कुल्लू में मनाई गई स्व लाल चंद प्रार्थी की जयंती, कई साहित्यकारों ने लिया भाग,एपीएमसी के मुख्य सलाहकार रमेश शर्मा पधारे बतौर मुख्यतिथि

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सुरभि न्यूज़ कुल्लू।  शेर-ए-कुल्लू के नाम से विख्यात स्व लाल चंद प्रार्थी की राज्य स्तरीय जयंती कुल्लू में भाषा अकादमी द्वारा मनाई गई। देवसदन में आयोजित लाल चंद प्रार्थी की 105 वर्षीय जयंती  में प्रदेश के साहित्यकारों ने भाग लिया और स्व. प्रार्थी के द्वारा किए गए विशेष कार्यों को भी सराहा। राज्य स्तरीय इस जयंती में हिमाचल प्रदेश एपीएमसी के मुख्य सलाहकार रमेश शर्मा ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया और उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि भी अर्पित की। इस कार्यक्रम के दौरान कवि सम्मेलन व पहाड़ी गायन कार्यक्रम भी आयोजित किया गया।इससे पूर्व सांस्कृतिक प्रेरणा पुरुष  स्वर्गीय लालचन्द प्रार्थी की 105 जयंती पर 15 अगस्त 1947 रोपित मोहनी के वृक्ष की पूजा अर्चना भी की।

एपीएमसी के मुख्य सलाहकार रमेश शर्मा ने कहा कि प्रदेश के गौरव लालचन्द ‘प्रार्थी’ उन साहित्यकारों में थे, जो हिंदी डे ,कुल्लू की  नमन में आज भी ‘चांद कुल्लुवी’ के नाम से चमक रहे हैं प्रार्थी ने मैट्रिक तक की शिक्षा अपने क्षेत्र से पाई उसके बाद वे लाहौर चले गये और वहां से आयुर्वेदाचार्य की उपाधि प्राप्त की। लाहौर में रहते हुए वे ‘डोगरा संदेश’ और ‘कांगड़ा समाचार’ के लिए नियमित रूप से लिखने लगे। इसके साथ ही उन्होंने अपने विद्यालय के छात्रों का नेतृत्व किया और स्वतंत्रता संग्राम में कूद गये।1940 के दशक में उनका गीत ‘हे भगवान, दो वरदान, काम देश के आऊं मैं’ बहुत लोकप्रिय था।इसे गाते हुए बच्चे और बड़े गली-कूचों में घूमते थे। इसी समय उन्होंने ग्राम्य सुधार पर एक पुस्तक भी लिखी। यह गीत उस पुस्तक में ही छपा था। कुल्लू के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ सूरत का कहना है कि स्व. लाल चंद प्रार्थी ने हिमाचल प्रदेश की संस्कृति के उत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।एक समय ऐसा भी था, जब हिमाचल के लोगों में अपनी भाषा, बोली और संस्कृति के प्रति हीनता की भावना पैदा हो गयी थी. वे विदेशी और विधर्मी संस्कृति को श्रेष्ठ मानने लगे थे।ऐसे समय में प्रार्थी ने सांस्कृतिक रूप से प्रदेश का नेतृत्व किया। इससे युवाओं का पलायन रुका और लोगों में अपनी संस्कृति के प्रति गर्व की भावना जागृत हुई। कुल्लू के प्रसिद्ध दशहरा मेले को अन्तरराष्ट्रीय पटल पर किया स्थापित गौर रहे कि हिमाचल प्रदेश में भाषा-संस्कृति विभाग और अकादमी की स्थापना, कुल्लू के प्रसिद्ध दशहरा मेले को अन्तरराष्ट्रीय पटल पर स्थापित करना तथा कुल्लू में मुक्ताकाश कला केंद्र की स्थापना उनके ही प्रयास से सफल हुई।