बस यूं ही….
कहते हैं आदमी अपने व्यवहार, संस्कृति और संस्कार से ज्यादा और जल्दी पहचाना जा सकता है। हिमाचल की संस्कृति वैसे तो बहुत समृद्ध है लेकिन वहां के लोगों के संस्कार भी किसी के पहचान के मोहताज नहीं हैं। पिछले कल हमारे ऑफिस के करीब ही हिमाचल के लोगों का अपने प्रत्याशियों के समर्थन में कार्यक्रम था। यहां बतौर मुख्यातिथि केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर पधारे थे। यहां पर उनके आगमन पर पारम्परिक प्रीति भोज ‘हिमाचली धाम’ का आयोजन किया गया था। आयोजकों ने हमें भी बुला रखा था। अचानक मित्रों के साथ कार्यक्रम बना कि क्यों न हिमाचली धाम का मज़ा लिया जाए। वैसे भी जब से शहर में रहने लगे हैं धाम का जायका भूलता ही जा रहा है। कोरोना काल में तो लोक हित में धाम बंनाने में ही पाबन्दी लगानी पड़ी थी। खैर कार्यक्रम बना तो आयोजकों में से एक मित्र सुदीप रावत को फोन किया तो उन्होंने भी तुरंत बुला लिया कि जल्दी आओ क्योंकि वह भी हमारे साथ ही खाना चाहते हैं । हम दफ्तर के पांच लोग धाम खाने गाड़ी में निकल पड़े। पंडाल हिमाचलियों से खचाखच भरा हुआ था। हजारों की तादाद में लोग अपनी पहाड़ी टोपियों को लगाकर पहुंचे थे। हमने भी बिना किसी समय को गंवाए पंगत में बैठना ही उचित समझा। एक ओर मेरे प्रिय मित्र करनैल राणा अपनी मधुर आवाज में मंच पर एक के बाद एक पहाड़ी गाना सुना रहे थे, दूसरी ओर धाम का दौर शुरू हो गया। पहाड़ी पारम्परिक व्यंजन वे भी पतलों पर परोसे जाने लगे। अभी मुख्य अतिथि का हम जिक्र करने ही वाले थे कि ठीक हमारी पीठ के पीछे मंत्री खाना खा रहे थे। वह भी उन्हीं पतलों पर जिन पर हम खा रहे थे। न कोई लाव लश्कर, न कोई दिखावा, जमीन से जुड़ा नेता अपनों के साथ बैठकर अपनी संस्कृति और संस्कारों का परिचय दे रहा था। यह देखकर अपनी संस्कृति पर गर्व भी हुआ और नेता का यूँ हमारे साथ खाना खाना अच्छा भी लगा। हिमाचल के नेता इसी तरह लोगों के साथ घुल मिल जाते हैं, तो सचमुच अच्छा लगता है। खैर, केंद्रीय मंत्री के साथ हमने भी राजमाह, कढ़ी, सेपू बड़ियां, मीठा, मधरा, खट्टा और भी बहुत कुछ खाया तो यह धाम यादगार बन गई। मेरे साथ गए मनोज अपरेजा, योग राज, राजेश भट्ट, सुरेंद्र शर्मा भी इस जायकेदार शाम के गवाह बने। मैं तो आपको भी कहता हूँ कि जब कभी हिमाचली धाम खाने का मौका मिले तो चूकना मत। क्योंकि एक धाम से आपको भी हिमाचल की संस्कृति को समझने का मौका मिल जाएगा।