। डायन ने शिव और पार्वती को युद्ध के लिए ललकारा तो शिव ने संहार कर दिया तब से इस झील का नाम डैह्नासर पड़ गया। दूसरी दंतकथा में कहते हैं कि इस पवित्र झील पर सदियों पहले ऋषि पराशर ने घोर तपस्या के बाद शिव भगवान को अपने समक्ष पाया था।
ऋषि पराशर ने भगवान शिव से अपनी शिव भक्ति से मात्र इस पवित्र स्थल पर पवित्र झील को तैयार करने को कहा था जिसका नाम आजकल डेहनसर झील के नाम से जाना जा रहा है। उसी दौरान भगवान शिव ने भी ऋषि पराशर की तुरंत ही मनोकामना पूरी कर दी। उसके बाद इस पवित्र झील में प्रतिवर्ष भादों की बीस का दिन पवित्र स्नान करने का शुभ दिन निर्धारित किया गया। उसके बाद आजतक भादों माह की बीस प्रविष्टे को पवित्र स्नान का पवित्र व शुभ दिन मानकर इस झील में प्रतिवर्ष हज़ारों श्रद्धालू डुबकियां लगाकर अपने आप को पवित्र करते हैं। श्रद्धालू पूजा अर्चना करके अपनी मन्नत मांग कर अगले वर्ष फिर मन्नत पूरी होने पर आने की प्रार्थना करते हैं। एक परंपरा के अनुसार इस पवित्र झील में डुबकी लगाने के बाद कुल्लू से आए श्रद्धालू और चौहर घाटी तथा छोटाभंगाल से आए श्रद्धालू आपस में धर्म भाई या धर्म बहन का रिश्ता जोड़ने को पवित्र मानते हैं दूसरी बार स्नान करने पवित्र झील में आयें तो फिर से आपस में मिल सके। इस झील में एक अदभुत नजारा देखने को मिलता है। पोलिंग पंचायत के पूर्व प्रधान पूर्ण चंद तथा बड़ा ग्रां पंचायत के बुजूर्ग डूमणू राम बताते हैं कि इस पवित्र झील को साफ रखने का जिम्मा भगवान शिव ने चिड़िया को दे रखा है। अगर इस पवित्र झील के अंदर एक भी तिनका पड़ जाता है तो चिड़िया उस तिनके को तुरंत तिनका उठाकर दूर जाकर बाहर फ़ेंक देती है। हर वर्ष पवित्र झील में आने वाले श्रद्धालू खाने पिने के सामान के साथ ढेरों कचरा छोड़ जाते हैं जो आने वाले हर वर्ष समस्या बढ़ती जा रही है। पवित्र झील को आजतक किसी ने स्वच्छ रखने की अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी है जो सोचनीय विषय है।
इस पवित्र झील की आजकल इतनी दयनीय हाल हो गई है कि इसके अंदर कई प्रकार का कूड़ा कचरा पड़ा हुआ है। क्योंकि यहाँ पर आने वाले कुछ एक नास्तिक श्रद्धालुओं की वजह से यह पवित्र झील दूषित हो रही है। इन लोगों का कहना है कि लगभग पच्चास वर्ष पूर्व यह पवित्र डेहनसर झील एक किलोमीटर लंबी, आधा किलो मीटर चौड़ी तथा बेहद गहरी होने के चलते अपने पूरे योवन के साथ पवित्र जल से लबालब थी। मगर अब श्रद्धालुओं द्वारा की जाने वाली अपवित्रता की वजह से अपना अस्तित्त्व खोने को मज़बूर है। पूर्ण चंद तथा बुजूर्ग डूमणू राम ने यहाँ पर पवित्र स्नान के लिए आने वाले सभी श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि इस पवित्र झील में स्नान करते समय साबून का प्रयोग नहीं करें। साथ में अन्य गंदगी व अन्य किसी भी प्रकार का कचरा पवित्र झील के अंदर न डालें। सभी श्रद्धालु मिलकर इधर–उधर बिखरे कचरे को इकठा करके जला दें या जमीन पर दबा दें। ताकि इस पवित्र झील की सुंदरता हमेशा कायम रहने के साथ-साथ इसका अस्तित्व भी बचा रहे।