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विकास का प्रतिमान रचती छोटा भंगाल की महिलाएं

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सुरभि न्यूज़
प्रो. अभिषेक सिंह
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित छोटा भंगाल क्षेत्र पश्चिमी हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में से एक है। इस क्षेत्र में सात पंचायतें आती है जिनमें बड़ा ग्रां, कोठी कोहड़, धरमान, मूल्थान, लोवाइ, स्वार एवं पोलिंग पंचायत हैं। प्रकृति ने इस क्षेत्र को एक अप्रतिम सौंदर्य का वरदान प्रदान किया है। धौलाधार के अविचल पहाड़, उन पर फैली मनमोहक हरियाली, चिड़ियों की चहचहाहट एवं घाटी से गुजरता ऊहल नदी का पानी इस संपूर्ण क्षेत्र को एक स्वर्गीय प्रतिरूप प्रदान करता है। हालंकि यह सुंदरता दुरुहता के ऐवज में प्राप्त हुई है। वर्ष के कुछ माह मुख्यतः वर्षा एवं शीत ऋतुओं में तो यह क्षेत्र मुख्य भूमि से कट जाता है। यद्यपि इसी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इस क्षेत्र की अपनी एक पृथक सांस्कृतिक विरासत रही है जिसमें महिलाओं का महत्वपूर्ण स्थान हैं। आजादी के सात दशकों के पश्चात इस क्षेत्र की महिलाओं के सोच, सपने एवं सामाजिक स्थितियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखा गया है।
आरंभ से ही इस क्षेत्र की महिलाओं की सामाजिक स्थिति उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों की महिलाओं की तुलना में बेहतर थी। पुरुष प्रधान समाज के होते हुए भी महिलाओं को समाज में एक बेहतर स्थान प्राप्त था। दहेज, कन्या वध एवं घूंघट जैसी कुप्रथाएं यहां मौजूद नहीं थी। इसका मुख्य कारण यह था कि आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान था जो मुख्यता पशुपालन पर आधारित थी। इस क्षेत्र में भेड़ों को चराने के लिए जब पुरुषों द्वारा विभिन्न स्थानों पर प्रवास किया जाता था तब पुरुषों के लिए ठंड से सुरक्षा हेतु पट्टू (भेड़ की ऊन से बनाया जाने वाला कपड़ा) बनाने का कार्य महिलाओं द्वारा ही किया जाता था। बकरियां एवं गायों को चराना, गोबर फेकना और दूध निकालने का कार्य भी इनके द्वारा ही किया जाता था। कृषि गतिविधियों में भी महिलाएं पुरुषों का सहयोग करती थी। परिणाम यह रहा की इस प्रकार की गतिविधियों के कारण महिलाएं साक्षरता के प्रति उदासीन हो गई। दुर्गम परिस्थितियों के कारण विद्यालयों के अभाव ने भी महिला शिक्षा को प्रभावित किया। पुरुषवादी मानसिकता भी इस दिशा में एक बड़ा अवरोधक थी। परन्तु आज परिस्थितियों में अंतर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। क्षेत्र के तीन सीनियर सेकेंडरी स्कूल कोठी कोहड़, मुल्थान और लोहार्डी में लड़कियों की सहभागिता में वृद्धि देखी गई है। राजकीय महाविद्यालय मुल्थान में तो लड़कियों का अनुपात कुल नामांकन का 80% है। महाविद्यालय से उत्तीर्ण कई लड़कियां आज उच्चतर शिक्षा में प्रवेश हेतु प्रयास कर रही है। कुछ लड़कियों ने सिलाई कढ़ाई और कंप्यूटर जैसी तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के लिए आई. टी. आई में प्रवेश लिया है। आज क्षेत्र की एक महिला उर्मिला देवी तकनीकी शिक्षा विभाग कुल्लू में सिलाई सेंटर की अनुदेशिका के रूप में कार्यरत है। इसी तरह बड़ा ग्रां पंचायत के नलहोता गांव की आकांक्षा ठाकुर ने चिकित्सक बनकर क्षेत्र का नाम रोशन किया है। इससे पूर्व भी क्षेत्र की कई लड़कियां शिक्षक एवं पटवारी के रूप में राज्य सरकार में अपनी सेवाएं दे रही है।
क्षेत्र की महिलाओं के सशक्तिकरण के संदर्भ में क्षेत्र में उपस्थित विभिन्न “महिला मंडल “भी उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं। इन महिला मंडलों द्वारा क्षेत्र की महिलाओं में शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार तथा समान अवसर मुहैया कराने के संदर्भ में प्रयास किया जा रहे हैं। ग्राम पंचायत मुल्थान के महिला मंडल को स्वच्छता के संदर्भ में ब्लॉक स्तर पर पुरस्कृत किया जा चुका है। कुछ महिला मंडलों द्वारा पारंपरिक लघु उद्योग पटू निर्माण के संदर्भ में प्रशिक्षण दिए जाने का कार्य भी किया जा रहा है। एक अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण के रूप में कल्पना महिला मंडल तरमेहर की सदस्यों ने छोटा भंगाल में निर्माणधीन 25 मेगावाट विद्युत प्रोजेक्ट लंबाडग के खिलाफ भूख हड़ताल आरंभ कर दिया था। उनकी मांगे थी कि प्रोजेक्ट प्रबंधन प्रभावित क्षेत्र में सामाजिक कार्य नहीं कर रहा है। परिणाम यह रहा कि प्रशासन को बीच बचाव करना पड़ा तब जाकर महिला मंडलों ने अपनी हड़ताल वापस ली। इससे ज्ञात होता है कि क्षेत्र के विकास की दशा एवं दिशा को निर्धारित करने में महिलाएं सक्रियता से अपना योगदान दे रही है।
शिक्षा का प्रभाव महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। आज महिलाएं पुरुषों की सहायक मात्र न रहकर बल्कि उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। घरेलू हिंसा तथा शोषण की घटनाएं बिरले ही सुनने को मिलती है। अपने पारंपरिक कार्यों के अतिरिक्त वे आत्मनिर्भरता की उड़ान भरने के लिए भी विभिन्न प्रयास कर रही हैं। होटल, बेकरी, पार्लर और किराना कि दुकानों को चलाने वाली महिलाएं इस आत्मनिर्भरता का उदाहरण है । इस आत्मनिर्भरता एवं सशक्तिकरण का एक अन्य उदाहरण यह भी है कि क्षेत्र की सात पंचायत में से 6 पंचायत की प्रधान आज महिलाएं ही हैं जो अपने ग्रामों में विकास के नए प्रतिमानों को रच रही है।
इस प्रकार छोटा भंगाल क्षेत्र की महिलाएं विकास के नए प्रतिमानों को लिखने का प्रयास कर रही है। दुर्गम भौगोलिक स्थितियो, पुरुषवादी परंपरा और सीमित सरकारी सहायताओ के बावजूद इन महिलाओं द्वारा जिस प्रकार की जीवटता एवं साहस का प्रदर्शन किया जा रहा है वो भारत की अन्य महिलाओं के लिए अनुकरणीय है।

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