हिमाचल प्रदेश के कुछ ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 5 से 15 अगस्त तक किसानों को वितरित होंगे ये पौधे

Listen to this article

सुरभि न्यूज़
जोगिन्दर नगर

हिमाचल प्रदेश के कुछ ऊंचाई वाले इलाकों में राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय जोगिन्दर नगर विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके औषधीय पौधों का किसानों को गुणवत्तायुक्त रोपण सामग्री का वितरण करने जा रहा है। आगामी 5 अगस्त से 15 अगस्त तक चलने वाले इस विशेष अभियान के तहत हिमाचल प्रदेश के रोहडू, सैंज कुल्लू, बरोट तथा सिराज घाटी के किसानों को प्राकृतिक तौर पर पाई जाने वाले औषधीय पौधों कुटकी, जटामांसी तथा अष्ट वर्ग पौधों की गुणवत्ता युक्त सामग्री का वितरण किया जाएगा।

राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अरूण चंदन ने बताया कि हिमालयी क्षेत्रों से कई औषधीय पौधे अत्यधिक दोहन के चलते विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके हैं। ऐसे में इन औषधीय पौधें के प्रति स्थानीय किसानों को जागरूक करने तथा इन पौधों की खेती करने को लेकर किसानों को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से यह विशेष गुणवत्तायुक्त रोपण सामग्री उपलब्ध करवाने का अभियान शुरू किया जा रहा है।

उन्होने बताया कि उत्तराखंड की हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल के हाई एल्टीट्यूड प्लांट फिजियोलॉजी रिसर्च सेंटर के सहयोग से कुटकी, जटामांसी तथा कशीरकाकोली औषधीय पौधों की गुणवत्तायुक्त रोपण सामग्री को तैयार करवाया गया है जिसे हिमाचल व उत्तराखंड राज्य के किसानों को उपलब्ध करवाया जा रहा है।

डॉ. अरूण चंदन ने बताया कि उत्तराखंड राज्य में लगभग दो लाख से अधिक कुटकी, जटामांसी तथा कशीरकाकोली के औषधीय पौधों का आजादी का अमृत महोत्सव के तहत उत्तरकाशी जिले के नंदपुर खंड में वितरण किया जा चुका है जबकि इसी कड़ी में आगामी 5 से 15 अगस्त तक हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों जिसमें रोहडू, सैंज कुल्लू, सिराज तथा बरोट क्षेत्र शामिल है में लगभग अढ़ाई लाख इन औषधीय पौधों की गुणवत्तायुक्त रोपण सामग्री किसानों को वितरित की जाएगी।

उन्होने बताया कि कुटकी एक लिवर टॉनिक का काम करती है। इसे वर्ष 1997 में लुप्तप्राय प्रजातियों की श्रेणी में शामिल किया गया है। इसी तरह अष्ट वर्ग पौधे जिसमें काकोली, कशीरकाकोली, जीवक, ऋषबक, मेदा, महामेदा, रिधि, वरिधि शामिल हैं जो प्राकृतिक तौर पर पाये जाते हैं तथा च्यवनप्रास सामग्री का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यही नहीं जटामांसी औषधीय पौधा भी बेहद विलुप्तप्राय प्रजातियों की श्रेणी में शामिल हो चुका है तथा इसका इस्तेमाल मिरगी, हिस्टीरिया, अनिद्रारोग के इलाज में किया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *