तीर्थन घाटी में पार्क प्रभावित लोगों को वन अधिकार कानून के तहत मिले हक हकुक से किया जा रहा वंचित

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सुरभि न्यूज़

परस राम भारती, गुशैनी बंजार

तीर्थन घाटी में पार्क प्रभावित लोगों को वन अधिकार कानून के तहत मिले हक हकुक से किया जा रहा वंचित।

गुशैनी में स्थानीय जनप्रतिनिधियों और अन्य सामाजिक संगठनो ने किया बैठक का आयोजन, जनता में भारी आक्रोश।

क्षेत्र की महिला मंडलों ने 2 अक्टूबर को शाई रोपा में होने वाले कार्यक्रम के बहिष्कार की दी धमक

आज से करीब 16 वर्ष पूर्व भारत की संसद द्वारा आदिवासी एवं परंपरागत वनवासियों के लिए वन अधिकार कानून 2006 पारित किया गया था, जिसे वर्ष 2008 से पूरे देश में लागू कर दिया गया है।

हिमाचल प्रदेश में भी अब इस कानून को लागू करने की प्रक्रिया जारी है। यह कानून स्थानीय लोगों को अपने जल, जंगल और जमीन के संरक्षण, प्रवंधन और विकास का अधिकार देता है।

इस मुददे पर तीर्थन घाटी के केन्द्र बिन्दु गुशैनी में स्थानीय जनप्रतिनिधिओं, वन अधिकार समितियों, कारदार संघ, महिला मंडलों, स्थानीय दावेदारों और विभिन्न स्वंयसेवी संस्थाओं के पदाधिकारिओं ने एक बैठक का आयोजन किया।

इस बैठक में सहारा संस्था के निदेशक राजेन्द्र चौहान, हिमालय नीति अभियान के सदस्य हरी सिंह, सहारा संस्था के सदस्य एवं ग्राम पंचायत नोहंडा के पुर्व प्रधान स्वर्ण सिंह ठाकुर, ईको टूरिज्म सोसाइटी के अध्यक्ष केशव ठाकुर, तीर्थन खण्ड कारदार संघ के प्रधान संगत राम, जिला कुल्लू कारदार संघ के प्रतिनिधि धनेश्वर डोड, ग्राम पंचायत पेखड़ी की प्रधान पुष्पा देवी, उपप्रधान विरेन्द्र भारद्वाज, ग्राम पंचायत मश्यार की प्रधान शांता देवी, पंचायत समिति सदस्य लीला देवी, ग्राम पंचायत तुंग के प्रधान घनश्याम सिंह, उपप्रधान दिले राम, कलवारी वार्ड के पुर्व पंचायत समिति सदस्य चिरंजी लाल, ग्राम पंचायत कलवारी के उपप्रधान सुनील ठाकुर, ग्राम पंचायत नोहंडा के उपप्रधान प्रेम सिंह, वरिष्ठ कारदार ज्वाला सिंह, समाजसेवी लोभू राम, वेद राम, भीमा देवी और ग्राम पंचायतों नोहांडा, पेखडी, कलवारी, तुंग, मश्यार, शिल्ली, शर्ची तथा कंडीधार की वन अधिकार समितियों के पदाधिकारी एवं सदस्य विषेष रूप से उपस्थित रहे।

इस बैठक में वन अधिकार कानून 2006 के क्रियान्वयन को लेकर चर्चा परिचर्चा हुई और इसको धरातल स्तर पर लागू करने में विभाग द्वारा अपनाई जा रही दोहरी नीति को लेकर स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश है।

स्थानीय दावेदारों का कहना है कि गत दिनों उपमंडल स्तरीय समिति बंजार द्वारा अयोजित बैठक में वन विभाग के अधिकारिओं द्वारा ब्रिटिश राज सन 1884 एंडरसन की रिपोर्ट का हवाला देकर सामुदायिक दावा फाइलों पर आपत्तियां लगाई गई है जो निराधार है।

लोगो का कहना है कि वन अधिकार कानून 2006 के लागू होने पर यह एंडरसन की रिर्पोट को मान्य नहीं मानते है।

लोगों ने एकमत से आवाहन किया है कि पार्क प्रबंधन यहां के लोगों को कानून के तहत मिलने वाले पारंपरिक वन अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता है।

अपने पुश्तैनी अधिकारों को बहाल करने के लिए यहां के लोग एकजुट होकर आंदोलन की राह पर उतरने को भी तैयार है।

गौरतलब है कि सरकार द्वारा वन अधिकार अधिनियम -2006 को धरातल स्तर पर लागू करवाने की प्रक्रिया जारी है।

उपमंडल स्तरीय समिति द्वारा भेजी गई अधिकतर दावा फाइलों को जिला स्तर से मंजूरी भी मिल चुकी है लेकिन तीर्थन घाटी में स्थित ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क से सटी प्रभावित ग्राम पंचायतों के सामूहिक दावा फाइलों पर पार्क प्रबंधन द्वारा आपत्तियां लगाई गई है जिस कारण यहां के लोगों को वन अधिकार कानून के तहत मिलने वाले पारंपरिक पुश्तैनी अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।

एक ओर जहां विभाग द्वारा पार्क क्षेत्र से बाहर की पंचायत के दावेदारों को मंजूरी दी है वहीं पार्क प्रभावित क्षेत्र के लोगों को उसी स्थान के लिए आपत्तियां लगाई गई है।

तीर्थन खण्ड कारदार संघ के प्रधान संगत राम का कहना है कि पार्क क्षेत्र के अन्दर मौजूद पवित्र देवस्थलों हंसकुंड तीर्थ, बखाडी, रक्तिसर और दशमानी आदि स्थानों पर आवागमन के लिए लोगों के पुश्तैनी अधिकार है जिनसे वंचित नहीं किया जा सकता है।

जबकि वन अधिकार कानून भारत के अन्य नेशनल पार्कों, सैंक्चुअरी एरिया और रिजर्व फोरेस्ट में भी लागु है जहां पर लोगों के पारंपरिक हक हकूक बरकरार रखे गए है।

इन्होने शासन प्रशासन को चेताया है कि स्थानीय लोगों के सामुदायिक दावों को शीघ्र स्वीकार करें वरना कारदार संघ लोगों से मिलकर धरना प्रदर्शन करने से भी गुरेज नहीं करेंगे।

वहीं तीर्थन क्षेत्र की स्थानीय महिला मंडलों ने भी दो अक्टूबर को शाई रोपा में होने वाले कार्यक्रम के वहिष्कार की धमकी दी है।

सहारा संस्था के निदेशक राजेन्द्र चौहान का कहना है कि सहारा संस्था और हिमालय नीति अभियान के सदस्य अन्य समाजिक संगठनों के साथ मिलकर वर्ष 2014 से लगातार इस कानून को धरातल स्तर पर उतारने का प्रयास कर रहे हैं।

इन्होंने कहा कि लोगो को जानकारी न होने के कारण वर्ष 2006 में बने इस लोकहित कानून को लागू करने में वर्षों लगे है।

बिडम्बना यह है कि अभी तक विभाग द्वारा इस कानून को कड़ाई से लागू करने में भेदभाव और दोहरी नीति अपनाई जा रही है।

हिमालय नीति अभियान संगठन के सदस्य एवं ग्राम पंचायत शर्ची के पुर्व प्रधान हरी सिंह ठाकुर का कहना है कि वर्ष 2014 में सैंज के निहारणी में पार्क प्रभावित क्षेत्र के लोगों के लिए हुई एक खुली जनसुनवाई में तत्कालीन जिलाधीश कुल्लू द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि पार्क क्षेत्र के अन्दर देवी देवताओं के स्थानो तक स्थानीय लोगों के आवागमन पर कोई भी प्रतिबंध नहीं होगा।

इन्होने बताया कि इसी सुनवाई के दौरान स्थानीय लोगों को स्वरोजगार हेतु एक स्थाई पर्यटन नीति बनाए जाने का भी निर्णय लिया गया था जो अभी तक नहीं बन पाई है।

स्थानीय ग्राम पंचायत पेखड़ी की प्रधान पुष्पा देवी का कहना है कि पार्क क्षेत्र के अन्दर लोगों के भेड़ बकरी एवं पशु चरान, घास पाती, पशु चारा, जड़ी बूटियां खोदने, इंधन की लकड़ियां लाने और देवरथ के लिए लकड़ियां लाने जैसे कई सामाजिक अधिकार थे जिनसे अब लोगों को वंचित किया गया है।

इन्होने कहा कि स्थानीय लोगों के घरों में आज भी पुश्तैनी बहुमूल्य सांस्कृतिक चीजें जैसे चोला कलगी आदि मौजूद है जिन्हें सरकार द्वारा विशेष देव सांस्कृतिक परंपराओं के निर्वहन हेतु कानूनन छूट प्रदान की जानी चाहिए।

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क शमशी के वन मंडल अधिकारी निशांत मंधोत्रा का कहना है कि तीर्थन रेंज पार्क क्षेत्र के अन्दर लोगों को पवित्र देव स्थलों तक जाने का अधिकार यथावत बहाल है।

लोगों को पवित्र देव स्थलों पर जाने के लिए कोई रोक नहीं है और ना ही रहेगी। इन्होने बताया कि दावा फाइलों पर कुछ कागजी प्रक्रिया को पूरा किया जाना है जिस कारण आपत्तियां लगी है।

इन्होने स्थानीय लोगों से आवाहन किया है कि दो अक्टूबर को शाई रोपा में होने वाले कार्यक्रम वन्य प्राणी उत्सव में बढ़ चढ़कर हिस्सा लें।

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