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सुरभि न्यूज़
छविन्द्र शर्मा, आनी
हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी कई प्राचीन परंपराएं आज भी कायम हैं जिनका प्रचलन हमारे पूर्वजों द्वारा वर्षों पहले किया जाता था। इन्हीं परंपराओं में पंद्रह पोष की रात्रि को भाप में पके मीठे कद्दू को खाने की परंपरा भी है जिसका निर्वहन आनी के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों द्वारा आज भी किया जा रहा है।
देसी पोष माह की 15 पोष प्रविष्टे रात्रि को कद्दू खाने की परम्परा के पीछे क्या है इसके बारे में यहाँ के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष में 15 पोष की रात्रि समय की अवधि सबसे लम्बी होती है। ऐसे में लम्बी रात्रि के समय को व्यतीत करने के लिए अमुक परिवार के सदस्य रात्रि में कई तरह के पकबान बनाए जाते हैं। जिनमें फ्लाऊला और सरयाली जैसे व्यंजन प्रमुख हैं, जबकि कद्दू इनमें विशेषतौर पर बनाया जाता हैं।
कहते हैं कि कद्दू खाने से जहाँ वात उदर की बिमारियाँ दूर होती है वहीं कद्दू का गुण शीत होता है जिससे 15 पोष की लम्बी रात्रि में भावयुक्त कद्दू खाने से नींद पर नियंत्रण रह सके और बड़े बुजुर्गों से कथा कहानियों के माध्यम से दीर्घ कालीन रात्रि का समय आसानी से व्यतीत हो सके।
इस रात्रि में बीथू भी खाते हैं जो शरीर में उष्णता बनाए रखता है और इससे शरीर में सर्द गर्म की समता बनी रहती है। हालांकि आज के भौतिकतावादी युग में ये परंपराएं बिलुप्त प्रायः सी हो गई हैं मगर आनी के ग्रामीण क्षेत्रों में ये परंपराएं आज भी कायम हैं।