सुरभि न्यूज़
नरेंद्र भारती, मंडी : 31 जुलाई
अभी भी वक़्त है प्रकृति से छेड़छाड़ मत कीजिये। हिमाचल में बादल फटने,भूसखलन व बाढ़ के हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं, यह बहुत ही त्रासदी है। 29 जुलाई 2025 को सुबह छोटी काशी मंडी के जेल रोड़ में सुबह चार बजे बादल फटने सें बहुत तबाही हुई। इस तबाही में एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत हो गई व बहु लापता है। सड़क, मकान सब कुछ बह गया हैं। एन डी आर एफ की टीमें जान जोखिम मे डाल कर लोगों का जीवन बचा रही है। भारी बरसात के कारण यह हादसा हुआ है। सर्च ऑपरेशन जारी है बचाव कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। अभी सराज त्रासदी की स्याही भी नहीं सुखी थी कि मंडी हादसे ने नई इबारत लिख दी है। 30 जून को आये प्रलय के बाद मंडी में प्रकृति का खौफनाक मंजर हुआ है। सराज में भी दर्जनों लोग बह गए हैं और अब तक नहीं मिले हैं।
गत वर्ष 2024 में भी हिमाचल के सोलन मे कालका शिमला फोरलेन पर चलती गाड़ी पर पहाड़ी से पत्थर गिरने से एक व्यक्ति की दर्दनाक मौत हो गई थी और तीन लोग घायल हो गए थे। प्रतिवर्ष बरसात मे ऐसे हादसे हो रहे हैं और लोगों को जान गंवानी पड़ रही है। प्रकृति की चेतावनी दे रही है, सुधर जा मानव अभी सम्भलने का वक़्त है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने वाले मानव को प्रकृति ने आगाह किया है की सुधर जाओ नहीं तो तबाह कर दूंगी। यह तो एक ट्रेलर है अभी पूरी पिक्चर बाकि है। हिमाचल के किन्नौर से लेकर भरमोर तक तबाही ही तबाही हो रही है। बरसात का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रतिदिन पहाड़ दरक रहे हैं। बरसात ने सेकड़ों लोगों का जीवन लील लिया है। कई बच्चे अनाथ हो गए, माताएँ व बहनों का सिंदूर मिट गया। यह बरसात इतने जख्म दे गई की जख्म तो भर जायेंगे पर निशान अमिट रहेंगे। बरसात के कारण अब तक सेंकेड़ो लोग मारे जा चुके हैं जो बह गए अभी तक नहीं मिल सके हैं।
करोड़ो की सरकारी व निजी सम्पति बह गई। लोगों की उम्र भर की कमाई खत्म हो गई। लोगों क़ो सड़को पर राते गुजारने पड़ रही है और पल भर मे सब कुछ बह गया है। कारें व बसें भी बह गई, आलीशान घर पल भर मे बह गए। सदियों पुराने पुल बह गए। प्रकृति कभी भेदभाव नहीं करती लेकिन जब मानव ने प्रकृति का सीना छलनी कर दिया तो प्रकृति ने मानव को सबक सीखा दिया। अवैध खनन के कारण नदियों व नालों का रास्ता बदल गया है। लोगो ने नदियों के किनारे मकान बना दिए, नतीजन अब भुगत रहे हैं। बरसात अपना रोद्र रूप इंसान को दिखा चुकी है, भटक चुके मानव को उसकी औकात दिखा दी है। मानव को भी छेड़छाड़ करना बंद कर देनी चाहिए।
पिछले साल 20 अगस्त क़ो भी बहुत तबाही हुई थी। मंडी के गोहर मे एक मकान के जमीदोज होने से आठ लोगो की मौत हो गई थी। जुलाई मे लगातार मूसलाधार बारिस हो रही है, सड़कें बह रही है, पहाड़ मे बादल फट रहे हैं और लोग असमय मारे जा रहे हैं। अभी अगस्त माह बाकि है पता नहीं कुदरत क्या कहर ढाएगी। प्रशांसन भी सक्रिय होकर लोगों को सुरक्षित जगह पर आश्रय दें रहा है। लोगों को भी सतर्क रहना चाहिए। नदियों का जलस्तर भी काफ़ी बढ़ चूका है, लोग लापरवाही बरत रहे हैं और बह रहे हैं। ऐसे लोगों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
मानव क़ो पहाड़ो से छेड़छाड़ बंद करनी होंगी ताकि आने वाले समय मे ऐसे हादसे रुक सके। वक़्त अभी सभलने का है, अगर अब भी सबक नहीं सीखा तो ऐसी तबाही लगातर होती रहेगी। मानव क़ो चाहिए की अब ऐसी भूल मत करें नहीं तो कुदरत नामोनिशान मिटा देगी। कहते है कि प्राकृतिक आपदाओं को रोक तो नहीं सकते परन्तु अपने विवेक व ज्ञान से अपने आप को सुरक्षित कर सकते है। कैसी विडंबना है मानव प्रकृति से छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आ रहा है जिससे प्रकृति अपना बदला ले रही है।
त्रासदी के बाद बचाव पर चर्चा होती है मगर कुछ दिनो बाद जब जीवन पटरी पर चलने लग जाता है तो इन बातों को भूला दिया जाता है। अगर बीती त्रासदियों से सबक सीखा जाए तो आने वाले भविष्य को सुरक्षित किया जा सकता है। मगर हादसों व आपदाओं से न तो लोग सबक सीखते है और न ही सरकारें सबक सीखती हैं। कुछ दिन सरकारी अमला औपचारिकता निभाता है और उसके बाद अगली घटना तक कोई कारगर उपाय नहीं किए जाते। सरकारो को इन आपदाओं पर मंथन करना चाहिए तथा शिविर लगाकर महानगरों, शहरों व गांवो के लोगों को जागरुक किया जाना चाहिए। तभी तबाही से बचा सकता है।
सरकार को चाहिए की प्रत्येक गांव से लेकर शहरो तक आपदा प्रबंधन कमेटियां गठित करनी चाहिए, जिसमें डाक्टर, नर्स व अन्य प्रशिक्षित स्टाफ रखना चाहिए ताकि वह त्वरित कारवाई करके लोगों केा मौत के मुंह से बचा सके। अक्सर देखा गया है कि जब तक आपदा प्रबंधन की टीमें घटना स्थनों पर पहुचती है तब तक बची हुई सांसे उखड़ जाती है, लाशों के ढेर लग जाते है। अगर समय पर आपदा ग्रस्त लोगों को प्राथमिक सहायता मिल जाए तो हजारों जिदंगियां बचाई जा सकती हैं। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सरकार को कालेजों व स्कूलों में भी माकड्रिल जैसे आयोजन करने चाहिए ताकि अचानक होने वाली आपदाओं से अपना व अन्य का बचाव किया जा सके।स्कूलो व कालेजों मे चल रहे राष्ट्रीय सेवा योजना व स्काउट एंड गाइड के स्वंयसेवियों को आपदा से निपटने के लिए पारगंत किया जाए। अगर यही स्वयसेवी अपने घर व गांवों में लोगों को आपदा से बचने के तरीके बताए तो काफी हद तक नुक्सान को कम किया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि आपदा से बचाव के लिए प्रत्येक विभाग के कर्मचारियों को पूर्वाभ्यास करवाया जाए ताकि समय पर काम आ सके। पुलिस व अग्शिमन के कर्मचारियों को भी समय -समय पर ऐसे आयोजन करते रहना चाहिए। अगर सभी लोग आपदा से बचाव के तरीके समझ जाएगें तो तबाही कम हो सकती है।
प्रकृति एक ऐसी देवी है जो भेदभाव नहीं करती और प्रकृति के बिना मानव प्रगति नहीं कर सकता। प्रत्येक मानव को बराबर धूप व हवा व पानी दे रही है। मानव कृतध्न बनता जा रहा है। मानव ने स्वार्थो की पूर्ति के लिए प्रकृति को लहूलुहान कर रहा है जो अपना बदला ले रही है।
गलतफहमियों में जी रहे मानव आज प्रकृति के आगे नतमस्तक हो चुकें है। मगर इंटरनैट की दुनिया के जाल में फंसा मानव खुद को प्रकृति से बड़ा मानने लगा था, उसे यह आभास नहीं था कि प्रकृति सबसे बड़ी गुरु है। प्रकृति ने बहुत कुछ सहा है, चारों तरफ गंदगी से वातावरण अशुद्ध हो गया है। अनजाने में हुई भूल को माफ किया जा सकता है मगर जानबूझकर की गई गलतियों की सजा प्रकृति ने मानव को दे रहा है। मानव को जीवन और मौत की परिभाषा सिखा दी है। यह प्रलय की आहट है और कुदरत ने भटक चुके मानव को पाप और पुण्य का अंतर समझा दिया है।
प्रकृति के प्रकोप से बचना है तो हमें अपनी जीवन शैली बदलनी होगी, छेड़छाड़ बंद करनी होगी। अगर अब भी मानव ने प्रकृति पर अत्याचार बंद नहीं किया तो प्रकृति अपना बदला लेती रहेगी और मानव को सबक सीखाती रहेगी। कुदरत का कहर बरपता रहेगा। यह प्रकृति का एक टरेलर ही है अगर अब भी मानव ने प्रकृकि से छेड़छाड़ बंद नहीं की तो प्रकृति पूरी पिक्चर दिखएगी तब होश् आएगा वक्त अभी संभलने का है।