साहित्य : ओह माय गॉड ! (व्यंग्य), लेखक : रणजोध सिंह

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सुरभि न्यूज़, नालागढ़

ओह माय गॉड ! (व्यंग्य) 

कॉलेज के दिनों में मेरा एक लंगोटिया यार भारत की राजधानी दिल्ली के एक कॉलेज में कला संकाय के प्रथम वर्ष का छात्र था। एक सुहानी सुबह, जब मैं उसे मिलने उसके घर गया तो पता चला कि वह विज्ञान के विद्यार्थियों को गणित की ट्यूशन पढ़ा रहा है। जिज्ञासा हुई, कि देखा जाए, एक पॉलिटिकल साइंस पढ़ने वाला प्रथम वर्ष का छात्र, विज्ञान के विद्यार्थियों को गणित कैसे पढ़ा रहा है ? मेरे आश्चर्य की सीमा न रही, जब मैंने देखा कि वह सचमुच कुछ स्कूली बच्चों को ज्यमिति पढ़ा रहा था। उसके पढ़ाने का तरीका कुछ इस प्रकार था:-
-देखो यह एक त्रिकोण है, इसकी तीन भुजाएं तथा तीन कोण हैं, जिसके कारण यह त्रिकोण कहलाता है। यह दूसरा त्रिकोण है इसकी भी तीन भुजाएं तथा तीन कोण हैं।
-जी सर ! सब बच्चों ने उत्साहपूर्वक एक स्वर में कहा।
-ज़रा ध्यान से देखो, पहला त्रिकोण दूसरे त्रिकोण को देख रहा है।
बच्चों का कोई उतर न मिलने पर वह थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोला
-देख रहा है या नहीं देख रहा ?
-जी देख रहा है ! सब बच्चे एक स्वर में बोले।
-इसलिए ये दोनों त्रिकोण बराबर है, समझे।
इस बीच एक छात्र खड़ा हो गया और नकारात्मक मुद्रा में सर हिलाते हुए बोला,
-सर मैं नहीं समझा।
उसने बच्चे को ज़ोर से एक चांटा लगाया और गुस्से से बोला,
-इतनी साधारण सी बात भी तुम्हें समझ नहीं आती, अरे भाई जब यह दोनों त्रिकोण हैं, आमने-सामने बैठे हैं और ये एक दूसरे को देख भी रहे हैं, तो फिर ये बराबर हुए कि नहीं ?
-जी सर बराबर हुए ! विद्यार्थी ने अपना गाल सहलते हुए कहा।
मुझे समझ आ गया कि आज के युग में जहां पर माता-पिता अपने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना स्वर्ग प्राप्ति की पहली सीढ़ी समझते हो, वहां कोई भी व्यक्ति ट्यूशन करवा सकता है। जिसके लिए आपको न तो उच्च शिक्षा लेने की जरूरत है और न ही किसी रोज़गार कार्यलय में जा कर अपने जूते घिसाने की आवश्यकता। बस आपको आपके घर के बाहर एक आकर्षक सी पट्टिका लगानी है जिस पर मोटे मोटे अक्षरों में लिखा होना चाहिए, ‘हमारे यहाँ बच्चों को तसल्ली-बक्श ट्यूशन योग्य अध्यापकों द्वारा दी जाती है।’ बाकी काम अभिभावक व विधार्थी स्वयं कर लेंगे।
वैसे भी हमारे देश में स्व: रोज़गार के अवसरों की कोई कमी नहीं है। इसके लिए भी किसी विशेष डिग्री की आवश्यकता नहीं होती, सिर्फ ग्राहक के मन को पढ़ने की कला आनी चाहिए कि वह चाहता क्या है। आप उसके मन की बात कर दीजिए, लक्ष्मी देवी स्वयं आपके घर को मंदिर समझ अपना स्थाई निवास बना लेगी। तभी तो बीस साल का छोकरा भगवे वस्त्र डाल कर पचास साल की औरत के सर पर हाथ रखकर कहता है, “ बच्चा, बाबा जी देख रहे हैं कि तुम्हारा भविष्य बड़ा उज्ज्वल है। आने वाले समय में तुम्हारा एक हाथ सोने का होगा और दूसरा चांदी का और वह औरत ख़ुशी से फूल कर, न केवल इस युवा सन्यासी के पांव छूती है अपितु उसकी इस सुंदर भविष्यवाणी के लिए यथासंभव दक्षिणा भी देती है। हमारे देश में नितांत अनपढ़ व्यक्ति कोचिंग-सेंटर खोल के बैठे हैं। कुछ हलवाई प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी चला रहे हैं, जिन लोगों का खेल से दूर दूर तक नाता नहीं, वे खेल सेंटर के मालिक हैं। अभी कुछ दशक पहले हमारे देश में बैंक घोटाला हुआ था, जिसमे दस जमा दो पास युवक ने, इस घोटाले को सुचारू रूप से चलाने के लिए कई एम. बी. ए. पास युवकों को अपने पास नौकरी पर रखा हुआ था।
हमारे देश को विश्व गुरु यू ही तो नहीं कहते। देश के कोने-कोने में ईश्वर के एजेंट ईश्वर का भेस धारण कर उनके भक्तों का साक्षात्कार ईश्वर से करवाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। ये अलग बात हैं कि आज तक भगवान जी इन एजेंटो की सिफारिश पर भक्तों से मिलने को कभी तैयार नहीं हुए। अलबत्ता ये एजेंट भगवान जी के भक्तों से इस साक्षात्कार हेतु भारी-भरकम गुरु-दक्षिणा अवश्य ऐंठ लेते हैं।
हमारे देश में ऐसे आत्मश्लाघी झोलाछाप डाक्टरों की कमी नहीं जो शर्तिया इलाज करने का दम भरते हैं। जिनके अपने सर पर एक भी बाल नहीं है, अर्थात पूर्ण रूप से गंजे हैं, वही डाक्टर आपके सर पर बालों की फसल उगाने का दावा करते हैं।
जिनकी स्वयं की पत्नियाँ किसी गामा पहलवान से कम नहीं, वे दुनिभर की महिलायों को ऐसी बैल्ट बेचने का यत्न करते हैं, जिसे लगाते ही वे कटरीना कैफ की भांति स्लिम-ट्रिम हो जाएंगी। किसी शायर ने क्या खूब कहा है
‘जिन्दगी को कई बार हमने इस तरह से बहलाया है,
जो ख़ुद न समझ सके औरों को समझया है।’
आपको ऐसे अनेक व्यापारी मिल जायेंगे जो इस बात का दावा करते हैं कि अमूक दवाई को छिडकते ही आपके घर के समस्त कीड़े-मकोड़े मर जायेंगे मगर हैरानी तो तब होती है जब इस दवाई से घर के कीड़े तो मरते नहीं अलबत्ता कीड़े मारने वाली दवाई में ही कीड़े पड़ जाते हैं।
एक रात सोते समय मैंने पाया कि एक स्टील का छोटा सा बॉक्स मेरे कमरे में पड़ा है जिसमें से हल्की सी आवाज़ आ रही थी। पूछने पर श्रीमती जी ने प्रसन्नतापूर्वक बताया कि इस बॉक्स से इतनी तेज़ अल्ट्रासोनिक ध्वनि निकलती है कि सुनने वाला पागल हो जाए। मगर अच्छी बात यह है कि यह ध्वनि इंसानों को सुनाई नहीं देती। केवल चूहे, छिपकलियां या अन्य कीड़े-मकोड़े ही इसे सुन सकते हैं। इस मशीन को लगाने से किसी भी प्रकार के कीड़े-मकोड़े घर में प्रवेश नहीं करते क्योंकि उनके कान इस शोर को सहन नहीं कर सकते।
आधी रात के वक्त कमरे में कुछ खट-खट की आवाज हुई। मैं और मेरी श्रीमती दोनो ही चौंक कर जाग गए। देखा तो आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। दो चूहे उस बॉक्स के ऊपर चढ़े हुए, श्रीमती जी के कथन का उपहास उड़ा रहे थे। मैंने हंसते हुए पूछा, “तुम तो कह रही थी कि इस मशीन के रहते चूहे हमारे घर में प्रवेश भी नहीं करेंगे, मगर यह तो मशीन को डांसिंग फ्लोर समझकर पार्टी कर रहे हैं।
आज की तिथि में आप कोई भी अखबार उठा लीजिए, पत्र-पत्रिका उठा लीजिए, टीवी देख लें या इन्टरनेट पर लॉग-ऑन कर लें। आपको सैंकड़ो खानदानी वैद्य मिल जायेंगे जो कई सदियों से, पीड़ी दर पीड़ी यौन-समस्याओं का उपचार कर इस देश की जनता पर असीम कृपा कर रहे हैं। इतना ही नहीं यदि कोई व्यक्ति इनकी शरण में चला जाए तो ये दिव्य-पुरुष उस व्यक्ति पर इतने दयालु हो जाते हैं कि उस व्यक्ति विशेष के बर्तन-भांडे बिकवा कर ही दम लेते हैं। वैसे ये खानदानी वैद्य आपकी जेब देख कर ही आपका इलाज़ सुनिश्चित करते हैं। ये इलाज़ साधारण भी हो सकता है, राजशाही भी, और बादशाही भी। खैर ! मैं तो आज तक ये नहीं समझ पाया कि कोई बिमारी साधारण, राज-शाही या बादशाही कैसे हो सकती है।
इधर, जब से निजी अस्पतालों का चलन हुआ है, तब से तो हमारे देश में स्वास्थ्य कर्मियों के बारे-न्यारे हो गए हैं। क्योंकी जैसे-जैसे सरकारों का सरोकार जनता के स्वास्थ्य के प्रति बढ़ा है, वैसे-वैसे निजी हस्पतालों में भी जनता के प्रति सेवा भावना कुलांचे भरने लगी है, और ये जनता-भलाई केंद्र देश के कोने-कोने में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये हैं। इन हस्पतालों की रिसेप्शन पर शोभायमान अप्सरा सी सुंदर कन्या पहला प्रश्न यही पूछती है, “क्या आपने कोई हेल्थ इंशोरेंस ले रखा है ? या आपके पास सरकार द्वारा दिए गया कोई हेल्थ इंशोरेंस कार्ड है ?” यदि आप इस यक्ष प्रश्न का उत्तर सकारात्मक देते है, तो समझ लीजिए आपकी तीमारदारी किसी अति महत्वपूर्ण व्यक्ति (वी.आई.पी.) की तरह होगी, आपके शरीर के प्रत्येक अंग का महीन निरीक्षण किया जाएगा, आपके बीसियों टेस्ट बेमतलब करवाए जाएंगे और हो सका तो आपका ऑपरेशन भी कर दिया जायेगा। मगर ये अलग बात है कि आपका जो इलाज पचास-साठ हज़ार रुपयों में हो सकता था, उसका बिल आठ-दस लाख बना कर इंशोरेंस कम्पनी को थमा दिया जाता है। खैर, व्यवसाय का यह तरीका सबके लिए सुवधाजनक रहता है। मरीज़ खुश रहता है, क्योंकि उसकी जेब पर कोई बोझ नहीं पड़ता, हस्पताल वाले खुश रहते हैं, थोड़ी सी मेहनत कर लाखों रूपये उनके खाते में आ जाते है। अब रही सरकार, वह तो बनी ही जनता की भलाई के लिए है। वो जनता से ही लेती है और जनता को ही देती है।
ध्यान रहे इस प्रकार के जनता-भलाई केंद्र चलाने वालों के लिए मरीज़ की बिमारी इतनी महत्वपूर्ण नहीं है, जितना महत्वपूर्ण है, उसे ये विशवास दिलाना कि उसे कोई खतरनाक बिमारी है और यदि उसने तुरंत अपना ईलाज़ नहीं करवाया तो उसका मरना निश्चित है।
ऐसे किसी योग्य डॉक्टर के पास यदि आपने किसी कारणवश या भूल से अपना ब्लड-प्रेशेर चैक करवा लिया तो वह विस्मयपूर्वक कभी आपकी तरफ देखेगा और कभी अपनी मशीन की तरफ और फिर हैरानी से कहेगा, “ओह माय गॉड ! इतना ज़्यादा ब्लड-प्रेशेर ! आप खड़े कैसे है ! तुरंत एडमिट हो जाइए।”

  • रणजोध सिंह
  • नालागढ़ जिला सोलन हि. प्र. मोबाइल न.-94181 58741

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