सुरभि न्यूज़ (खुशी राम ठाकुर) बरोट। चौहार घाटी तथा छोटा भंगाल घाटी में देसी गाय की नस्ल लुप्त होने की कगार पर पहुँच गई है। आजकल दोनों घाटियों में जर्सी गाय की काफी बढ़ोतरी हो गई है। चौहार तथा छोटा भंगाल घाटी के लोगों का मानना है कि देसी नस्ल का पशुपालन ही सबसे उत्तम है। बेशक जर्सी गाय की अपेक्षा देसी गाय की दूध देने की क्षमता कम होती है मगर जर्सी गाय का दूध, घी व मल-मूत्र , जन्म-मृत्यु व किसी भी शुभ मुहूर्त के दौरान बिल्कुल प्रयोग नहीं किया जाता है। बजरंग दल इकाई बैजनाथ के सदस्य वीर सिंह ठाकुर ने बताया कि 20-25 वर्ष पूर्व पशु पालन विभाग ने समूचे प्रदेश में तीन-चार पंचायतों को मिलाकर वेटनरी डिस्पेंसरियों में गाय के गर्भाधान के लिए कृत्रिम टीकाकरण के साथ देसी नस्ल के लिए एक–एक देसी बैल का प्रावधान भी किया मगर कुछ वर्ष पूर्व से ही उन बैलों को बंद ही कर दिया है। वीरसिंह ठाकुर ने घाटियों के समस्त किसानों की ओर से पशुपालन विभाग तथा सरकार से मांग की है कि गाय व बैलों की नस्ल को बरकरार रखने के लिए इन दोनों घाटियों में ही नहीं बल्कि समूचे देश में स्थापित वेटनरी डिस्पेंसरियों में व अस्पतालों में गर्भाधान के लिए देशी नस्ल के टीके साथ एक बार पुनः एक-एक बैल को भी मुहैया करवाया जाए।
2021-09-22