प्राकृतिक कृषि की तकनीक अपनाकर व जहर मुक्त खेती-बागवानी करके अच्छा आर्थिक लाभ कम रही कुल्लू की कृषक महिलाएं

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सुरभि न्यूज़ ब्यूरो
कुल्लू,  15 जुलाई
आज के युग में जहां फल सब्जियों एवं खाद्यान्न में रसायनों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते कैंसर, टीवी, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों का भी प्रकोप बढ़ रहा है रसायनों के अधिक प्रयोग के दुष्प्रभावों को देखते हुए आज प्राकृतिक कृषि की बहत अधिक आवश्यकता मसूसस की गई है। सरकार ने जहां प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई हैं वहीँ पर जिला कुल्लू की कृषक महिलाएं प्राकृतिक कृषि की तकनीक को उत्पाद अपना कर न केवल जहर मुक्त खेती-बागवानी की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं बल्कि बाजार में इसकी बढ़ती मांग को पूरा कर अच्छी आमदनी भी कमा रही है।
ग्राम पंचायत हॉट की महिला कृषक मीरा देवी का कहना है कि वे 2 साल से प्राकृतिक खेती कर रही हैं तथा पिछले वर्ष उन्होंने इसका प्रशिक्षण भी लिया था विभाग की सहायता से उन्हें देसी गाय भी खरीदी है जिसके गोबर व गोमूत्र से वे स्वयं ही जीवामृत व वीजामृत इत्यादि बनाते हैं तथा उनका प्रयोग करते हैं।
अत्यधिक रसायनों के प्रयोग से आज के युग में कैंसर जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं जिनसे रसायन मुक्त खेती के उत्पाद प्रयोग कर के बचा जा सकता है। यहां की एक अन्य कृषक बबली ने ढाई बीघा में अनार की कृषि प्राकृतिक रूप से शुरू की है जिसमें रसायनों का प्रयोग नहीं होता है इससे प्राकृतिक उत्पाद जो बाजार में जाता है उससे काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
वहीं खोखन गाँव की एक अन्य महिला कृषक हीरामणि का कहना है कि वह 5 बीघा में 2018 से प्राकृतिक कृषि कर रही हैं। इसके उन्हें बहुत बढ़िया परिणाम सामने आए हैं। 2018 में उन्होंने प्रशिक्षण ग्रहण किया था इसके पश्चात उन्होंने प्राकृतिक खेती आरंभ की यह सेब की बागवानी में भी प्राकृतिक कृषि की तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने अपने खेत में सरसों, मेथी, धनिया, पालक व मटर की खेती लगा राखी है तथा सेब के पेड़ों में नाइट्रोजन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए चने की कृषि की हुई है। इसके उन्हें बहुत ही बेहतर परिणाम मिल रहे हैं। इनका कहना है कि एक स्वस्थ जीवन के लिए रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती आज के युग की एक बहुत बड़ी आवश्यकता है ताकि रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से होने वाली बीमारियों से बचा जा सके तथा प्राकृतिक कृषि से पैदा किए हुए फल सब्जियां अनाज इत्यादि का प्रयोग करने से हम एक स्वस्थ जीवन को अपना सके। उन्हें समय पर विभाग कृषि तथा कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से प्रशिक्षण तथा बीज इत्यादि के रूप में भी सहायता मिलती रहती हैI
आतमा परियोजना की डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर डा बिंदु शर्मा का कहना है कि बजौरा के हाट पंचायत में कुछ किसानों द्वारा प्राकृतिक क्षेत्रीय खेती का कार्य 2 साल से किया जा रहा है। यह लगभग 2 से 5 बीघा के अंदर लहसुन, प्याज, मटर इत्यादि की कृषि कर रहे हैं तथा यह प्रकृति कृषि के सभी घटकों जीवामृत, घन जीवामृत, ब्रह्मास्त्र इत्यादि का प्रयोग प्राकृतिक रूप से कृषि करने के लिए कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें सरकार की तरफ से 10000 रुपये की सब्सिडी भी दी जा रही है तथा देसी गाय के लिए उन्हें सारे 17000 रुपये की सब्सिडी प्रदान की गई है। इन कृषकों ने यहां पर संसाधन भंडार भी तैयार किया है जिसमें यह सस्ती दर पर इन घटकों को उपलब्ध कराती है।

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