सुरभि न्यूज़
नई दिल्ली
डा. श्रुति मोरे भारद्वाज को मिला संत इश्वर सम्मान “
प्रगति मैदान स्थित भारत मंडपम में आयोजित देश के सबसे बड़े सेवा सम्मान “संत ईश्वर सम्मान” का भव्य समारोह संपन्न हुआ, गाँधी जयंती के पावन अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों में सेवा भाव से कार्य करने वाले 17 साधकों को सम्मानित किया गया, जिनमें कला, साहित्य, पर्यावरण, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान देने वाले व्यक्तियों को चुना गया था।
इस वर्ष कवि और समाजसेवी कुमार विश्वास को “संत ईश्वर विशेष सम्मान” से सम्मानित किया गया। उन्हीं के साथ कुल्लू जिला से संबंध रखने वाली डॉ. श्रुति मोरे भारद्वाज को भी इस प्रतिष्ठत संत इश्वर सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया! उन्हें यह सम्मान हिमाचल प्रदेश में प्रारंभिक हस्तक्षेप (Early Intervention), विकलांगता क्षेत्र (Disability sector) और भारत की पहली मोबाईल थैरेपी वैन के लिए (संत ईश्वर फाउंडेशन) द्वारा दिया गया! यह सम्मान जो उनके काम के प्रभाव के बारे में बहुत कुछ बताता है। उनकी यात्रा हमेशा आसान नहीं थी। शुरू में उनके भी अपने दोस्तों की तरह विदेश में काम करने और एक उज्ज्वल भविष्य सुरक्षित करने के बड़े सपने थे। लेकिन इसके बजाय, उसने कुल्लू लौटने का साहसी निर्णय लिया, तब भी जब उसके माता-पिता पूरी तरह से साथ नहीं थे। एक साइकिल यात्रा के दौरान जब वह पहली बार कुल्लू आई तो उनकी मुलाकात कुल्लू के एक गांव में पुराने घर में मासिक धर्म और विकलांगता से जूझ रही एक युवा विकलांग लड़की सोनाली से हुई जिसने उनके जीवन में सब कुछ बदल दिया!उसके बाद विदेश जाकर काम करने और बड़े शहर की चकाचौंध को छोड़कर उस अनुभव ने उन्हें जरूरतमंद बच्चों की मदद करने के उनके मिशन को प्रेरित किया। उन्होंने सबसे पहले एक स्थानीय एनजीओ के साथ काम किया, और इसके तुरंत बाद, उन्होंने संफिया फाउंडेशन की स्थापना की, जहां उन्होंने आश चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर-एन इनिशिएटिव ऑफ संफिया फाउंडेशन के प्रयासों का नेतृत्व किया – जिसका अर्थ है “सभी के लिए आशा।” वह यहीं नहीं रुकी; वह हितधारकों के बीच जागरूकता पैदा कर रही है और यहां तक कि भारत की पहली थेरेपी बस-थेरेपी ऑन व्हील्स भी लॉन्च की है, जो दूरदराज के इलाकों में बच्चों को आवश्यक देखभाल और सहायता प्रदान करती है। जल्द ही यह कार्यक्रम चंबा और लाहौल के दूरदराज के इलाकों में भी शुरू होने जा रहा है। उनके समर्पण ने न केवल कई उपेक्षित बच्चों का जीवन बदल दिया है बल्कि उनके परिवारों में भी एक आश का संचार किया है! देश के सुदूर हिस्से मुम्बई से आई लड़की 12 साल से इन बच्चों के साथ काम करते हुए जाने कब इन पहाड़ों की हो गई उसे पता भी नहीं लगा ! कुल्लू में ही शादी कर उन्होंने इन पहाड़ों को ही अपना जीवन समर्पित कर दिया है!उनका एक छोटा सा परिवार है !उनके पति हिमाचल प्रदेश विश्विद्यालय में प्राध्यापक है और उनके एक पुत्री और एक पुत्र है!