‘स्वतन्त्रता सेनानी श्यामानन्द सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाते-लगाते माटी में मिल गया, पेंशन नहीं दे पाई सरकार

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सुरभि न्यूज़ ब्यूरो 

कुल्लू 

आज़ादी के अमृत महोत्सव पर उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र पटियाला, भाषा एवं संस्कृति विभाग, कुल्लू हिमाचल प्रदेश  व ऐक्टिव मोनाल कल्चरल ऐसोसिएशन कुल्लू द्वारा संस्कार भारती हिमाचल प्रान्त के संयुक्त तत्वावधान में कलाकेन्द्र कुल्लू में आयोजित किए जा रहे स्वतंत्रता सेनानियों पर आधारित चार दिवसीय नाट्योत्सव ‘रंग आज़ादी’ की तीसरी संध्या कुल्लू के निर्मण्ड क्षेत्र के खरगा के दरमोट गांव से ताल्लुक रखने वाले स्वतन्त्रता सेनानी श्यामानंद पर आधारित नाटक ‘स्वतन्त्रता सेनानी श्यामानन्द’ का मचन किया। आरती ठाकुर द्वारा लिखित व निर्देशित  इस नाटक को बहिरंग थिएटर ग्रुप कुल्लू व लाहौल स्पिति के कलाकारों ने खुबसूरती से प्रस्तुत किया। श्यामानन्द जिसका स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान अपने क्षेत्र के समाज के लिए अभूतपूर्व योगदान रहा है। श्यामानंद ने अपनी मिडल की पढाई रामपुर बुशैहर के स्कूल से पूरी
की और फिर जंगलात मैहकमें में वन रक्षक की नौकरी पर लग गया।

लेकिन अंग्रेज़ी सरकार के अधिकारी डी एफ ओ के खराब व्यवहार की वजह से उसने अपनी बैल्ट उतार कर उस अफसर के मेज़ पर रख दी और उसकी नौकरी को अलविदा कह दिया। उसके बाद उसने अपने ही क्षेत्र में एक स्कूल निकाला और बच्चों को पढाने लगा। उसने उन्हें अंग्रेज़ी सरकार की खराब नीतियों के बारे में बहुत ही गहनता से बताना शुरू  किया। गांधी जी के कई आंदोलनों में सक्रिय रहे। श्यामानंद अपने क्षेत्र की जनता को इस कदर प्रभावित किया कि एक साल तक उस इलाके के बाशिन्दों ने अंग्रेज़ी सरकार को कोई कर नहीं दिया। अपने ही तरीके से स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान देने वाले श्यामानंद ने कई बार जेल यात्राएं भी की।

अन्ततः स्वतन्त्र भारत का उगता हुआ सूर्य अपनी आंखों से देखने वाला श्यामानंद स्वतन्त्रता सेनानी की पेंशन प्राप्त न कर पाया। अपनी पेंशन के कागज़ उठाए सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाता माटी का लाल श्यामानंद  1989 में अपने नष्वर शरीर को छोड़ इस जग को विदा कह गया। नाटक में मंच पर आकांक्षा, रागिनी, वैशाली, दुर्गा, भावना, श्रद्वा, राधा, अंजली, सानिध्य, राहुल, सत्यम, अक्षित, सतीश, यथार्थ व वंदना आदि कलाकारों ने श्यामानंद की जीवन यात्रा को जीवन्त किया।

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