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ऐतिहासिक पठानकोट – जोगिन्दर नगर रेलवे लाईन के निर्माता थे पंजाब के चीफ इंजीनियर कर्नल बेसिल कंडोन बैटी

सुरभि न्यूज़ 

शारदा अरनोट, जोगिंद्रनगर, 16 जून 

लाहौर को बिजली से रोशन करने के लिए पंजाब के चीफ इंजीनियर कर्नल बेसिल कंडोन बैटी ने भारत में पहला पन विद्युत प्रोजेक्ट का निर्माण किया। शानन पन बिजली परियोजना के निर्माण लिए 3 मार्च, 1925 को भारत के राज्य सचिव और मंडी के राजा लेफ्टिनेंट जोगिंदर सेन बहादुर के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हुए जो पन विद्युत परियोजना वर्ष 1932 में पूर्ण होकर चालू हुई। 

कर्नल बी सी बैटी ने शानन प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली भारी मशीनरी को ब्रिटेन से जोगिंद्रनगर के शानन तक उससे आगे शानन से बरोट तक पहुंचाने के लिए 1925 में इस ऐतिहासिक पठानकोट – जोगिन्दर नगर रेलवे ट्रैक का निर्माण कार्य की योजना बनायीं गई। तत्कालीन पंजाब प्रांत के गवर्नर विलियम मैल्कम हेली द्वारा 2 मई 1926 को इस ट्रेक का भूमि पूजन किया गया जिसका निर्माण कार्य उत्तर पश्चिमी रेलवे के कार्य अधीक्षक कैप्टन ईबीएन टेलर के अधीन सौंपा गयापठानकोट और नगरोटा के बीच 110 किमी लंबा खंड-1 1 दिसंबर 1928 को पूरा कर माल परिवहन के लिए खोल दिया गया जबकि नगरोटा से जोगिंदर नगर तक का बाकी खंड 1 अप्रैल 1929 को पूरा कर यात्रियों के लिए भी खोल दिया गयापठानकोट से जोगिन्दर नगर शानन तक 164 किलोमीटर लम्बा रेलवे ट्रेक में 2 फीट 6 इंच की नैरो गेज लाइन बिछाई गई जो उत्तर पश्चिम रेलवे के लाहौर मंडल के अधीन था।

इस नैरो गेज लाइन के निर्माण की वास्तविक लागत रु 296 लाख थी। इस ट्रैक में 1009 पुल, दो सुरंगें, 16 क्रासिंग स्टेशन तथा 18 यात्री हाल्ट हैं। इस लाइन पर समुद्र सतह से 1290 मीटर, एहजू नामक स्टेशन सबसे ऊंचाई पर स्थित है। रेलवे ट्रैक में कांगड़ा के समीप रियोंड नाले पर बना स्टील मेहराब पुल, एक गहरे नाले पर बना है, जो कि नदी के स्तर से 200 फुट ऊपर तथा 260 फुट लंबा है।

इस रेलवे ट्रेक को अप्रैल 1942 में नगरोटा से जोगिन्दर नगर सेक्शन बंद कर इसकी रेलों को ब्रिटिश सरकार द्वारा युरोप में युद्ध के लिए भेजा गया था। 12 वर्ष के बाद 15 अप्रैल, 1954 को तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा इसे पुनः आरंभ किया गया।

जब पोंग बाँध का निर्माण शुरू हुआ तो रेलवे ट्रैक बाँध के पानी में डूबने का खतरा होने के कारण जवांवाला शहर से गुलेर के बीच के भाग को 01 अप्रैल 1973 को रेलवे लाइन उखाड़ कर बंद कर दिया गया। इस लाइन में पुनः  24.87 कि0 मी0 लंबी लाइन का निर्माण किया गया जिसे माल यातायात के लिए 15 अक्तूबर 1976 को तथा यात्रीयों के लिए 28 दिसंबर 1976 को खोली गई। पहले पठानकोट से जोगिन्दर नगर तक विभिन्न सेक्शनों में जैड ई/जैड बी/जैड एफ़ तथा जैड एफ-1 श्रेणी के भाप रेल इंजन प्रयोग में लाए जाते थे, अब केवल जैड डी एम 3 डीजल रेल इंजन चलाये जा रहे है।

उल्लेखनीय है उस समय सड़क मार्ग के साधन बहुत कम होने से कांगड़ा, मंडी, कुल्लू तथा लाहौल स्पीति के भारतीय सेना के जवान तथा  बहार रहने वाले लोग  इसी रेलवे ट्रेक से सफ़र करते थे। रेलवे विभाग ने पठानकोट-जोगिन्दर तक ट्रेन में सफ़र करने वाले जवानों की याद में  जोगिन्दर नगर रेलवे स्टेसन पर स्मृति पटीकाएं भी लगाई गई जो उनकी कुर्वानियों की याद दिलाती रहती है।

इनमें डोगरा रेजिमेंट के जवान नायक प्रेम सिंह 3 री बटालियन, डोगरा रेजिमेन्ट, ग्राम दयरी कहनबाल निवासी (यहाँ से 60 कि. मी. दूर) के सम्मान में जिन्हें 6 सितम्बर 1965 (15 भाद्र 1887) को पुंछ क्षेत्र में वीरता प्रदर्शित करने पर वीर चक्र प्रदान किया गया था तथा मेजर के पद जवान सर्वजीत सिंह रत्रा मेजर, कार्टिलरी रेजिमेन्ट, कुल्लू निवासी (यहाँ से 125 कि. मी. दूर) के सम्मान में जिन्हें 15 सितम्बर। 965 (24 भाद्र 1887) को लाहौर क्षेत्र में वीरता प्रदर्शित करने पर वीर चक्र प्रदान किया गया था, जिनकी याद में रेलवे विभाग ने जोगिन्दर नगर रेलवे स्टेशन पर उनकी पटीकाएं लगाई है। शानन जल विद्युत परियोजना में कार्यरत कर्मचारियों व चार जिलों के लोगो का आना जाना इसी रेल मार्ग से होता था।

सरकार व रेलवे विभाग की अनदेखी के चलते पठानकोट-जोगिन्दर नेरोगेज रेलवे ट्रैक को बीते 95 सालों में ब्राडगेज का दर्जा नहीं मिल पाया है। ब्राडगेज का दर्जा मिलाने से प्रदेश में ब्यापारिक व पर्यटन की अपार संभावनाए विकसित हो सकती है।

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