सुरभि न्यूज़(परस राम भारती) तीर्थन घाटी। जिला कुल्लू के उपमंडल बंजार में तीर्थन घाटी की देव संस्कृति और सभ्यता बहुत ही प्राचीन और समृद्ध है। यहाँ पूरे साल भर अनगिनत मेलों, त्यौहारों और धार्मिक उत्सवों का आयोजन होता रहता है जो यहां की समृद्ध पहाड़ी संस्कृति को वखूबी दर्शाता है। ये सांस्कृतिक मेले और त्यौहार यहाँ के लोगों के हर्ष, उल्लास, श्रद्धा और खुशी का प्रतीक है। तीर्थन घाटी के लोग सभी मेलों और त्यौहारों के किसी भी अवसर का स्वागत करते है। यहां के तकरीबन हर गांव में समय समय पर किसी न किसी मेले का आयोजन होता रहता है। यहां के अधिकांश मेले धार्मिक होते है। इन मेलों में स्थानीय देवी देवताओं की विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना के इलावा यहाँ के विशेष धार्मिक रीति रिवाजों और प्राचीन देव परम्पराओं का निर्वहन किया जाता है।
आज तीर्थन घाटी के केन्द्र बिन्दु गुशैनी में हर वर्ष की भान्ति इस बार भी तीन कोठी की आराध्य देवी माता गाड़ा दुर्गा का हुम उत्सव बड़े हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया गया। इस मेले में हजारों की संख्या में स्थानीय लोगों के इलावा कुछ पर्यटकों ने भी हिस्सा लिया और हुम मेला तथा तीर्थन नदी में माता के शाही स्नान को देखने का भरपूर लुत्फ उठाया। इस अवसर पर बंजार विधानसभा क्षेत्र के विधायक सुरेन्द्र शौरी ने भी माता के दरवार में हाजरी भरकर आशिर्वाद भी लिया है। माता गाड़ा दुर्गा के पुजारी हरीश शर्मा ने बताया कि हर साल भादों माह में माता का हूम पर्व हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान माता को सुंदर लाव लश्कर व वाद्य यंत्रों की थाप पर इसके निवास स्थान प्राचीन मन्दिर गुशैनी में लाया जाता है तथा इसके पश्चात माता की पालकी को तीर्थन नदी की पवित्र जलधारा में शाही स्नान करवाया गया। इन्होने बताया कि इतिहास से प्राप्त जानकारी के मुताबिक प्राचीन काल में माता एक कन्या रूप में अवतरित हुई थी और आज के दिन इसी स्थान पर तीर्थन नदी में छलांग लगाकर लुप्त हो गई थी। और इसके पश्चात शलवाड़ नामक स्थान पर एक मूर्ति के रुप में प्रकट हुईं थी। उस दौरान आकाशवाणी हुई थी कि मैं दुर्गा के रुप में अवतरित हुई हूं और गुशैनी में मेरा मंदिर बनाया जाए। तब उस समय लोगों ने गुशैनी में मन्दिर का निमार्ण करके इसके अंदर माता की परस्त प्रतिमा को स्थापित किया है। इन्होंने बताया कि तीर्थन नदी को स्थानीय भाषा में गाड़ कहते है और नदी यानी गाड़ से उत्पन्न होने के कारण ही माता को गाड़ा दुर्गा के नाम से पुजा जाने लगा। हरीश शर्मा ने बताया कि इस बार का हुम पर्व ऐतिहासिक होने वाला है क्योंकि करीब 40 वर्षों के बाद माता गाड़ा दुर्गा द्वारा कुछ चिन्हित गावों में एक विषेश देव परंपरा का निर्वहन किया जाएगा जिसमें माता की पालकी इन गावों के हर घर में जाएगी और देव रीति के अनुसार फेरी निकाली जाएगी। रात को हर घर में पहाड़ी धाम का आयोजन होगा जिसमें हजारों की संख्या में लोगों के शामिल होने की उम्मीद है।