सुरभि न्यूज़, कुल्लू
सात दिनों तक मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव भगवान रघुनाथ अपने देवालय सुल्तानपुर लौटते ही उत्सव संपन्न हो गया है।
समापन अवसर पर ढालपुर स्थित अस्थाई शिविर से लेकर कैटेल मैदान तक भव्य रथयात्रा निकाली गई और उसके बाद लंकाबेकर में परंपरागत परंपरा का निर्वहन करने के बाद भगवान रघुनाथ वापिस अपने सुल्तानपुर स्थित मंदिर लौट गए हैं।
इसके साथ ही जिलाभर के देवी देवता भी अपने-अपने देवालय की ओर रवाना हो गए हैं। गौरतलब है कि बुधवार को भगवान रघुनाथ जी के ढालपुर मैदान के बीच सात दिनों तक के लिए बनाए गए अस्थाई शिविर में रघुनाथ जी की रथयात्रा पुनः आरंभ हुई और देवताओं के भारी समूह और अपार श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच रघुनाथ जी के रथ को मैदान के अंतिम छोर तक ले जाया गया।
इस अंतिम दिन लंकादहन का प्रतीकात्मक प्राचीन परंपरा का निर्वहन करने के बाद दशहरा उत्सव विधिपूर्वक संपन्न हो गया है।दशहरा उत्सव के इस अंतिम दिन को लंकादहन के नाम से जाना जाता है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी 2 अक्तूबर को दशहरा उत्सव के आरंभ में भगवान रघुनाथ जी के ऐतिहासिक रथ को खींचकर ढालपुर मैदान के मध्य तक लाया गया था।
जहां रघुनाथ की मूर्ति को एक सप्ताह तक उनके अस्थाई कैंप में रखा गया था और दशहरे के अंतिम दिन 8 अक्तूबर को पुनः रथ में सवार कर श्रद्धालुओं द्वारा मैदान के अंतिम छोर लंका बेकर तक ले जाया गया।
धुर विवाद के कारण आज भी श्रृंगा ऋषि और बालू नाग को रथयात्रा में शामिल नहीं किया गया। दोनों देवता नजरबंद रहे और दोनों देवता भगवान रघुनाथ के सुल्तानपुर लौटते ही अपने-अपने देवालय लौटे। इसके तुरंत बाद घाटी के सभी देवी-देवता अपने-अपने देवालय लौट गए हैं।