लाहुल स्पीति में प्रस्तावित मेगा जलविद्युत परियोजना के विरोध में हल्ला बोल कर लोगों को किया जाएगा जागरूक – सुदर्शन जसपा

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सुरभि न्यूज़

प्रताप अरनोट, उदयपुर

लाहुल स्पीति एकता मंच के अध्यक्ष सुदर्शन जसपा ने मीडिया को बताया कि मौजूदा समय में लाहुल स्पीति में प्रस्तावित मेगा जलविद्युत परियोजना के विरुद्ध हल्ला बोल कर वहां के लोगों को जागरूक किया जाएगा। इस विषय पर 23 मई को उदयपुर में विशाल विरोध रैली का आयोजन होगा।

लाहुल के उदयपुर मंडल के पंचायत प्रतिनिधियों के नेतृत्व में लाहुल स्पीति एकता मंच के अध्यक्ष सुदर्शन जसपा ने कहा कि लाहुल घाटी के चिनाव बेसिन पर प्रस्तावित लगभग डेढ़ दर्जन बड़े जल विद्युत परियोजनाएं के विरुद्ध जन आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। इन प्रस्तावित परियोजनाओं में प्रथम नंबर पर जिस्पा 300 मेगावाट,स्टिंगरी,98 मेगावाट, छतडू 120 मेगावाट, मयाड़ 120 मेगावाट, तांदी 104 मेगावाट, राशेल 130 मेगावाट, सेली 400 मेगावाट, शगलिंग 44 मेगावाट, तेलिंग 94 मेगावाट, बरदंग 126 मेगावाट, तीग़रेट 81 मेगावाट, गोंधला 144 मेगावाट, कोकसर 90 मेगावाट, रहोली डूगली 420 मेगावाट, पूर्थी 300 मेगावाट, साच खास 260 मेगावाट, और डुगर 380 मेगावाट प्रमुख है, जिन जलविद्युत परियोजनाओं से लाहुल घाटी का कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहेगा।

लाहुल स्पीति एकता मंच के अध्यक्ष सुदर्शन जसपा ने हाल ही मे हिमाचल सरकार द्वारा तेलंगाना सरकार के साथ मयाड़ 120 मेगावाट तथा सेली 400 मेगावाट परियोजनाओं के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर इन परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाने की कवायत का पुरजोर विरोध करते हुए बताया कि यह निर्णय पूरे लाहुल घाटी की अति संवेदनशील भौगोलिक परिस्थिति जलवायु तथा जनजातीय अधिकारों को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए लिया गया है। इन परियोजनाओं के निर्माण से न केवल सम्पूर्ण लाहुल घाटी की बेहद उपजाऊ जमीन, जैवविधितता और लुप्तराय प्रजातियां समाप्त हो जाएगी, बल्कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों में जनजीवन यापन कर रहे संपूर्ण लाहुल वासियों को भी जबरन विस्थापित होना पड़ सकता हैं।

उन्होंने कहा कि किन्नौर और उत्तराखंड जैसे तमाम उदाहरण हमारे समक्ष है जहां इन बड़ी परियोजनायों, के लिए होने वाले ब्लास्टिंग, सुरंग निर्माण और मलवा डंपिंग के कारण भूस्खलन और बाढ़ से भयानक तबाही हुई है। वर्ष 2013 से उत्तराखंड त्रासदी के कारणों का पता लगाने के लिए गठित डाक्टर रवि चोपड़ा समिति ने उत्तराखंड त्रासदी के लिए बड़े जलविद्युत परियोजनाओं को ही जिम्मेवार बताया, वहीं वर्ष 2009 में हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय के स्वत: संज्ञान पर गठित अभय शुक्ला समिति ने भी इन्हीं परियोजनाओं को पर्यावरण विनाश का मुख्य कारण बताते हुए ऊंचे हिमालय क्षेत्रों में 7000 फीट से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इन परियोजनाओं पर पूर्णतः पाबंदी लगाने की सिफारिश की थीं तथा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने भी इन परियोजनाओं को उच्च हिमालयी क्षेत्रों के अनुचित बताया है। लाहुल घाटी की कुल औसत ऊंचाई समुद्र तट से लगभग 9000, फीट है। जोकि अभय शुक्ला समिति की सिफारिश के मुताबिक 2000, फीट ज्यादा है तथा भूकंप की दृष्टि से भी हमारा जिला अति भूकंपीय जोखिम क्षेत्र 4 तथा 5 में आता है।

पिछले कुछ वर्षों में मौसम में हुए आमूलचूल परिवर्तन से जिले के मयाड़, जहालमा, शांशा, तोजिंग तथा शकस जैसे ज्यादातर नालों में बाढ़ ने कहर ढाया है, ऐसे में इस बात का आंकलन स्वत: ही लगाया जा सकता है, इस विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति के साथ खिलवाड़ संपूर्ण लाहुल घाटी को एकजुटता के साथ इन परियोजनाओं के विरुद्ध लामबंद होने की सख्त आवश्यकता है।

इसी के मद्देनजर रखते हुए पिछले दिनों उदयपुर में मृकुला माता मंदिर के प्रांगण में एक विशाल विरोध रैली का आयोजन समस्त पंचायत प्रतिनिधियों के नेतृत्व में किया, पंचायत प्रतिनिधियों ने सभी महिला मंडलों युवक मंडलो, जन संगठनों तथा समस्त लाहुल स्पीति के बुद्धिजीवी प्रबुद्धजनों से आवाहन किया कि इस विरोध रैली में अपनी उपस्थिति दर्ज कर अपने व सम्पूर्ण लाहुल घाटी की आवाज को बुलन्द करें। इस महत्वपूर्व जन आंदोलन को कामयाब बनाने के लिए (सेव लाहुल समिति) के अध्यक्ष सेवानिवृत मुख्य अरण्यपाल बी एस राणा ने सभी पर्यावरण प्रेमियों से भी आवाहन किया है कि लाहुल स्पीति घाटी की प्रकृति और पर्यावरण के खिलवाड़ से बचने के लिए इस रैली में ज्यादा से ज्यादा लोग अपनी उपस्थिति दर्ज करे। इस प्रैस वार्ता में जिला परिषद् सदस्य महिंद्र सिंह बीड़ीसी, मेंबर शीला देवी, रीता ठाकुर, दिनेश कुमार हीरचंद, गोपाल गौड़, निर्मला विकास जसपा, खुशाल चंद, सुरेन्द्र ठाकुर, प्रेमदासी, रविन्द्र, आदि गणमान्य लोग मौजूद रहे।

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