सुरभि न्यूज़
प्रो. डॉ. मंजू वर्मा, चंडीगढ़
कुछ कहते हैं अल्फाज़, तुम सुनो तो सही…..। मेरी हर एक लिखी अभिव्यक्ति सत्य की चौखट पर खड़ी तुम्हें झकझोरने का प्रयास करती है। तुम यदि समझ सको तो समझो…..उम्र के इस पड़ाव का खालीपन, विरह की अग्नि में झुलसता मन…..और मेरे अल्फाजों से रिसते मानसिक व भावनात्मक घाव…..तुम यदि जान पाओ तो फ़िर प्रश्न कैसे…..किस लिए….?
प्रेमनगर की कविता के विशेष सन्दर्भ में मैं यहाँ कुछ कहना चाहूँगी। यह कविता मेरे राज सर की जिन्दगी से जुड़ी हुई है। हम दोनों पी. यू. यानि कि पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़, के इतिहास विभाग के छात्र- छात्रा थे।
सन्न 1973 में मैंने इतिहास विभाग में अपनी मास्टर्स के प्रथम वर्ष में प्रवेश किया था। उस समय मेरे राज सर अपनी मास्टर्स पूर्ण करने के बाद इतिहास के किसी विषय पर पी.एच. डी. कर रहे थे। पी. यू. परिसर के इन्हीं गलियारों में हमारी मुलाकात हुई थी। ऐसा लगता था कि जो पूर्व निर्धारित और प्रारब्ध में लिखित थी। तभी तो हम मिले थे। उन्हीं गलियारों और गलियों में जहाँ प्रेम के गुल खिले थे वहां दूसरी ओर परिसर की सडकों के किनारे ग्रीष्म ऋतु के मौसम-ए-बहार अमलतास के पीत पीताम्बर पुष्प और शिशरांत में गुलाबी कचनार के फूल खिले हुए थे।
राज सर के पिता विश्वविद्यालय में एक वरिष्ठ अधिकारी के पद पर कार्यरत थे और परिसर में मिले एक आवास में रहते थे। हमारा प्रेम सफल हुआ और मार्च 1977 में हमारा विवाह हो गया। विवाह के समय राज सर जिस घर में मुझे बांह पकड़ कर ले कर आए थे बिल्कुल उसी घर के सामने वाला घर जब विश्वविद्यालय की ओर से 2010 में मुझे अलॉट हुआ तो अपने सामने वाले वैवाहिक घर को देखते ही मेरा अन्तर्मन विरह में डूब कर रह गया। अपनी सेवानिवृत्ति तक विश्वविद्यालय के उस घर में मुझे दस साल तक अकेले रहने का अवसर मिला। इन दस सालों में आमने-सामने रह कर एक घर से दूसरे घर को हर क्षण निहारना, राज सर के साथ जिये उन सुखद पलों का एहसास करना, कभी बाहर लॉन में बैठ कर राज सर के कदमों की आहट महसूस करना बहुत ही स्वाभाविक सा लगता था……….दस सालों तक अपने प्रियतम की छवि को उस घर में आते जाते देखती रही। …..और ना जाने क्या क्या सोचती रही जो आप सब की कल्पना से परे की बात है…..। इस सोच में कितनी पीड़ा थी….कितना तकलीफदेह था वो एकान्त जिसे बयान करने में मेरे अल्फाज़ भी सिसकते हैं….।
एकांत कैसा…..जानने के लिए पढ़े मेरा लिखा सत्य पर आधारित उपन्यास, राज सर आई. पी.एस.
लेखिका : प्रो. डॉ. मंजू वर्मा, रिटायर्ड प्रोफेसर पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़