सुरभि न्यूज़
डा. अभिषेक सिंह, मुल्थान (छोटा भंगाल)
इतिहास तो विजेताओं का लिखा जाता है, पराजित इतिहास के पन्नों में खो जाते हैं, भंगाल रियासत के संदर्भ में यह भाव बार्नेस का रहा होगा जिन्होंने कांगड़ा जिले का गजेटियर लिखते समय यह लिखा कि भंगाल रियासत लुप्त हो चुकी है। आखिर क्या कारण रहा होगा कि कभी कांगड़ा और कुल्लू रियासत की तरह स्वतंत्र अस्तित्व रखने वाले इस रियासत के पद चिन्ह इतिहास के पन्नों से नदारद है ? यह एक शोध का विषय है।
प्राप्त जानकारियों के अनुसार यह रियासत कभी मंडी, कुल्लू तथा कांगड़ा जैसे शक्तिशाली रियासतों के मध्य स्थित थी। कांगड़ा जिले के गजेटियर से ज्ञात होता है कि भंगाल ताल्लुका रावी घाटी में कांगड़ा और कुल्लू के मध्य स्थित हैं। इसके उत्तरी भाग को बड़ा भंगाल कहते हैं। यह पूर्व दिशा में कुल्लू से बड़ा भंगाल धार से विभाजित हैं। उत्तर दिशा में लाहौल से मध्य हिमालय श्रृंखला द्वारा और पश्चिम में मणिमहेश श्रृंखला द्वारा चंबा से अलग होती हैं।
बड़ा भंगाल क्षेत्र में रावी नदी का मुख्य स्रोत भी स्थित हैं। भंगाल ताल्लुका का दक्षिण भाग छोटाभंगाल कहलाता है। जिसमें बीड़, पपरोला व राजेड के क्षेत्र हैं। दोनों क्षेत्रों के बीच एक ऊंचा दर्रा हैं। इस संपूर्ण क्षेत्र को ही बीड़ भंगाल रियासत के नाम से जाना गया। भंगाल रियासत के आरंभिक इतिहास के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिलती है।
कुल्लू तथा मंडी के गजेटियर में भंगाल रियासत का उल्लेख आता है, जो भी जानकारी हमारे पास उपलब्ध है। उससे ज्ञात होता है कि ये चंद्रवंशी राजपूत थे और बंगाल के पाल राजवंश से संबंधित थे। संभवतः बंगाल शब्द से ही भंगाल शब्द की उत्पत्ति हुई होगी। स्थानीय स्रोतों के अनुसार यहां पर भांग की खेती अत्यधिक होने के कारण भी इस क्षेत्र को भंगाल नाम दिया गया। इस वंश के आरंभिक शासकों के नाम ऐतिहासिक स्रोतों और जनश्रुतियों में उपलब्ध नहीं है। यद्यपि कुछ सूचनाएं इस रियासत के 1200 ई. के आस पास आरम्भ होने के सम्बन्ध में इशारा करती है।
ऐतिहासिक सूचनाएं बीड़ भंगाल के अंतिम शक्तिशाली शासक पृथ्वी पाल को 1720 ईस्वी में मंडी के राजा सिद्ध सेन द्वारा धोखे से हत्या करवाएं जाने के बारे में जानकारी देती है। इससे एक रोमांचक कहानी भी जुड़ी हुई है जो जनश्रुतियों में प्रसिद्ध है।
भंगाल का राजा सिद्ध सेन का दामाद था और इसकी बहन का विवाह कुल्लू के राजा मानसिंह से हुआ था। सिद्ध सेन अपने दामाद के राज्य पर लंबे समय से नज़रें गड़ाए हुए थे। संभवतः ऐसा भंगाल रियासत की सामरिक स्थिति के कारण था क्योंकि यह कुल्लू और कांगड़ा जैसे शक्तिशाली रियासतों के मध्य स्थित था और इस पर कब्जा करके मंडी रियासत पर आसानी से दबाव बनाया जा सकता था।
सिद्ध सेन ने अपने दामाद पृथ्वी पाल को मंडी बुलवाया और धोखे से उसकी हत्या करवा दी। स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार पृथ्वी पाल का सर महल के सामने तालाब के बीच दबा दिया गया जहां आज वर्तमान में मंडी शहर का घंटाघर के नाम से विराजमान है। सिद्ध सेन के इस निर्दयतापूर्ण कृत के कारण मंडी रियासत में अपशगुन फैल गया और प्रत्येक दिन 30 से 50 लोग मरने लगे।
ऐसी संकटकालीन स्थिति में राजा ने रिवालसर क्षेत्र से एक पुरोहित को इस समस्या के समाधान के लिए निमंत्रण भेजा। राजा के निमंत्रण के पश्चात पुरोहित मंडी पहुंचा और संपूर्ण वृतांत सुनने के पश्चात उसने राजा को यह सलाह दी कि राजा के निर्लज्जता पूर्ण कृत्य के कारण समस्त क्षेत्र श्रापित हो चुका है और मृत पुण्य आत्मा को सम्मान देने के पश्चात ही यह श्राप मुक्त हो सकेगा।
पुरोहित की सलाह पर राजा ने पृथ्वी पाल को सम्मान देने का निर्णय किया। माना जाता है कि उस समय से मंडी के राजा प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के मेले में मृत भंगालिया राजा को सम्मान देने के लिए एक घोड़े को माधव जी के आगे – आगे रखते है। जिसे भंगालिया राजा का प्रतीक माना जाता है।
राजा पृथ्वी पाल की मृत्यु के पश्चात सिद्ध सेन ने भंगाल रियासत पर विजय पाने के लिए अपनी सेनाएं भेजी। पृथ्वी पाल की मां ने कुल्लू के राजा से सहायता मांगी। परिणाम यह रहा कि मंडी की सेनाओं को पीछे हटना पड़ा और कुल्लू के राजा मानसिंह ने स्वयं आगे बढ़कर भंगाल का एक बड़ा क्षेत्र अपने अंतर्गत कर लिया।
भंगालिया राजा की मौत का हृदय विदारक किस्सा आज भी कांगड़ा के लोक गीतों में गाकर सुनाया जाता है और उसे मंडी के देश न जाने की हिदायत दी जाती है। “मत जंlदा ओ मंडिया देशा ओ राजेया भंगालिया ” पृथ्वी पाल के पश्चात उसका पुत्र रघुनाथ पाल राजा बना। इसके समय में भी दोनों रियासतों के मध्य संघर्ष जारी रहा।
रघुनाथ पाल ने मंडी द्वारा किए गए हमले को दो बार नाकाम किया। प्रथम आक्रमण में सिद्ध सेन कर्णपुर का क्षेत्र पर अधिकार करने का प्रयास किया मगर वह सफल नहीं हुआ। दूसरी बार वह कतारलु गलू तक बढ़ गया मगर कुल्लू रियासत की सहायता से रघुनाथ पाल ने उसे एक बार पुनः वापस जाने पर विवश कर दिया। सिद्ध सेन के पुत्र शमशेर ने कर्णपुर को अंततः जीत लिया। जिस समय रघुनाथ पाल मुगल वायसराय से मिलने पंजाब गया थे। रघुनाथ पाल की मृत्यु 1735 में हुई और उसका पुत्र दलेल पाल शासक बने।
उसके समय मंडी, कुल्लू, गुलेर व जैसवा रियासतों ने भंगाल पर आक्रमण किया मगर हानि उठाने के बावजूद भी भंगाल ने अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखा। दलेल पाल की मृत्यु 1749 में हुई। इस समय तक भंगाल रियासत का अधिकतर भाग कुल्लू और मंडी के अधीन आ गया था।
दलेल पाल के बाद शासक बने मान पाल का राज्य पपरोला तथा राजेद तक ही सीमित रहा। अपने खोए हुए क्षेत्र को वापस पाने के लिए उसने मुगल बादशाह से सहायता प्राप्त करने के लिए दिल्ली जाने का निर्णय लिया मगर दिल्ली जाते समय ही बीच मार्ग में ही उसकी मृत्यु हो गई। राजा की अनुपस्थिति में गुलेर तथा कांगड़ा के राजाओं ने शेष इलाके पर अपना कब्जा कर लिया।
मानपाल की विधवा और छोटा बच्चा निहाल पाल चंबा के राजा राज सिंह के पास चले गए। जहां राजा ने उन्हें एक छोटी जागीर दी। इसके पश्चात राजा बने उछल पाल ने भी अपने पैतृक राज्य को वापस पाने के लिए कांगड़ा के राजा संसार चंद से सहायता मांगी। संसार चंद की सहायता के बावजूद भी वह सफल नहीं हो पाया। इसके बाद रामपाल और फिर उसका छोटा भाई बहादुर पाल राजा बने। मगर भंगाल रियासत की शक्ति में गिरावट जारी रही और वह इतिहास के पन्नों से गायब हो गया।
आज भी इस रियासत के मृत अवशेषों को सीमित मात्रा में देखा जा सकता हैं। हनुमानगढ़ (फुतकी गढ़) और डिगना की पहाड़ियों पर जो विक्षिप्त किले मिलते है वे शायद इसी रियासत के कभी मौजूद होने का संकेत देते है। इस प्रकार के अन्य अवशेष भी अवश्य ही मौजूद होंगे जिनके ढूंढे जाने की आवश्यकता है जिससे हम अपने इतिहास के एक गौरवशाली अध्याय का संरक्षण कर सके।
लेखक राजकीय महाविद्यालय मुल्थान में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं