कभी गुलजार था मंडी का सराज, बाढ़ की विभीषिका से वीरान हो गया आज 

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सुरभि न्यूज़
नरेंद्र भारती, मंडी

कभी गुलजार था मंडी का सराज, बाढ़ की विभीषिका से वीरान हो गया आज। दर्दनाक मंजर से लोगों की आँखों में खौफ है क्यूंकि खौफनाक त्रासदी ने जो ज़ख्म दिए हैं वह ताउम्र रिसते रहेंगे। बहुत ही मार्मिक और रूह को कंपा देने वाला दृश्य चारों तरफ नजर आ रहा है और पहाड़ जमीन पर उत्तर गए हैं। असहनीय दर्द से हर आँख आंसू बहा रही हैं। अपनों के खोने का दर्द अपने ही समझ सकते है।

बाढ़ ने आशियानो का वजूद ही मिटा दिया, सब कुछ तबाह कर दिया है। पहाडों में रहने वाले भोले भाले लोगों पर दुखों का पहाड़ टूट पडा और पहाड़ जैसा हौसला रखने वाले लोगों को तोड़ कर रख दिया जिसे पहाड़ जैसे दुःख से उभरने में बहुत समय लगेगा। चंद मिनटों में बाढ़ सब कुछ बहाकर ले गईं, सिर्फ तन पर जो कपड़े पहने थे वहीं बचे हैं तथा नंगे पाँव भाग करके जान बचाई है। बाढ़ से पूरा सराज वीरान हो चूका है, चारों तरफ मलवा ही मलवा और विशालकाय चट्टानों के ढेर नजर आ रहे हैं। चारों तरफ पानी ही पानी और कीचड़ ही कीचड़ नजर आ रहा है। भयंकर बाढ़ का मंजर देखकर आत्मा सिहर उठती है।

बाग बगीचे धराशयी होने के साथ आलीशान मकान ढह गए जिससे संजोये सपनों के महल टूट गए है। बाढ़ ने घरों को तिनके की तरह बह गए और घर का सारा सामान बाढ़ की भेंट चढ़ गया। सोने चांदी के आभूषण, नकद पैसा व उम्र भर की जमा पूंजी बाढ़ बहा कर ले गईं है। बाढ़ ने सेकड़ों लोगों को पल भर में लील लिया। हर घर गांव में चीखो पुकार मची हुई है क्यूंकि बाढ़ में किसी ने अपना बेटा, किसी ने माँ बाप तो किसी ने बहन खोई है। कई बच्चे अनाथ हो गए व माता बहनों की मांग का सिंदूर मिट गया।

सराज प्रकृति का स्वर्ग था कुदरत के कहर ने नरक बना दिया। सराज कभी खुशियों से गुलजार था जहां बच्चों की किलकारियां गूंजती थी, लेकिन अब सुनसान व वीरान होकर मलबे मे तब्दील हो चूका है। दबे पाँव आई बाढ़ से छोटे छोटे बच्चे बिछड़ चुके हैं। एक नौ महीने की नवजात निकिता जिन्दा बची है जिसका पूरा परिवार बाढ़ की चपेट में आने से बेमौत मारे गए हैं केवल नितिका अकेली बची है।

लोग राहत शिविरों में रातें काटने को मजबूर है और भूखे प्यासे दिन रात अपनों को ढूंढ रहे हैं। बस दिन रात एक आशा है की क़ब उनके अपने मिल जाएँ जो मलबे में दफन हो चुके हैं। मीलों दूर बह चुके लोगों के शव नहीं मिल रहे हैं जो मलवे में फंसे है या कहीं बह कर क्षत विक्षत हो चुके होंगे।

एक जून को प्रकृति ने तबाही की ऐसी इबारत लिखी कि सब कुछ तबाह होकर तहस नहस हो गया। कुदरत ने ऐसी लीला रची है की आने वाली सात पीढ़ीयां भी नहीं भूल पायेगी।सराज विधानसभा क्षेत्र के थुनाग, बगस्याड, देजी गांव, बाड़ा और सयाँज में तबाही का मंजर बहुत ही डरावना है। प्रशासन दिन रात सर्च ऑपरेशन कर रहा है। जान जोखिम में डाल कर सुरक्षा टीमें शवों को खोज रही हैं नौ लोगों बह गए थे जिनमे से चार लोगों के शव बरामद हो चुके है। अभी पांच लोगों के शव नहीं मिल रहे हैं। जब तक सराज के बाढ़ग्रस्त गाँव के सभी लोग नहीं मिल जाते तब तक ऑपरेशन जारी रखना चाहिए। हर आदमी अपनी भूमिका निभा रहा है। सामाजिक संस्थाएं भी सहयोग कर रही हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार है।

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